देवी-देवता की पूजा में दीपक और बाती की भूमिका (Role of lamp and wick in the puja of devi and devta):-मानव सभ्यता की उत्पत्ति के साथ ही रोशनी का प्रादुर्भाव हुआ था। पहले मानव सूर्य की रोशनी से अपने दैनिक कार्य को करते थे, जैसे-जैसे उन्होंने विकास किया तो उन्होंने आटे व मिट्टी का दीपक का उपयोग अपने निवास स्थान में करने लगे। फिर मानव सभ्यता जैसे-जैसे विकसित होती गई और समाज चार वर्ण व्यवस्था में बंटा वैसे-वैसे अलग-अलग तरह दीपक और बाती का उपयोग होने लगा। पहले समय गरीब व औसत वर्ग के मानव अपने निवास स्थान में तिमिर को खत्म करने के लिए मिट्टी या आटे का दीपक बनाकर उसमें तेल से भरकर हाथ से पतले वसन को एक साथ बटकर उसकी बाती बनाकर उजाला किया करते थे और धनी-उन्नतिशील और प्रधान शासक व स्वामी और सम्राट वर्ग के राज्य से सम्बन्धित अपने राजप्रासाद में रोशनी के लिए कई बहुमूल्य धातुओं से बने दीपक जैसे-स्वर्ण, रजत, ताम्र, अयस, पीतल आदि को उच्च श्रेणी के स्नेहक द्रव जैसे-घृत, तेल, मालती का तेल आदि और उच्च श्रेणी की वस्तुओं जैसे-वसन, रेशमी, कपास की रुई को बठकर बाति बनाकर उनका उपयोग तिमिर के बुरे असर को खत्म करके उजाला किया करते थे।
पुराने समय से चली आ रही रीति से मनुष्य के तौर-तरीके, दूसरे समाज के लोगों के बीच में रहते हुए उनके साथ बर्ताव करने का तरीका, जीवन की शैली पर यकीन करते हुए, सेवा, धार्मिक यकीन पर मन में उत्पन्न ख्याल, अच्छे मनुष्य की तरह चरित्र व चाल-चलन वाला सलूक करना, दूसरों के प्रति अच्छा सलूक करना, सरलता और दूसरों की भलाई की चाहत आदि के बहुत सारे ख्याल दिखाई देते हैं।
हिन्दुधर्म में देवी-देवता की पूजा-अर्चना करना भी बहुत आवश्यक होती हैं। हिन्दुधर्म में तैंतीस कोटि देवी-देवता का आशीष पाने के लिए उनके कई तरह के विधान बताये गये जैसे-मंत्र, तंत्र, यंत्र, स्तोत्र, कवच, पूजा-पद्धति, हवन आदि उन सभी तरह की पूजा पद्धति में दीपक की भूमिका बहुत होती हैं, दीपक के बिना कोई भी पूजा पूर्ण नहीं होती हैं, देवी-देवता की पूजा-आराधना करते समय आरती के समय दीपक को प्रज्ज्वलित किया जाता है। पुराने जमाने से दीपक जलाने की रिवाज चला आ रहा हैं और आज के काल में पूजा में दीपक जलाकर ही शुभ कार्य को किया जाता हैं। भगवान के मंदिर या अपने निवास स्थान में प्रज्ज्वलित दीपक की लौ से अनेक तरह के फूल बनते हैं, उनके आधार पर मानव के ऊपर ईश्वर की अनुकृपा होती हैं और ईश्वर के द्वारा उनकी पूजा से प्रसन्न होने पर आशीष स्वरूप अन्न-धन, आराम साधन, मन की स्थिरता एवं वैभव आदि मिलता हैं।
देवी-देवता की पूजा में दीपक कैसा हो और बाती का स्वरूप क्या हो?(What should be the nature of the lamp and what should be the form of the wick in the worship of Gods and Goddesses?):-देवी-देवता की पूजा-अर्चना करते समय दीपक एवं बाती के बारे में जानना जरूर होता हैं, जिससे मनुष्य के मानसिक सोच और लक्ष्य की प्राप्ति हो सकें।
दीपक का अर्थ:-जब किसी भी वस्तु जैसे-आटे, मिट्टी या धातुओं जैसे-स्वर्ण, ताम्र, रजत, अयस आदि को गोलाकार में डालकर जो आधान बनता हैं और उसमें चिकने पदार्थ एवं सूत या वसन की बाती को डालकर उजाला करने के लिए जलाया जाता हैं, उसे दीपक कहते हैं।
दीपक के अन्य नाम:-दीपक चिराग, तिमिररिपु, दिया, बत्ती प्रदीप, तिमिरहर दिवली, दीप, दीपक, शिखी, सारंग आदि हैं।
दीपक का स्वरूप क्या हैं?:-दीपक की देह तेल, घृत आदि चिकने पदार्थ, दीपक के आंतरिक या बीच के भाग में स्थित बाती सार तत्व, दीपक के जलने से निकलने वाली रोशनी से उम्र, बिना मैल से संतुष्टि एवं गन्दगी से पीड़ा, दीपक का रूप उसका निवास स्थान, बहुत धीमी गति से चलने वाली हवा उसकी दोस्त और बहुत तेजी से चलने वाली हवा उसकी दुश्मन हैं। इस तरह से श्रेष्ठ दैव शक्ति रूपी दीपक का स्वरूप हैं।
दीपक में नौ ग्रहों की भूमिका व स्वरूप:-दीपक व बाती में नौ ग्रहों का स्वरूप और भूमिका निम्नलिखित हैं। दीपक को प्रज्ज्वलित करने से ही नौ ग्रहों की पूजा-अर्चना हो जाती हैं एक साथ ही नौ ग्रहों का आशीष देने का सामर्थ्य तौर पर दीपक आकाशीय ग्रह व नक्षत्रों आदि की चमक का प्रतीक हैं और दीपक में तरह-तरह रंग होते हैं।
