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Saturday 1 July 2023

परीक्षा के डर में ग्रहों की भूमिका और ज्योतिष निवारण(Pariksha ke dar me graho ki bhoomika aur jyotish nivaran)

परीक्षा के डर में ग्रहों की भूमिका और ज्योतिष निवारण(Pariksha ke dar me graho ki bhoomika aur jyotish nivaran):-समस्त जगत में जन्म लेने वाले लड़के या लड़कियों और समस्त मनुष्यों का भविष्य अपनी माता की कोख में आने के साथ ही पहले से तय होता हैं, उस समय की कुंडली को स्थापन कुंडली कहलाती हैं।

जब किसी भी मनुष्य का जन्म होता हैं, तो उस समय में जो ग्रह व नक्षत्र अपनी गति से चल रहे होते हैं, वे उस मनुष्य के भविष्य को निर्धारण करने के लिए उसके जन्म समय में बैठ जाते हैं, उस समय की कुंडली को जन्मकुंडली कहा जाता है। इस जन्मकुंडली से ही सभी मनुष्य की धारणा शक्ति का तय हो जाता हैं। इसी तरह ही माता-पिता तथा बहुत कुलों या वंशो की परम्परा के गुणसूत्र भी मनुष्य के भविष्य के साथ मिल जाते हैं। मनुष्य के रक्त व उसकी कार्यिकी आकृति में वजूद भी देखने को मिलता हैं।



Pariksha ke dar me graho ki bhoomika aur jyotish nivaran




बालक या बालिका का पूर्वजन्म में जिस घर में जन्म लेकर उस जन्म में किये गए धार्मिक कर्मो के द्वारा अच्छे गुणों व बुरे गुणों का प्रभाव भी नवीन जन्म के वंश पर ग्रह-नक्षत्रों के असर से धारणा शक्ति, आयु और कर्म आदि का भी तय होता हैं। विद्यार्थियों को अपने विद्यालय एवं उच्च शिक्षण संस्थान में परीक्षा देने के समय उपरोक्त बातों की जानकारी भी कराना चाहिए। बालक-बालिकाओं के पढ़ाई के लिए उचित वातावरण के साथ अध्ययन कमरा अध्ययन की दृष्टि से ठीक होना चाहिए जिससे उनको किसी भी तरह की पढ़ाई में बाधा नहीं होवें। उनके अध्ययन कक्ष में वास्तुदोष भी नहीं होना चाहिये, अन्यथा उनके मस्तिष्क पर वास्तुदोष के कारण असर होगा। जो भी विद्यार्थी परीक्षा देने से पूर्व अपने पाठ्यक्रम पूर्ण करते हुए, पाठ्यक्रम के विषयों को पूरी तरह अपने मस्तिष्क के क्षेत्र में याद रखना चाहते है, जिससे उनका विषय के अनुसार पेपर अच्छा हो जावे और उस विद्यार्थी को अच्छे अंक मिल जावे। इस तरह से पूरी तैयारी करने के बाद भी विद्यार्थियों के मन के कोने में डर बैठा होता हैं, की विषय से सम्बंधित पेपर कैसे होगा, फिर वे उन विचारों में डूबे रहते हैं, जिससे उनके मन में आत्मविश्वास कम होने लगता हैं। इन तरह से परीक्षा के डर को विद्यार्थियों के मन से निकालने में ज्योतिष शास्त्र में कुछ वर्णित सूत्र बताए गए हैं, उनको जानकर विद्यार्थियों का उत्साह बढ़ सकता हैं। परीक्षा के बारे में विद्यार्थियों के मन में डर रहता हैं, प्रश्नपत्र कैसा आयेगा व कितने प्रश्न वह कर पाएंगे। इन सबमें ज्योतिष शास्त्र के ग्रहों का बहुत ही योगदान रहता हैं, जिससे विद्यार्थियों के मन में उत्साह का संचार किया जा सकता हैं, जो विद्यार्थियों पाठन से कमजोर होते हैं, उनकी जन्मकुंडली का विश्लेषण करके जन्मकुंडली में विद्या के कारकेश एवं आत्मविश्वास के कारकेश को बल प्रदान करके उन विद्यार्थियों के मन में उत्साह एवं आत्मविश्वास को बढ़ाने में ज्योतिष शास्त्र के योगों का योगदान हो सकता हैं।




परीक्षा में डर के ज्योतिषीय कारण:-परीक्षा में डर के कारण ज्योतिष के अनुसार ग्रहों को बताया गया हैं, जो कि इस तरह है:



◆जन्मकुंडली में चौथा घर सोचने-समझने एवं निश्चय करने की मानसिक या विवेक शक्ति और पांचवां घर विषय का क्रमबद्ध ज्ञान या शिक्षा को अपने अधिकार क्षेत्र में लेने का या समाहित करने का होता हैं।



◆जब चोथे घर और पांचवे घर बुरे ग्रहों की युति हों, बुरे ग्रहों के इन घरों में बैठने से और इन घरों में बुरे ग्रहों की दृष्टि होने पर इन घरों को मजबूती के लिए इनके उपाय करने चाहिए।