सूर्य ग्रह का स्वरूप एवं भूमिका:-प्रज्वलित दीपक का रुक-रुक कर चमकना सूर्य का स्वरूप हैं और दीपक की रुक-रुक कर रोशनी के चमकने से तिमिर का नाश हो जाता हैं। दीपक अग्नि, विद्युत और सूर्य का अंश ही हो है, जो ऊर्जा, ऊष्मा और उजाले के स्त्रोत है।
चन्द्रमा ग्रह का स्वरूप एवं भूमिका:-प्रज्ज्वलित दीपक के रोशनी से कतार के रूप में उजाला हाजिर होकर आंखों को अलौकिक खुशी को महसूस करवाकर शीतलता प्रदान करता हैं।
मंगल ग्रह का स्वरूप एवं भूमिका:-जो दीपक पंचतत्व जैसे-अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी, आकाश आदि में से भूमि का बेटा मंगल होने से दीपक मिट्टी का प्रतीक होता है। मंगल ग्रह के स्वभाव, निपुणता आदि दीपक की मिट्टी के अंदर स्थित है।
शनि ग्रह का स्वरूप एवं भूमिका:-दीपक के अंदर जो द्रव्य जैसे-तेल, घृत भरा जाता हैं, वह शनि की संरचना हैं, जिससे दीपक जलाता है और रोशनी उत्पन्न होती हैं।
गुरु ग्रह का स्वरूप एवं भूमिका:-दीपक के जलने पर उसकी लौ में पीत और रक्त वर्ण की चमक उत्पन्न होती हैं।
शुक्र ग्रह का स्वरूप एवं भूमिका:-दीपक के जलने पर उसकी लौ में पीत और रक्त वर्ण के अलावा श्वेत रंग की चमक उत्पन्न होती हैं।
बुध ग्रह का स्वरूप एवं भूमिका:-जलते हुए दीपक पीत और रक्तवर्ण के साथ आसमानी रंग की कान्ति वाला वर्ण पीत और रक्तवर्ण से हरापन रंग में बदलने पर बुध ग्रह का स्वरूप बन जाता हैं।
राहु-केतु का स्वरूप एवं भूमिका:-जलते हुए दीपक की लौ से ऊपर की जाता हुआ काले-नीलेपन का शिखीध्वज राहु-केतु का स्वरूप होता हैं।
विशेष:-निम्नलिखित रूप से हैं।
◆इस तरह शनि (जलाने में सहायक द्रव्य तेल, घृत) एवं मंगल (मिट्टी) इन दोनों के मिलने से प्रकाश रुपी उजाला होता हैं।
◆जब शनि (जलाने में सहायक द्रव्य तेल, घृत), मंगल (मिट्टी) , शुक्र (श्वेत रंग की लौ), गुरु (पीत व रक्त वर्ण की लौ) आदि चारों का संयोग होता हैं तब उजाला हाजिर होता हैं।
देवी-देवता की पूजा के लिए दीपक का स्वरूप या प्रकार:-निम्नलिखित हैं।
दीपक के प्रकार:-दीपक के चार प्रकार बताये गये हैं।
1.सामान्य गहरा दीपक।
2.गहरा एवं गोल दीपक।
3.त्रिकोण दीपक।
4.मध्यलम्बवत्त या सीधा या ऊंचा या खड़ा।
5.ऊँची लम्बवत् दीपक।
1.सामान्य गहरा दीपक से रुपये-पैसे, जमीन-जायदाद और समृद्धि के लिये हरिप्रिया की आशीर्वाद हेतु:-जिन मनुष्यों को रुपये-पैसों की ज्यादा चाहत होती हैं और माता कमलाजी की अनुकृपा के लिए मामूली बहुत नीचे तल वाला दीपक का इस्तेमाल करना चाहिए।
2.मध्यलम्बवत्त या सीधा या ऊंचा या खड़ा दीपक से अपने बैरी की परेशानी और तकलीफों से मुक्ति हेतु:-मध्यलम्बवत दीपक का इस्तेमाल करना चाहिए।
3.गहरा एवं गोल दीपक से आराध्य देवता से कार्य में सफलता और वस्तुओं या विषयों की विवेक से जानकारी हेतु:-तल से बहुत नीचे और गोल दीपक का इस्तेमाल करना चाहिए।
४.त्रिकोण दीपक से पवनपुत्र बजरंगबली की अनुकृपा पाने हेतु:-पवनपुत्र बजरंगबली जी की पूजा-अर्चना के लिए त्रिकोने या तीन कोने वाले दीपक का इस्तेमाल करना चाहिए, जिससे जीवनकाल में बुरी व नकारात्मक शक्तियों जैसे-भूत-प्रेत, डाकिनी-शाकिनी आदि और सभी तरह से कार्यों में सफलता के लिए मिल सकें और बजरंगबली की अनुकृपा मिल जावें।
5.ऊँची लम्बवत् दीपक:-सामान्य से ऊपर की उठा सीधा खड़ा हुआ दीपक को देवी-देवता की पूजा में उपयोग करने से शरीर की तन्दुरुस्ती बनी रहती हैं और अपने जीवन में सोची हुई कामना की पूरी होने की उम्मीद बनती हैं।
दीपक की बनावट या आकृति के अनुसार भेद:-दीपक की आकृति के अनुसार दीपक के बहुत सारे भेद शास्त्रों में वर्णित हैं, लेकिन जो मुख्य रूप में उपयोग आते हैं, वे निम्नलिखित हैं।
1.प्रणती दीपक:-जिस दीपक का आगे भाग ऊँचा हो अर्थात् आगे की तरफ झुका हुआ होता हैं, वह प्रणती दीपक होता हैं। प्रज्वलित दीपक की बत्ती की लौ मनुष्य को अपनी ओर रखना चाहिए, जिससे जीवनकाल में किसी भी तरह की व्याधियों का असर नहीं हो सकें।
2.निरन्जन दीपक:-जो दीपक बीच में पतला और दोनों सिरों पर चौड़ा अर्थात् डमरू के आकृति समान होता हैं, उसके पाँच या छः या सात मुख बाती को जलाने के लिये होते हैं। निरन्जन दीपक को घृत से परिपूर्ण बाती से युक्त ईश्वर के सामने दाईं तरफ लगाया जाता हैं और रोगन से परिपूर्ण दीपक को नहीं लगाना चाहिए, अन्यथा मनुष्य की आर्थिक स्थिति कमजोर होती जाती हैं और बिना मतलब के खर्चे बढ़ते जाते हैं और दूसरों के आगे हाथ फैलाना पड़ जाता हैं।
3.बटी निरन्जन दीपक:-जो दीपक बीच में पतला व दोनों सिरों पर चौड़ा और गोल अर्थात् गुंबद के आकृति समान नहीं होता हैं, रोगन से परिपूर्ण दीपक को लगाना चाहिए।
4.कुबेर निरन्जन दीपक:-जिस दीपक का मुँह नुकीला और आगे निकला होता हैं अर्थात् पक्षियों की चोंच के समान आकृति का होता हैं और उसको पकड़ने के लिए बीच में जगह और सहारे के स्टैंड होती हैं, जब घृत से परिपूर्ण दीपक को प्रज्वलित करते समय उस दीपक में घृत के साथ लवंग, निदिग्धा, काली वल्लिज, कनीनिका, तंदुल और कुसुम के पल्लवों आदि भी डालना चाहिए, जिससे निवास स्थान में अन्न-धन का गोदाम भरा रहता है और खुशहाली रहती हैं।
5.मिट्टी दीपक:-जो दीपक कच्ची मिट्टी को गूंथकर अग्नि में पकाकर बनाये जाते हैं, उनको घृत या तेल से बत्ती को परिपूर्ण करके प्रज्वलित करने पर दश दिशाओं का सभी तरह के सुख-सुविधा की प्राप्ति होती हैं।
6.आटे का दीपक:-हिन्दुधर्म के वर्णित शास्त्रों में सबसे अच्छा दीपक धान्य प्रदाथों जैसे-वलाट, तंदुल, माष, गोधूम और जवनाल आदि के आटे का समान-समान भाग लेकर उनको गूंधकर गोल बनाया दीपक देवी-देवताओं की पूजा में सबसे अच्छा होता हैं। यदि चार दिशाओं में दीपक लगाना हो, तो अलग-अलग चार आटे के दीपक बनाकर अलग-अलग चार बत्तियां डालकर प्रज्वलित करना चाहिए।
दीपक का निर्माण:-पुराने जमाने में दीपक गेहूँ या ज्वार के आदि धान्य द्रव्यों के आटे को गूंधकर और कच्ची मिट्टी को पकाकर बनाया जाता था, जैसे-जैसे मानव में सोचने-समझने की शक्ति का विकास हुआ वैसे-वैसे दीपक निर्माण में तरह-तरह की धातुओं का उपयोग होने लगा। इस तरह दीपक स्वर्ण, रजत ताम्र, अयस और पीतल आदि धातुओं से बनाया हुआ हो सकता हैं।
अलग-अलग वर्गों के लिए दीपक:-सामाजिक जीवन में चार वर्ण जैसे-क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य और शूद्र थे। उन चार वर्ग के वर्णों में अलग-अलग चीजों से अपने निवास स्थान या देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना में दीपक का उपयोग किया जाता था।
क्षत्रिय वर्ग:-क्षत्रिय वर्ग के लोग सभी तरह की मूल्यवान धातुओं स्वर्ण, रजत ताम्र, अयस और पीतल आदि से बने हुए दीपक का उपयोग किया करते थे।
ब्राह्मण वर्ग:-ब्राह्मण वर्ग के लोग सभी तरह की मूल्यवान धातुओं में से ताम्र धातु एवं विशेषकर मिट्टी या धान्य पदार्थों से बने हुए दीपक का उपयोग किया करते थे।
वैश्य वर्ग:-वैश्य वर्ग के लोग सभी तरह की मूल्यवान धातुओं स्वर्ण, रजत ताम्र, अयस और पीतल आदि से बने हुए दीपक का उपयोग किया करते थे।
शुद्र वर्ग:-शुद्र वर्ग के लोगों को हीन समझा जाने से वे अपने निवास स्थान व पूजा-अर्चना में मिट्टी और धान्य पदार्थों के आटे से बनेहुए दीपक का उपयोग किया करते थे।
धर्मशास्त्रों के अनुसार सर्वश्रेष्ठ दीपक:-हिन्दुधर्म के वर्णित शास्त्रों में सबसे अच्छा दीपक धान्य पदार्थों से गूंधकर बनाया हुआ दीपक देवी-देवताओं की पूजा में सबसे अच्छा होता हैं।
बाती और स्नेहक द्रव:-हिन्दुधर्म में तैतीस कोटि देवी-देवता माने गये हैं, उन तैंतीस कोटि देवी-देवता की पूजा-आराधना करनी की अलग-अलग विधि-विधान, अलग-अलग सामग्री की जरूरत पड़ती हैं। देवी-देवता की पूजा-आराधना में दीपक व बाती के साथ ही अलग-अलग स्नेहक द्रव की जरूरत पड़ती हैं, उनका प्रभाव मानव जीवन के अलग-अलग उद्देश्य की पूर्ति के हेतु होता हैं। इसलिए देवी-देवता को खुश करने के लिए निम्नलिखित बाती और स्नेहक द्रव का उपयोग करना चाहिए।