रवि ग्रह:-रवि ग्रह जो कि ग्रहों का राजा होता हैं, जो कि आत्मा, पिता और खुद पर यकीन का कारकेश होता है, यदि जन्मकुण्डली में रवि ग्रह पर जब बुरे ग्रहों के द्वारा देखा जाता है या बुरे ग्रहों के साथ एक ही घर में बैठ जाते हैं, तब उन बुरे ग्रहों के प्रभाव के कारण विद्यार्थी के मन में खुद पर यकीन नहीं कर पाते है, इसलिए इन विद्यार्थियों की जन्मकुण्डली का विश्लेषण करके रवि ग्रह को ज्योतिषी उपायों द्वारा मजबूती प्रदान कर सकते हैं, जिससे विद्यार्थी के मन में खुद पर यकीन की जागृति होने से वह परीक्षा में अच्छा पेपर कर सके एवं अच्छे अंको को हासिल कर पावे।



◆जब जन्मकुंडली में रवि ग्रह पर मन्द ग्रह या सेंहिकीय या शिखी ग्रह के बुरे प्रभाव में होने पर भी विद्यार्थी अपने आप पर विश्वास कम हो जाता हैं।



◆जब जन्मकुंडली में रवि ग्रह अपनी नीच राशि तुला राशि या अपने शत्रु राशि के घर में बैठते है, तब भी खुद पर यकीन में कमी करते हैं।



भौम ग्रह:-ग्रहों में भौम ग्रह को रक्षा करने वाला बताया गया है, भौम ग्रह शरीर में ऊर्जा का संचार, जोश, सामर्थ्य, शौर्य और मन की दृढ़ता से किसी काम को करने में प्रवृत्त करने का कारकेश माना जाता है।


◆जब जन्मकुंडली में भोम ग्रह पर मन्द ग्रह या सेंहिकीय या शिखी ग्रह के बुरे प्रभाव में होने पर भी विद्यार्थी में शरीर की ऊर्जा संचार में कमी आने लगती है, जिससे विद्यार्थी के मन में नकारात्मक विचारों से मन भटकने लगता है और उसके कार्य सामर्थ्य में कमी आने लगती हैं।



◆जब जन्मकुंडली में भौम ग्रह अपनी नीच राशि कर्क राशि या अपने शत्रु राशि के घर में बैठते है, तब विद्यार्थी के मन में अनेक तरह के भावों की जागृति होने से मन भटकने लगता हैं।




छात्रवृतिधारी को परीक्षा के डर को उत्पन्न करने में सहायक चन्द्रमा ग्रह:-जब बालके या बालिकाओं के मन का स्वामी चन्द्रमा उनकी जन्मकुंडली में बुरे ग्रहों के साथ बैठा होता हैं, उस पर बुरे ग्रहों की युति होती हैं और बुरे ग्रहों के द्वारा देखा जाता हैं, तब चन्द्रमा निर्बल हो जाता हैं, इस तरह से चन्द्रमा के निर्बल होने से बुरे ग्रहों का असर उस बालक या बालिका की जन्मकुंडली में निर्बल चन्द्रमा पर होने लगता हैं, जिससे बालक या बालिका में अस्थिरता के भाव उत्पन्न होने लगते हैं और उनको डर लगता हैं कि परीक्षा में पास होंगे या नहीं। 



सौम्य ग्रह एवं जीव ग्रह:-सौम्य ग्रह को राजकुमार एवं जीव ग्रह को गुरु का पद ग्रहों में मिला हुआ है, इस तरह सौम्य ग्रह बुद्धि, सोचने समझने की शक्ति एवं जीव ग्रह को समग्र ज्ञान के क्षेत्र का, उच्च शिक्षा आदि का कारकेश बताया गया हैं।



◆जब जन्मकुंडली के पांचवे घर एवं पांचवे घर के मालिक यदि बुरे ग्रहों के प्रभाव में होते है, तब विद्यार्थियों के मन में परीक्षा का डर बढ़ जाता हैं।



◆जन्मकुंडली के नवें घर एवं नवे घर पर भी पाप ग्रहों का असर होने पर भी विद्यार्थियों के उच्च शिक्षा को पाने में बाधा आती हैं।



विद्यार्थियों की रुचि किस विषय में है, इसकी जानकारी किसी जानकार ज्योतिषी को जन्मकुंडली दिखाकर उसका विश्लेषण करवाने पर पता चल जाता हैं।



छात्रवृतिधारीयों को दैनिक जीवन में ध्यान रखने योग्य बातें:-छात्रवृतिधारीयों को अपनी विद्या में प्रगति पाने और अपनी परीक्षा के कारण उत्पन्न डर को मिटाने के लिए निम्नलिखित बातों का पालन करना चाहिए एवं उन दोषों से बचना चाहिए, जो इस तरह हैं-