बाती या वर्त्ती या बत्ती की परिभाषा:-जब ऊनी, सूती या रेशमी धागे से बनाएँ हुए वसन या कपास के डोडे का अंदरूनी पतले-पतले तन्तु के भाग से बना सूत या पिंजा के अनेक धागों को बटाई करके जो बनती हैं, उसे बत्ती कहते हैं, जिसका उपयोग दीया में चिकने पदार्थ के साथ में रखकर जलाने में करते हैं।
बाती के प्रकार:-दो प्रकार होते हैं।
1.लंबी बाती।
2.गोल बाती।
1.लंबी बाती का अर्थ:-जब रुई के अलग-अलग तन्तु को हाथ से बटकर ऊपर-नीचे और बीच का भाग समान रूप से लम्बाई में बनता हैं, उसे लंबी बाती कहते हैं।
लंबी बाती से युत दीपक को किन-किन देवी-देवता के सामने प्रज्ज्वलित करना चाहिए:-जो निम्नलिखित हैं।
◆जब आमलकी वृक्ष की पूजा करते समय आमलकी वृक्ष के मूल में लंबी बाती से युत दीपक को जलाना चाहिए।
◆सिन्धुसुता या हरिप्रिया, सिंहवाहिनी या कामाक्षी, हंसवाहिनी या ज्ञानदा देवी के साथ अन्य देवी की पूजा-अर्चना और परिवार में परंपरागत रूप से देवता की पूजा करते समय लंबी बाती के दीपक को जलाना चाहिए।
◆कृष्ण पक्ष की अमावस्या या एकादशी तिथि के दिन अथवा दूसरे दिनों में पितरों को खुश करने में लंबी बाती का उपयोग करना चाहिए, जिससे पितरों का आशीर्वाद मिल सके।
लंबी बाती का उपयोग करने से:-निम्नलिखित लाभ मिलते हैं।
◆मनुष्यों को रुपये-पैसे के लिए लंबी बाती से युत दीपक को जलाना से लाभ मिलता हैं।
◆परिवार या वंश के सदस्यों की बढ़ोतरी के लिए लंबी बाती से युत दीपक को जलाना से लाभ मिलता हैं।
◆मन की इच्छाओं की पूरी करना के लिए लंबी बाती से युत दीपक को जलाना से लाभ मिलता हैं।
◆सफलता, उन्नति, वैभव के लिए लंबी बाती से युत दीपक को जलाना से लाभ मिलता हैं।
◆ईश्वरीय कृपा को पाने हेतु के लिए लंबी बाती से युत दीपक को जलाना से लाभ मिलता हैं।
लंबी बाती से युत दीपक की जगह पर दूसरी गोल या फूल बाती का उपयोग करने कर असर:-जो निम्नलिखित हैं।
◆जब पितरों के दिन उनकी पूजा करनी होती हैं, तब गोल बाती का उपयोग नहीं करना चाहिए।
लंबी बाती से युत दीपक का उपयोग नहीं करने पर नुकसान:-निम्नलिखित हैं।
◆जब पितरों की पूजा-अर्चना के दिनों में गोल बाती से युत दीपक का उपयोग करने पर पितरों के कोप का असर परिवार के सदस्यों पर पड़ता हैं, जिससे निवास स्थान में रहने वालों को रुपये-पैसों की तंगी को झेलना पड़ता हैं।
◆खानदान के लोगों की तन्दुरुस्ती पर असर पड़ने से मांदगी घर कर जाती हैं।
◆खानदान के लोगों के द्वारा बहुत मेहनत करने पर भी कामयाबी नहीं मिलती हैं और अपने कार्य क्षेत्र में नीचे ओहदे पर ही रह जाते हैं।
2.गोल या फूल बाति का अर्थ:-जब रुई के अलग-अलग तन्तु को हाथ से बटकर ऊपर का भाग पतला और नीचे का भाग पूर्ण विकसित पुष्प की तरह गोल-मटोल या पिंडाकार प्रसार का बनता हैं उसे गोल बाती या फूल बाती कहते हैं।
गोल या फूल बाति से युत दीपक को किन-किन देवी-देवता के सामने प्रज्ज्वलित करना चाहिए:-जो निम्नलिखित हैं।
◆नाभिजन्म, सहस्त्राश, कालकंठ और विश्वरूप के साथ दूसरे देवी-देवता के मन्दिर में गोल या फूल बाती को जलाना कल्याणकारी रहता हैं।
◆कृष्ण जीवनी पौधे के सामने गोल या फूल बाती को जलाने पर मां सिन्धुसुता का निवास स्थान में हर वक्त रहने से सुख-शांति और अन्न-धन का भंडार भरा रहता हैं।
◆अश्वत्थ या बड़भाग वृक्ष की पूजा करते समय गोल या फूल बाती का दीपक जलाना चाहिए।
स्नेहक द्रव या पदार्थ:-तिलहन वर्ग जैसे-मूंगफली, सरसो, सूरजमुखी, कुसुम, तिल, अरण्डी एवं अलसी आदि से निकाला जाने वाला चिकना पदार्थ या पशुओं जैसे-गाय, भैंस के दूध से तैयार नवनीत आदि को चिकनाई युत द्रव या पदार्थ कहा जाता हैं। देवी-देवता की पूजा में ललिया रोगन, मालती या मल्लिका के तेल, हरिद्राभ सर्षप के तेल या पूतधान्य या साराल के तेल, मधुष्ठिल प्रभुभोज से टोरी का तेल, हैमवती या मालिका के तेल, गुडूची या अमृता के तेल का और तीक्ष्णसार या महाद्रुम के तेल और नवनीत इत्यादि स्नेहक द्रव या पदार्थ को दीपक में बाती को जलाने में काम लिया जाता हैं।