1.छात्रवृतिधारी के शयन कक्ष में सोने के समय की दिशा:-छात्रवृतिधारी को अपने अध्ययन में रुचि बढ़ाने के लिए शयन कक्ष में सोते समय अपने सिर को निम्नलिखित प्रकार से रखना चाहिए-


नोत्तराभिमुखः सुप्यात् पश्चिमाभिमुखो न च।। (लघुव्यासस्मृति २/८८)


उत्तरे पश्चिमे चैव न स्वपेद्धि कदाचन।।


स्वप्नादायुःक्षयं याति ब्रह्महा पुरुषो भवेत्।


न कुर्वीत ततः स्वप्नं शस्तं च पूर्वदक्षिणम्।। (पद्म पुराण, सृष्टि. ५१/१२५-१२६)


प्राच्यां दिशि शिरश्शस्तं याम्यायामथ वा नृप।


सदैव स्वपतः पुंसो विपरीतं तु रोगदम्।। (विष्णुपुराण ३/११/१११)


प्राक् शिरः शयने विद्याद्धनमायुश्च दक्षिणे।


पश्चिमे प्रबला चिन्ता हानिमृत्युरथोत्तरे।। (आचार्यमयूख; विश्वकर्मप्रकाश)



अर्थात्:-जो विद्यार्थी उच्च विद्या को पाना चाहते हैं, उनको पूर्व दिशा की तरफ अपना सिर रखकर सोना चाहिए।


◆जो विद्यार्थी अपने जीवन में बहुत सारे रुपयों-पैसों की और अपने जीवन की गति को ज्यादा वर्षों तक भोगने की इच्छा रखते हैं उनको दक्षिण दिशा की तरफ सिर रखना चाहिए।


◆जिनको बिना मतलब की परेशानियों को भोगना होता है, वे अपना सिर पश्चिम दिशा की ओर रखकर सोते हैं।


◆जो विद्यार्थी अपना सिर उत्तर दिशा की तरफ रखकर सोते हैं उनको अपने जीवन में विद्या से संबंधित नुकसान एवं अपनी उम्र की भी हानि करते हैं और शरीर में बीमारी को उत्पन्न करते हैं।


◆छात्रवृतिधारी को हमेशा अपना सिर पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर करके सोना चाहिए।


◆विद्यार्थी का अन्न-भण्डार, गौशाला, गुरु-स्थान और मन्दिर के ऊपर शयनकक्ष नहीं होना चाहिए।



2.प्रातःकाल उठने का समय:-जो विद्यार्थी अपने जीवन में उच्च शिक्षा को पाने की चाहत रखते हैं, उनको प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त अर्थात् चार से पांच बजे के समय में उठना चाहिए। यह समय एकदम शांत होता हैं, जिससे जो भी पढ़ा जाये वह शीघ्र याद हो जाता हैं।



3.शौच करने की दिशा:-का ध्यान रखना चाहिए।


उदङ्मुखो दिवा मूत्रं विपरीतमुखो निशि। (विष्णुपुराण ३/११/१३)


दिवा सन्ध्यासु कर्णस्थब्रह्मसूत्र उदङ्मुखः।


कुर्यान्मूत्रपुरीषे तु रात्रौ च दक्षिणामुखः।। (याज्ञवल्क्य. १/१६, वाधूल.८)



अर्थात्:-छात्रवृतिधारी को दिन में उत्तर की और रात्रिकाल में दक्षिण दिशा की ओर मुख करके मल-मूत्र का त्याग करना चाहिए। इस तरह से मल-मूत्र करने से उम्र की कमी नहीं होती हैं।



उभे मूत्रपुरीषे तु दिवा कुर्यादुदङ्मुखः।


रात्रौ कुर्याद्दक्षिणास्य एवं ह्यायुर्न हीयते।। (वसिष्ठस्मृति ६/१०)


अर्थात्:-विद्यार्थियों को कभी भी सुबह पूर्व दिशा की ओर तथा रात्रि पश्चिम दिशा की ओर मुख करके मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए, यदि ऐसा करने से सिरदर्द या आधासीसी (माइग्रेन) रोग होता हैं।



4.दांतों को साफ करने के लिए मंजन या दातुन की दिशा:-का ध्यान रखना चाहिए।।


प्राङ्मुखस्य धृतिः सौख्यं शरीरारोग्यमेव च।


दक्षिणेन तथा कष्टं पश्चिमेन पराजयः।।


उत्तरेण गवां नाशः स्त्रीणां परिजनस्य च।


पूर्वोत्तरे तु दिग्भागे सर्वान्कामानवाप्नुयात्।। (आचार्यमयूख)


अर्थात्:-जो विद्यार्थी अपना मुख पूर्व दिशा की ओर करके दन्तधावन करते हैं, उनमें सहनशीलता, सभी तरह के आराम और शरीर तंदुरुस्त रहता हैं। 


पश्चिमे दक्षिणे चैव न कुर्याद्दन्तधावनम्। (पद्मपुराण सृष्टि.५१/१२५)


◆जो विद्यार्थी अपना मुख दक्षिण दिशा की ओर करके दन्तधावन करते हैं, उनको सभी तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं।


◆जो विद्यार्थी अपना मुख पश्चिम दिशा की ओर करके दन्तधावन करते हैं, उनको सभी तरह से निराशा हाथ आती हैं।


◆जो विद्यार्थी अपना मुख उत्तर दिशा की ओर करके दन्तधावन करते हैं, उनको सभी तरह के अशुभ व अनिष्ट प्राप्त होता हैं।

 

◆जो विद्यार्थी अपना मुख पूर्व-उत्तर दिशा या ईशान कोण की ओर करके दन्तधावन करते हैं, उनकी सभी तरह की मन की इच्छाओं की पूर्ति होती हैं।



◆विद्यार्थी को हमेशा पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही दन्तधावन (दातुन) करना चाहिए-



◆छात्रवृतिधारी को अपनी परीक्षा में कामयाबी को पाने के लिए दूसरे ग्रन्थ के अनुसार हमेशा पूर्व दिशा या ईशान कोण की तरफ अपना मुख करके ही अपने दाँत का दातुन से मंजन करके साफ करना चाहिए।


◆सुबह और खाना खाने के बाद दन्तधावन करना चाहिए और मधुर रस वाली दतवन का उपयोग नहीं करना चाहिए।


आयुर्बलं यशो वर्च प्रजापशुवसूनि च।


ब्रह्म प्रज्ञा च मेधां च त्वां नो देहि वनस्पते।


अर्थात्:-जो विद्यार्थी इस तरह से दांतो को दातुन से मंजन करते हैं, उन लड़कों या लड़कियों के शरीर में किसी भी तरह की व्याधि से पीड़ित नहीं हो पावेंगे और उनमें सहनशीलता के गुण विकसित होंगे और मन की इच्छा के अनुरूप ही अंक प्राप्त होंगे, उम्र की बढ़ोतरी, यश, ताकत, ऐश्वर्य, रुपये-पैसे की प्राप्ति, बुद्धि, मेघा आदि की बढ़ोतरी होती हैं।



5.क्षौरकर्म (बाल कटवाना) करते समय:-विद्यार्थियों को अपने बाल कटवाते समय अपना मुख पूर्व अथवा उत्तर दिशा की तरफ सोमवार, बुधवार, शुक्रवार के दिन ही कटवाने चाहिए।



6.देवपूजन करते समय:-देवी-देवता का पूजन करते समय छात्रवृतिधारी को पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके ही करना चाहिए।



7.खाना खाते समय दिशा:-लड़के या लड़कियों को खाना खाते समय निम्नलिखित दिशाओं को ध्यान में रखना चाहिए। 


मुखस्य धृतिः सौख्यं शरीरारोग्य मेवचं।


पूर्वात्तरें तु दिग्भागें सर्वान्कामान् वाप्नुयात्।।


अर्थात्:-लड़के या लड़कियां को खाना खाते समय अपना मुँह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए, जिससे उनको सूर्यदेव के द्वारा उत्साह व पराक्रम मिल सके और बुधदेव से बुद्धि व सोचने-समझने की शक्ति मिल सकें। इसलिए भोजन हमेशा पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए।


प्राङ्मुखोदङ्मुखो वापि' (विष्णुपुराण ३/११/७८)


प्राङ्मुखSन्नानि भुञ्जीत' (वसिष्ठस्मृति १३/१५)


अर्थात्:-विद्यार्थियों को दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा की ओर मुख करके भोजन नहीं करना चाहिए।


भुञ्जीत नैवेह च दक्षिणामुखो न च प्रतिच्यामभिभोजनीयम्।। (वामनपुराण १४/५१)


अर्थात्:-विद्यार्थी जब दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन करते हैं, तब उस भोजन पर असुरी असर होने लगता हैं और गलत विचारों की उत्पत्ति होने लगती हैं। 


'तद् वै रक्षांसि भुञ्जते' (पाराशरस्मृति १/५९)


अप्रक्षालितपादस्तु यो भुङ्क्ते दक्षिणामुखः।


यो वेष्टितशिरा भुङ्क्ते प्रेता भुञ्जन्ति नित्यशः।। (स्कन्दपुराण प्रभास. २१६/४१)


अर्थात्:-जो विद्यार्थी दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके अपने पैरों को साफ जल से बिना धोये हुए और सिर पर किसी कपड़े को लपेटकर खाना खाते हैं, उनका खाना हमेशा प्रेत अर्थात् नकारात्मक शक्तियां खाती हैं।


यद् वेष्टितशिरा भुङ्क्ते यद् भुङ्क्ते दक्षिणामुखः।


सोपानत्कश्च यद् भुङ्क्ते सर्वं विद्यात् तदासुरम्।। (महाभारत, अनु.९०/१९)