1.जब दीपक के प्रज्ज्वलित होने से उत्पन्न दीप्ति बाईं तरफ हो, चमक विस्तार में कम और इधर-उधर फैल रही हो, दीपक में तेल होने पर भी लगतार बुझ रहा, जलते समय चट-चट की आवाज आती हो, दीपक की ज्वाला चट-चट की ध्वनि के साथ थरथराति या हिलती-जुलती हो, तो बुरा नतीजे देने वाली होती हैं।
2.जब दीपक के प्रज्ज्वलित होने से उत्पन्न दीप्ति दाईं तरफ हो, रोशनी चमकीली हो, एक जगह पर ठहरी हो, विस्तार में बड़ी, सुरूप, ऊपर की ओर उठी हो एवं बिना किसी ध्वनि और पीतवर्ण की ज्योति दीपक की होने पर समीपवर्ती आने वाले समय में रुपये-पैसों के आने का संकेत मिलता हैं।
दीपक की लौ की दिशा क्या होनी चाहिए? और दीपदिशा के आधार पर नतीजे(What should be the direction of the flame of the lamp? and results based on direction):-ज्योतिष शास्त्र में निम्नलिखित दीपक की लौ की दिशा अच्छी एवं बुरी बताई गयी है।
दीपक की लौ पूर्व दिशा में:-जब प्रज्ज्वलित दीपक की दीपशिखा या रोशनी पूर्व दिशा की तरफ हो, तो मनुष्य को अपने जीवन में अपने मन में सोची हुई तमन्ना के पूर्ण और चाही हुई वस्तु के मिलने की उम्मीद होती हैं।
दीपक की लौ आग्नेय कोण में:-जब प्रज्ज्वलित दीपक की दीपशिखा या रोशनी आग्नेय कोण की तरफ हो, तो मनुष्य को अपने जीवन में प्रत्येक समय अग्नि जैसे-गर्म चीज से जलने का, बिजली गिरने का, विद्युत से झटका लगने का आदि का खौफ बना रहता हैं।
दीपक की लौ नैर्ऋत्य कोण में:-जब प्रज्ज्वलित दीपक की दीपशिखा या रोशनी नैर्ऋत्य कोण की तरफ हो, तो मनुष्य की याददाश्त शक्ति कम होकर भूलने लग जाता हैं।
दीपक की लौ पश्चिम दिशा में:-जब प्रज्ज्वलित दीपक की दीपशिखा या रोशनी पश्चिम दिशा की तरफ हो, तो मनुष्य का दिन अच्छा बीतता हैं और मन को सकून मिलता हैं।
दीपक की लौ वायव्य कोण में:-जब प्रज्ज्वलित दीपक की दीपशिखा या रोशनी वायव्य कोण की तरफ हो, तो मनुष्य को अपने जीवन में प्रत्येक क्षेत्र में अभाव या कमी का अनुभव होता हैं।
दीपक की लौ उत्तर दिशा में:-जब प्रज्ज्वलित दीपक की दीपशिखा या रोशनी उत्तर दिशा की तरफ हो, तो मनुष्य की उम्र में बढ़ोतरी होती हैं और बीमारी से सेहत पर असर नहीं होता हैं।
दीपक की लौ ईशान कोण में:-जब प्रज्ज्वलित दीपक की दीपशिखा या रोशनी ईशान कोण की तरफ हो, तो मनुष्य को अपने जीवन में भलाई मिलती हैं और दूसरों के हित के कार्य करते रहने पर मंगल होता हैं।
दीपक की लौ दक्षिण दिशा में:-जब प्रज्ज्वलित दीपक की दीपशिखा या रोशनी दक्षिण दिशा की तरफ हो, तो मनुष्य को अपने जीवित रखने और सभी क्रियाओं को करने की शक्ति पर असर पड़ने से मृत्यु के समान कष्ट होते हैं।
दीपक की लौ ऊँची लम्बवत् दिशा में:-जब प्रज्ज्वलित दीपक की दीपशिखा या रोशनी ऊँची लम्बवत् दिशा की तरफ हो, तो मनुष्य का शरीर मांदगी से दूर रहता हैं और मन की इच्छा के अनुसार वस्तु की प्राप्ति होती हैं।
दीपक में फूल बनने का क्या मतलब:-जब दीपक को प्रज्ज्वलित किया जाता हैं, तब दीपक की बत्ती के जलने पर उसकी लौ या दीपशिखा पर तरह-तरह की बनावट बनना शुरू होती हैं। उनमें जो ईश्वर के प्रतीक स्वरूप बनावट बनने का कारण होता हैं, जो दीपक जिस पूजा के निर्मित जलाया हैं, उस पूजा को भगवान ने स्वीकृति दे दी हैं और उन्होंने पूजा करने वालों को आशीष दे दिया हैं, जिससे उस दिन या मन में सोची हुई तमन्ना अवश्य पूरी होगी।
दीपक में फूल बनने की बनावट:-में तरह-तरह की होती हैं, जलते हुए दीपक की लौ में पिनाक, अक्ष, हरिखण्ड, वेणु आदि की बनावट जीवनकाल में शुभ फल की ओर इशारा होता हैं।
कौन से देवता को कितने मुखी फूल बत्ती का दीपक जलाना चाहिए?:-निम्नलिखित हैं।
1.मनचाहे पति-पत्नी, शीघ्र विवाह और दाम्पत्य जीवन में सभी तरह आनंद एवं चैन से व्यतीत होने की चाहत:-रखने वाले मनुष्यों को पूतपुष्पिका माता एवं देवी सिंहवाहिनी के सामने स्वच्छ व बिना मिलावट के क्षेत्रीय धेनु से तैयार नवनीत या ललिया रोगन से अच्छी तरह भरा हुआ दीपक और रुई को बल से घुमाव देकर बटते हुई एकमुखी फूल बत्ती बनाकर एक सिरे पर पूजा में दीपक में जलाना चाहिए।