अर्थात्:-जो विद्यार्थी दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके अपने पैरों पर जूते पहने हुए और सिर पर किसी कपड़े को लपेटकर खाना खाते हैं, उनका खाना हमेशा प्रेत अर्थात् नकारात्मक शक्तियां खाती हैं।



प्राच्यं नरो लभेदायुर्याम्यां प्रेतत्वमश्रुते।


वारूणे च भवेद्रोगी आयुर्वितं तथोत्तरे।। (पद्मपुराण, सृष्टि.५१/१२८)


अर्थात्:-जो विद्यार्थी अपना मुख पूर्व दिशा की तरफ रखकर भोजन करते हैं, उनकी उम्र की बढ़ोतरी होती हैं। 



◆जो विद्यार्थी अपना मुख उत्तर दिशा की तरफ रखकर भोजन करते हैं, उनकी उम्र की बढ़ोतरी और रुपये-पैसों की प्राप्ति होती हैं। 

 

◆जो विद्यार्थी अपना मुख पश्चिम दिशा की तरफ रखकर भोजन करते हैं, उनका शरीर बीमारियों का शिकार हो जाता हैं। 



◆जो विद्यार्थी अपना मुख दक्षिण दिशा की तरफ रखकर भोजन करते हैं, उन पर नकारात्मक शक्तियों का असर होने लगता हैं। 

 


4.परीक्षा के दिन वार से उत्पन्न विकार का समाधान:-लड़के या लड़कियों को परीक्षा के दिन वार के कारण उत्पन्न विकार को दूर करने के लिए निम्नाकिंत समाधान करने चाहिए-


१.रविवार के दिन उत्पन्न विकार का समाधान:-रविवार के दिन यदि बालक या बालिका की परीक्षा हो तो पंचामृत का सेवन करके ही जाना चाहिए।


२.सोमवार के दिन उत्पन्न विकार का समाधान:-सोमवार के दिन यदि बालक या बालिका की परीक्षा हो तो दर्पण में अपना मुहं को देखकर और खीर को खाकर जाना चाहिए। 

 

३.मंगलवार के दिन उत्पन्न विकार का समाधान:-मंगलवार के दिन यदि बालक या बालिका की परीक्षा हो तो धनिया या कांजी या गुड़ का सेवन और मिट्टी को छूकर जाना चाहिए।

 

४.बुधवार के दिन उत्पन्न विकार का समाधान:-बुधवार के दिन यदि बालक या बालिका की परीक्षा हो तो मीठी वस्तुओं व गर्म दूध का व तिल का सेवन करके और फूल का स्पर्श करके ही जाना चाहिए।


५.गुरुवार के दिन उत्पन्न विकार का समाधान:-गुरुवार के दिन यदि बालक या बालिका की परीक्षा हो तो राई व दही का सेवन करके ही जाना चाहिए।


६.शुक्रवार के दिन उत्पन्न विकार का समाधान:-शुक्रवार के दिन यदि बालक या बालिका की परीक्षा हो तो कच्चा दूध, घी व जौ का सेवन करके ही जाना चाहिए।


७.शनिवार के दिन उत्पन्न विकार का समाधान:-शनिवार के दिन यदि बालक या बालिका की परीक्षा हो तो उड़द व तिल का सेवन करके ही जाना चाहिए।



इस तरह से लड़के या लड़कियों को परीक्षा के दिन उपरोक्त वस्तुओं का सेवन करके या उन वस्तुओं का नाम लेकर या उन वस्तुओं को छूकर ही जाना चाहिए।



5.विद्यार्थी के द्वारा परीक्षा में जाने से पूर्व करने योग्य काम:-विद्यार्थी को परीक्षा में जाने से पूर्व निम्नलिखित कार्यों को करके ही जाना चाहिए-


१.हाथों के दर्शन करना:-सुबह उठते ही अपने दोनों हाथों को इकट्ठा करते हुए अर्धचंद्र की आकृति बनाकर उस आकृति का दर्शन करना चाहिए।


२.अपने इष्टदेव की पूजा-अर्चना करना:-परीक्षा के दिन अपने इष्टदेव की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, उनकी पूजा में जो चढ़ाए गए फूलों में से एक फूल को अपने साथ रखना चाहिए।


३.चरण स्पर्श करना एवं आशीर्वाद प्राप्त करना:-परीक्षा में जाने से पूर्व विद्यार्थी को अपने परिवार के सभी वृद्धजनों, माता-पिता, गुरु के चरण को स्पर्श करके ही जाना चाहिए, जिससे उनका आशीर्वाद मिल जावें और उनके आशीष से जो सकारात्मक ऊर्जा मिलती हैं, उससे विद्यार्थी की याददाश्त शक्ति बढ़ती हैं।


४.गाय को चारा व कुत्ते को रोटी खिलाना:-परीक्षा के दिन गाय को हरा चारा एवं काले या किसी भी रंग के कुत्ते को रोटी या बिस्कुट खिलाते हुए जाना चाहिए।


इस तरह से उपरोक्त क्रियाओं को करने से मन के अंदर अपनी परीक्षा के डर से मुक्ति मिलती हैं और हिम्मत आती हैं। जिससे अपने ऊपर विश्वास बढ़ता हैं और जो परीक्षा के प्रति डर होता हैं वह दूर होकर मन एक जगह पर स्थिर हो जाता हैं।



6.सात वारों के अनुसार वस्त्रों को पहनना:-विद्यार्थी को सप्ताह के सातों दिनों के अनुसार कपड़ों को पहनना चाहिए, जिससे उनके शरीर पर अलग-अलग रंग के कपडो को पहनने से नौ ग्रहों के स्वरूप से उनको जोश व उत्साह मिल सकें और मन में सकारात्मक भावों का जन्म हो सकें। इसलिए सप्ताह के अनुसार निम्नलिखित रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए- 


१.रविवार के दिन पहनने योग्य रंग के कपड़े:-विद्यार्थी को रविवार के दिन उनके गुलाबी कारक रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए।



२.सोमवार के दिन पहनने योग्य रंग के कपड़े:-विद्यार्थी को सोमवार के दिन उनके श्वेत कारक रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए।



३.मंगलवार के दिन पहनने योग्य रंग के कपड़े:-विद्यार्थी को मंगलवार के दिन उनके रक्त कारक रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए।



४.बुधवार के दिन पहनने योग्य रंग के कपड़े:-विद्यार्थी को बुधवार के दिन उनके हरित कारक रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए।



५.गुरूवार के दिन पहनने योग्य रंग के कपड़े:-विद्यार्थी को गुरुवार के दिन उनके पीत कारक रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए।



६.शुक्रवार के दिन पहनने योग्य रंग के कपड़े:-विद्यार्थी को शुक्रवार के दिन उनके आसमानी एवं चमकदार श्वेत कारक रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए।



७.शनिवार के दिन पहनने योग्य रंग के कपड़े:-विद्यार्थी को शनिवार के दिन उनके कृष्ण कारक रंग के कपड़ों को पहनना चाहिए।



7.अध्ययन में मुहूर्त का असर:-कोई भी मंगलकारी या अच्छा कार्य करते समय मुहूर्त का विचार किया जाता हैं, उसी तरह विद्यार्थी के लिए परीक्षा उसके जीवन का निचोड़ होती हैं, इसलिए परीक्षा में जाने से पूर्व मुहूर्त का विचार जैसे-



१.स्वर विचार:-परीक्षा के दिन विद्यार्थी को स्वर विचार जैसे-इंडा, पिंगला, सुषुम्ना स्वर का ध्यान रखना चाहिए। 


शरीर की रीढ़ की हड्डी में ऊपर मस्तिष्क से लगाकर मूलाधार चक्र या गुदद्वार तक सुषुम्ना नाड़ी रहती हैं, इस नाड़ी के बायीं ओर चन्द्र स्वर नाड़ी और दायीं ओर सूर्य स्वर नाड़ी रहती हैं।

सुषुम्ना नाड़ी स्वर या उभय स्वर:-जब दोनों नासिका छिद्रों से वायु-प्रवाह एक साथ निकलना प्रारम्भ होता हैं। सुषुम्ना स्वर में ध्यान, धारणा, समाधि, प्रभु -स्मरण और कीर्तन श्रेयस्कर हैं। 

नासिका के बायें छिद्र को बायाँ स्वर या चन्द्र स्वर या इंडा नाड़ी स्वर:-सभी तरह के स्थिर, अच्छे कार्य करने पर सफलता मिलती हैं।



नासिका के दाहिने छिद्र को दाहिनी स्वर या पिंगला नाड़ी स्वर या सूर्य स्वर:-सभी प्रकार के चलित, कठिन कार्य करने से सफलता मिलती हैं। इस स्वर में भोजन करना,  विद्या और संगीत का अभ्यास आदि कार्य सफल होते हैं।


उपर्युक्त स्वरों में से कौनसा स्वर परीक्षा के दिन चल रहा हैं, उसकी जानकारी के आधार पर फल समझना चाहिए।


२.राहुकाल का विचार:-परीक्षा के दिन विद्यार्थी को राहुकाल के समय को हो सके तो टालना चाहिए। 



३.चन्द्रमा का विचार:-परीक्षा के दिन विद्यार्थी के नाम या राशि से चन्द्रमा चौथा, छठा, आठवां या बारहवां नहीं होना चाहिए।


४.शकुन-अशकुन का विचार:-परीक्षा के दिन विद्यार्थी को निम्नलिखित शकुन-अशकुन का विचार करके जाना चाहिए।



शुभ शकुन विचार:-परीक्षा के दिन स्याही गिरना, दही सामने आ जाना, पूजा की डाली लिए किसी का सामने आना, भरी बाल्टी का सामने आना, फल या मिठाई सामने आना, कुँवारा लड़की या बच्चा या धोबी का सामने आना, शंख बजना, घंटा या घड़ियाल बजना या पूजा के श्लोक सुनाई देना, मुर्दा श्मशान जाते हुए सामने आना, फूलों का गुलदस्ता सामने आना, फुहार पड़ना, बादल गरजना आदि शुभ शकुन होते हैं।