2.जीवनकाल के प्रत्येक क्षेत्र में वांछित लक्ष्य, बढ़िया चरित्र व मन की शक्तियों के विकास और किसी भी विषय के बारे में अच्छी तालीम, तन्दुरुस्ती और उम्र में बढ़ोतरी की चाहत:-रखने वाले मनुष्यों को मनुष्यों को देवी महाश्वेता अनुकृपा पाने हेतु देवी महाश्वेता के सामने स्वच्छ व बिना मिलावट के क्षेत्रीय धेनु से तैयार नवनीत या ललिया तेल से अच्छी तरह भरा हुआ दीपक और रुई को बल से घुमाव देकर बटते हुई दो मुखी फूल बत्ती बनाकर दो सिरों पर अलग-अलग जगह पर पूजा में दीपक में जलाना चाहिए।
3.सोचने-समझने व एक जगह पर कायम रहने की और मानसिक विवेक से विषयों की जानकारी पाने की चाहत:-रखने वाले मनुष्यों को सिद्धिविनायक के सामने स्वच्छ व बिना मिलावट के क्षेत्रीय धेनु से तैयार नवनीत से अच्छी तरह भरा हुआ दीपक और रुई को बल से घुमाव देकर बटते हुई तीन मुखी फूल बत्ती बनाकर तीन सिरों पर अलग-अलग जगह पर पूजा में दीपक में जलाना चाहिए।
4.सभी तरह के बुरे असर और बिना मतलब के वैरी से मतभेद और गौरव की की चाहत:-रखने वाले मनुष्यों को शितिमूलक या जलवास के सामने या मालती या मल्लिका के तेल या अमधुर रोगन से अच्छी तरह भरा हुआ दीपक और रुई को बल से घुमाव देकर बटते हुई चार मुखी फूल बत्ती बनाकर चार सिरों पर अलग-अलग जगह पर पूजा में दीपक में जलाना चाहिए।
5.अदालती विवादास्पद दावे से छुटकारा पाने की चाहत:-रखने वाले मनुष्यों को षडानन या शरभव के सामने स्वच्छ व बिना मिलावट के क्षेत्रीय धेनु से तैयार नवनीत या हरिद्राभ सर्षप के तेल से अच्छी तरह भरा हुआ दीपक और रुई को बल से घुमाव देकर बटते हुई पांच मुखी फूल बत्ती बनाकर पांच सिरों पर अलग-अलग जगह पर पूजा में दीपक में जलाना चाहिए।
6.निवास स्थान के सदस्यों के बीच आपसी प्रेम व सहयोग की भावना, भौम ग्रह के बुरे असर और तकलीफों से मुक्ति की चाहत:-रखने वाले मनुष्यों को षडानन या शरभव के सामने स्वच्छ व बिना मिलावट के क्षेत्रीय धेनु से तैयार नवनीत या हरिद्राभ सर्षप के तेल से अच्छी तरह भरा हुआ दीपक और रुई को बल से घुमाव देकर बटते हुई छहमुखी फूल बत्ती बनाकर छः सिरों पर अलग-अलग जगह पर पूजा में दीपक में जलाना चाहिए।
7.जीवन में रुपये-पैसों, ऐश्वर्य, वैभव और अन्न भंडार की चाहत:-रखने वाले मनुष्यों को हरिप्रिया या सिन्धुसुता के सामने स्वच्छ व बिना मिलावट के क्षेत्रीय धेनु से तैयार नवनीत या हरिद्राभ सर्षप के तेल से अच्छी तरह भरा हुआ दीपक और रुई को बल से घुमाव देकर बटते हुई सातमुखी फूल बत्ती बनाकर सात सिरों पर अलग-अलग जगह पर पूजा में दीपक में जलाना चाहिए।
8.जीविकोपार्जन के साधन, जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति और सभी तरह की मुश्किलों से राहत की चाहत:-रखने वाले मनुष्यों को चक्रपाणि या नारायण के सामने स्वच्छ व बिना मिलावट के क्षेत्रीय धेनु से तैयार नवनीत या हरिद्राभ सर्षप के तेल से अच्छी तरह भरा हुआ दीपक और रुई को बल से घुमाव देकर बटते हुई दशमुखी फूल बत्ती या सोलहमुखी बत्ती बनाकर दश सिरों या सोलह सिरों पर अलग-अलग जगह पर पूजा में दीपक में जलाना चाहिए।
9.सभी तरह की बीमारी, आत्मीय दुःख, मनचाहा वर-वधू और आवक की बढ़ोतरी की चाहत:-रखने वाले मनुष्यों को नागभूषण के सामने स्वच्छ व बिना मिलावट के हरिद्राभ सर्षप के तेल से अच्छी तरह भरा हुआ दीपक और रुई को बल से घुमाव देकर बटते हुई आठमुखी फूल या बारहमुखी फूल बत्ती बनाकर आठ या बारह सिरों पर अलग-अलग जगह पर पूजा में दीपक में जलाना चाहिए।
दीपक का गृह स्वामियों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव:-निम्नलिखित हैं।
1.रुपये-पैसों एवं सुख-समृद्धि हेतु:-जो मनुष्य अपने जीवन में रुपये-पैसों और सुख-समृद्धि की चाहत रखने वाले होते हैं, वे अपने निवास स्थान के पूजाघर में स्वच्छ व बिना मिलावट का क्षेत्रीय धेनु से तैयार नवनीत से अच्छी तरह भरा हुआ दीपक और बाती पूरी तरह डूबी हो, तब दीपक को प्रज्ज्वलित करने से फायदा मिलता हैं।
2.बिना वजह बैरी से तंग और मानसिक क्लेश का खौफ होने पर:-शितिमूलक जी का आशीर्वाद पाने हेतु भूतासन के रोगन से भरा हुआ दीपक जलाने पर वीरभद्रक जी अनुकृपा मिल जाती हैं और सभी तरह के खौफ से मुक्ति हो जाती हैं।