अशुभ शकुन विचार:-परीक्षा के दिन बिल्ली या सियार या लोमड़ी का रास्ता काटना, किसी का छींक देना, तेली या संन्यासी या विधवा का सामने आना, ओले पड़ना या बिजली चमकना, खाली बाल्टी सामने आना, बच्चे का रोना, कौवे या उल्लू या काकर का बोलना, स्याही सूखना (कलम की), हिचकी आना, कुत्ते का रोना, मांस सामने आना, बताशे आना, दूध पीना आदि अशुभ शकुन होते हैं।



उपर्युक्त मुहूर्त का विचार करके ही परीक्षा में जाना चाहिए।


ब्रह्ममुहूर्त का समय विद्यार्थी के लिए उत्तम समय विद्या प्राप्ति के लिए:-प्रातःकाल चार बजकर चौबीस मिनिट से शुरू होकर पांच बजकर चौबीस मिनिट के समय को ब्रह्ममुहूर्त कहा जाता है, इसलिए विद्यार्थी को इस समय में उठकर अपनी पढ़ाई को करना चाहिए, क्योंकि यह समय बहुत ही शांत एवं मन को एक जगह पर स्थिर रखने वाला होता हैं, इस समय जो कोई भी पढ़ा हुआ बहुत समय तक मस्तिष्क में रहता हैं। इस समय में पढ़ाई करने से वाणी में तेजता आती हैं और बुद्धि तेज होती हैं, क्योंकि बुद्धि के स्वामी गणपति जी को माना जाता हैं। 



मौखिक परीक्षा से पूर्व करने योग्य उपाय:-बुध ग्रह को वाणी का स्वामी व कारक होता हैं। मौखिक परीक्षा में जाने से पहले गणपति को याद करते हुए उनका ध्यान करना चाहिए, जिससे बुद्धि बढ़े और याददाश्त शक्ति भी बढ़े।



◆जब विद्यार्थी परीक्षा के दिन अपने आवास से निकलते समय शुभ वस्तु जैसे-दूब घास, दही, घी, जल से भरे घड़े, बछड़े सहित गाय को छूकर निकलने पर परीक्षा का पर्चा अच्छा होता हैं।



◆जब विद्यार्थी परीक्षा के दिन अपने आवास से निकलते समय बैल, सवर्ण, पीत मिट्टी, स्वस्तिक चिह्न और अक्षत-चावल को छूकर निकलने पर आशा से बढ़कर परीक्षा का पर्चा होता हैं।



◆जब विद्यार्थी परीक्षा के दिन अपने आवास से निकलते समय रास्ते में पीपल के पेड़ को छूकर निकलना चाहिए।



◆जब विद्यार्थी परीक्षा के दिन अपने आवास से निकलते समय रास्ते में या आवास में तुलसी को नीचे झुकर प्रणाम करके एक पल्लव को लेकर आगे बढ़ना चाहिए, जिससे परीक्षा का पर्चा अच्छा होता हैं और परीक्षा का परिणाम अपने सोचे अनुसार ही मिलता हैं। 



◆परीक्षा के दिन दधि, मावा या पेड़ा आदि को खाने पर परीक्षा का पेपर अच्छा होता हैं।



सूर्य ग्रह से मन में उत्पन्न डर को निकालने के उपाय:-जिन बालक या बालिकाओं को खुद पर ज्यादा यकीन नहीं होता हैं, उनको सूर्यदेव की पूजा, सूर्य अर्घ्यं देना, ताम्र धातु के बर्तन में रात्रिकाल में पानी भरकर सुबह उस जल को पीना चाहिए। 



चन्द्रमा ग्रह से मन में उत्पन्न डर को निकालने के उपाय:-जिनका चन्द्रमा कमजोर होता हैं, उन बालक या बालिकाओं को निम्नलिखित उपाय करके अपने चन्द्रमा को मजबूती प्रदान करनी चाहिए-



◆विद्यार्थियों को परीक्षा के दिन भगवान शिवजी के मंदिर परिसर में जाकर शिवजी के दर्शन करना चाहिए, फिर परीक्षा स्थल की जाना चाहिए।



◆यदि परीक्षा के दिन भगवान शिवजी की पूजा विद्यार्थी कर सकते हैं, तो उनको शिवजी की जल अभिषेक, दुग्ध अभिषेक, बिल्व पल्लवों से पूजा-अर्चना करनी चाहिए, उसके बाद ही परीक्षा के लिए जाना चाहिए।



◆चन्द्रमा ग्रह को बल देने के लिए बालक या बालिकाओं को किसी योग्य पण्डित से मोती ग्रह को अभिमंत्रित करवाकर रजत धातु में बनवाकर पहन लेना चाहिए, जिससे मन में बुरे विकार नहीं आ पाते हैं और मन एक जगह पर केद्रित रहता है।



मंगल ग्रह से मन में उत्पन्न डर को निकालने के उपाय:-जिन बालक या बालिकाओं में पढ़ने के प्रति उत्साह नहीं हो, उनको गुड़ का सेवन करते हुए भगवान श्रीराम और पवनपुत्र हनुमानजी की पूजा करनी चाहिए। 



बुध ग्रह से मन में उत्पन्न डर को निकालने के उपाय:-जिन बालक या बालिकाओं की स्मरण शक्ति कमजोर हो, वे भगवान गणपति जी की पूजा, हरित वर्ण साग-सब्जियों जैसे-पालक, हरित टमाटर आदि का सेवन करना चाहिए।



गुरु ग्रह से मन में उत्पन्न डर को निकालने के उपाय:-जिन बालक या बालिकाओं पढ़ने-समझने में दिक्कत होती हैं, उनको दुग्ध में हरिद्रा पाउडर, बादाम आदि मिलाकर पीना चाहिए और भगवान चक्रपाणि जी की पूजा करनी चाहिए।  




विद्या के कारक ग्रह:-विद्यार्थी को अपने जीवन में अपनी रुचि के अनुसार ही विद्या के मार्ग को अपनाना चाहिए, विभिन्न विद्या के क्षेत्र जिनको जानकार विद्यार्थी अपना पथ की राह को पकड़ सकते हैं-



१.सूर्य ग्रह शिक्षा के स्वामी:-सूर्य ग्रह को प्रशानिक शिक्षा का स्वामी माना जाता है। इसलिए जिनकी रुचि प्रशानिक शिक्षा प्राप्त करनी होती हैं, उनको सूर्य ग्रह से सम्बंधित पूजा-अर्चना एवं मंत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा दृष्टि मिल सकें।



२.चन्द्रमा ग्रह शिक्षा के स्वामी:-चन्द्रमा ग्रह को रसायन व वनस्पति शिक्षा का स्वामी माना जाता है। इसलिए जिनकी रुचि रसायन व वनस्पति शिक्षा में होती हैं, उनको चन्द्रमा ग्रह से सम्बंधित पूजा-अर्चना एवं मंत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा दृष्टि मिल सकें।



३.मंगल ग्रह शिक्षा के स्वामी:-मंगल ग्रह को पुलिस विभाग, सेना की शिक्षा का स्वामी माना जाता है। इसलिए जिनकी रुचि पुलिस विभाग, सेना में जाने की होती हैं, उनको मंगल ग्रह से सम्बंधित पूजा-अर्चना एवं मंत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा दृष्टि मिल सकें।



४.गुरु ग्रह शिक्षा के स्वामी:-गुरु ग्रह को उच्च शिक्षा का स्वामी माना जाता है। इसलिए जिनकी रुचि उच्च शिक्षा में होती हैं, उनको गुरु ग्रह से सम्बंधित पूजा-अर्चना एवं मंत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा दृष्टि मिल सकें।



५.शुक्र ग्रह शिक्षा के स्वामी:-शुक्र ग्रह को नृत्य-संगीतकला, कॉमर्स और व्यावसायिक शिक्षा का स्वामी माना जाता है। इसलिए जिनकी रुचि नृत्य-संगीतकला, कॉमर्स और व्यावसायिक शिक्षा करनी होती हैं, उनको शुक्र ग्रह से सम्बंधित पूजा-अर्चना एवं मंत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा दृष्टि मिल सकें।


६.शनि व मंगल ग्रह शिक्षा के स्वामी:-शनि व मंगल ग्रह को मेडिकल शिक्षा का स्वामी माना जाता है। इसलिए जिनकी रुचि मेडिकल शिक्षा में होती हैं, उनको शनि व मंगल ग्रह से सम्बंधित पूजा-अर्चना एवं मंत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा दृष्टि मिल सकें।



७.शनि व बुध ग्रह शिक्षा के स्वामी:-शनि व बुध ग्रह को तकनीकी व कम्प्यूटर शिक्षा का स्वामी माना जाता है। इसलिए जिनकी रुचि तकनीकी व कम्प्यूटर शिक्षा में होती हैं, उनको शनि व बुध ग्रह से सम्बंधित पूजा-अर्चना एवं मंत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा दृष्टि मिल सकें।



८.राहु ग्रह शिक्षा के स्वामी:-राहु ग्रह को इंजीनियरिंग शिक्षा का स्वामी माना जाता है। इसलिए जिनकी रुचि इंजीनियरिंग करनी होती हैं, उनको राहु ग्रह से सम्बंधित पूजा-अर्चना एवं मंत्र का पाठ करना चाहिए, जिससे उनकी कृपा दृष्टि मिल सकें।



विशेष:-विद्यार्थी को परीक्षा में जाते समय वार अर्थात् दिन का ध्यान रखना चाहिए, यदि दिन या वार परीक्षा के दिन ठीक नहीं हो, तो उस वार या दिन के दोष का निराकरण करके ही जाना चाहिए।