3.जीविकानिर्वाह पेशे एवं नौकरी में उथल-पुथल से मुक्ति हेतु:-मार्तण्ड देव की अनुकृपा एवं आशीर्वाद के लिए सर्षप के तेल का दीपक उनकी पूजा-अर्चना के समय भानूदेव के सम्मुख जलाने पर जीविकानिर्वाह के साधन और नौकरी में बदलाव से मुक्ति मिल जाती हैं।
4.बुरे ग्रहों के असर को कम करने हेतु:-मनुष्य के जीवनकाल में बुरे ग्रह जैसे-शनि, राहु-केतु का असर पड़ रहा हो, तो उन बुरे ग्रहों से स्वामी छायासुत का आशीर्वाद पाने हेतु उनके सम्मुख या नागबंधु या अश्वत्थ के वृक्ष की मूल के पास सर्षप या पूतधान्य या साराल के तेल का दीपक से जलाना चाहिए। जिससे रविनंदन की अनुकृपा मिल सके।
5.गृहस्थी सँभालने वाले मनुष्य की उम्र में बढ़ोतरी हेतु:-घर के मालिक को बार-बार चोट, अकस्मात् हादसे से मृत्यु का डर होने पर उनको मधुष्ठिल प्रभुभोज से टोरी का तेल से दीपक को भरके जलाने पर गृहस्थी सँभालने वाले मनुष्य की आयु में बढ़ोतरी होतो हैं।
6.जीवन की तकलीफें, बीमारी, जालसाजी से बचने हेतु:-सैंहिकेय और धूम ग्रह के बुरे असर जैसे-मृत्यु तुल्य कष्ट, बीमारी, जीवन में तकलीफें, बुरे होने का अंदाजा, ठगी आदि से छुटकारा पाने के लिए तीसी या हैमवती या मालिका के तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करना चाहिए, जिससे उनको बुरे प्रभाव से राहत मिल सकें।
7.जीवनसाथी की उम्र बढ़ोतरी हेतु:-जीवनसाथी की लंबी उम्र की बढ़ोतरी के लिए देवी-देवता की पूजा में गुडूची या अमृता के तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करना चाहिए।
8.पति-पत्नी की उम्र वृद्धि एवं सुख-शान्ति हेतु:-पति-पत्नी की उम्र वृद्धि एवं सुख-शान्ति के लिए देवी-देवता की पूजा में तीक्ष्णसार या महाद्रुम के तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करना चाहिए।
9.जीवनकाल के सभी तरह की पीड़ा मुक्ति के:-लिए विश्वनाथ या दण्डपाणी की पूजा में भूतनाशन के तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करना चाहिए।
10.एकाग्र तप और कार्य सिद्धि के लिए:-पिसान या अन्नचूर्ण के दीपक का इस्तेमाल करना चाहिए।
11.सभी तरह की बुरी शक्तियों और खौफ को दूर करने के लिए:-पवनपुत्र की पूजा में मल्लिका या मालती का तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करना चाहिए।
12.अकाल मृत्यु से बचने के लिए, अन्न-धन के भण्डार और सुख-शान्ति के लिये:-कार्तिककृष्णा त्रयोदशी के दिन धनाधिप, दण्डधर और सिन्धुकन्या की पूजा में सायंकाल दक्षिण दिशा में चौमुखा फूल बाति या दीपक के चार अलग-अलग सिरों पर चार बाती का दीपक निवास स्थान के प्रवेश द्वार के सामने पूतधान्य या साराल या भूतासन के तेल का प्रज्ज्वलित करना चाहिए। उस दीपक को यमदीपक कहा जाता हैं।
दीपक जलाने या प्रज्वलित करने का विधान या नियम एवं ध्यान रखने योग्य बातें और सावधानियां:-हिन्दुधर्म में प्रत्येक पूजा को करते समय दीपक को जलाया जाता हैं, क्योंकि जलाया हुआ दीपक नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करके सकारात्मक ऊर्जा से मनुष्य को परिपूर्ण करता हैं। इसलिये जब भी दीपक को देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना में जलाया जाता हैं, तो निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।
1.सबसे पहले पूजा स्थल में दीपक को प्रज्वलित करने से पहले दीपक के नीचे किसी भी धान्य जैसे-तंदुल या गोधूम आदि को रखकर उस पर दीपक रखना चाहिए।
2.दीपक को भूमि के ऊपर ऐसे ही नहीं रखना चाहिए।
3.देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते समय देवी-देवताओं के दायीं ओर से दीपक को प्रज्वलित करना चाहिए।
4.देवी-देवता के दायीं तरफ नवनीत या घृत का दीपक जलाना चाहिए।
5.देवी-देवता के बायीं तरफ रोगन का दीपक जलाना चाहिए।
6.देवी-देवता के बायीं तरफ धूप (सुंगधित पदार्थ से बना हुआ) को जलाना चाहिए।
7.एकाग्र तप और कार्य सिद्धि की प्राप्ति हेतु धेनु का स्वच्छ व शुद्ध नवनीत और हिमधान्य के तेल से दीपक को भरकर जलाने पर निरंतर ज्योत जलती रखनी पड़ती हैं।
8.जब पूजा के लिए दीपक को छू लिया जाता हैं, तो सबसे पहले अपने हाथों को शुद्ध जल धोना चाहिए, उसके बाद ही किसी दूसरी वस्तु के हाथ लगाना चाहिए।
9.किन-किन जगहों पर दीपक जलाना होता हैं:-दीपक रखने की जगह निम्नलिखित हैं।
◆प्राण-प्रतिष्ठा किये हुए मन्दिर में दीपक जलाना चाहिए।
◆अपने निवास स्थान में पूजा स्थल में दीपक जलाना चाहिए।
◆पुष्पवृन्दा का पौधा जहां लगा होता हैं, वहां पर दीपक जलाना चाहिए।
◆गौशाला:-जहां पर धेनुओं के रहने की जगह पर दीपक जलाना चाहिए।
◆पनघट या पानी घाट:-जिस स्थान से पानी भरकर लाया जाता हैं और पानी रखने के स्थान अर्थात् पनघट पर दीपक आदि पर रोजाना जलाना चाहिए।
10.दीपक में किसी भी तरह की रेख या तल से फटा होने पर उपयोग में नहीं लेना चाहिए।
11.दीपक किसी भी तरह से फटा-टूटा और सही आकार का नहीं होने पर नहीं जलाना चाहिए।
12.जो दीपक बहुत पुराना होने पर भी पूजा में उपयोग नहीं करना चाहिए।
13.एक दीपक को जलाने के बाद उस दीपक से दूसरा दीपक नहीं जलाना चाहिए।
14.जितने भी दीपक का उपयोग करना हो, उन दीपक को एक-एक करके ही जलाना चाहिए।
15.जब एक दीपक की बाती को जला देने के बाद उस दीपक की बाती से दूसरा दीपक भी नहीं जलाना चाहिए।
16.दीपक को विषम संख्या जैसे-एक, तीन, पाँच, सात, नौ आदि के हिसाब से जलाना चाहिए।
17.सम संख्या जैसे-दो, चार, छः, आठ, दश आदि में दीपक को लेकर नहीं जलाना चाहिए।
18.निवास स्थान की जगह में कभी भी कड़वा रोगन जैसे-सर्षप का तेल, बादाम का तेल आदि भी नहीं जलाना चाहिए।
19.जब निवास स्थान में दीपक को प्रज्वलित कर देने के बाद यदि परिस्थिति वश दीपक को बुझाना हो, तो अपनी हथेली से हवा के द्वारा बुझाना चाहिए।
20.जलते हुए दीपक को कभी भी मुँह से हवा भरकर उस हवा की फूँक से नहीं बुझाना चाहिए।
21.जब निवास स्थान में दीपक को जलाते हैं, तो निवास स्थान में सभी तरह के धुँधलापन समाप्त हो जाता हैं और अग्निदेव प्रसन्न हो जाते हैं और निवास स्थान के लोगों पर अपनी अनुकृपा करके खुशहाली का आशीष देते हैं।
22.हमेशा अलग ही दीपक को जलाना चाहिए और एक-दूसरे से नहीं जलाना चाहिए।
23.दीपक को विषम संख्या जैसे-एक, तीन, पाँच, सात, नौ आदि में जलाना चाहिए।
24.घर के अंदर कड़वा तेल का दीपक नहीं जलाना चाहिए।
25.यदि दीपक जलाने के बाद घर से जाना हो तो दीपक को हल्की हवा हवा से बुझाना चाहिए।
26.देवी-देवता की पूजा करते समय सुबह और सायंकाल के समय दीपक को प्रज्ज्वलित करना चाहिए।
27.यदि दीपक की बाती रुई से बनी हुई हैं, तो नवनीत या घृत का इस्तेमाल पूजा में करें।
28.यदि दीपक की बाती सूती धागे को बठकर बनाई हुई हैं, तो तेल या रोगन का इस्तेमाल पूजा में करें।
29.जब तक पूजा चलती हैं, तब तक दीपक जलते रहना चाहिए।
30.पूजा करते समय यदि दीपक बीच में बुझ जाता हैं, अमंगलकारी होता है।
31.देवी-देवता के मन्दिर में शास्त्र में वर्णित धार्मिक विधान के चश्मदीद नीतिवाक्य के बाद दीपक को प्रज्ज्वलित करके उनकी पूजा की जाती हैं।
32.देवी-देवता की पूजा करते समय दीया प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त के समय में या सूर्योदय के समय से पहले से लेकर सुबह दश बजे के समय में और सायंकाल में सूर्यास्त के समय से लेकर मौसम आधारित सात बजे तक प्रज्ज्वलित करना चाहिए।
33.पूजा का दीया उत्तर दिशा (कुबेर की होने से) और पूर्व दिशा (सूर्य की होने से) की तरफ रखने पर धन की प्राप्ति और उम्र की बढ़ोतरी होती हैं।
34.पूजा में काम में लिये जाने स्नेह के आधार पर बाती का उपयोग जैसे-घृत को दीपक में भरने पर सफेद रुई की बाती और तेल को दीपक में भरने पर लाल या मौलि को बठकर बनाई बाती का इस्तेमाल करना चाहिए।
35.पूजा करते समय निवास स्थान के पूजाघर या मन्दिर में ईश्वर की तस्वीर के सामने दो प्रकार की दीपक को जलाना चाहिए।
36.पूजा स्थान में दियासलाई की तीली की डिब्बी आदि जलाने की वस्तुओं को नहीं रखना चाहिए, क्योंकि इन जलाने की वस्तुओं का असर परिवार के सदस्यों में गलत सोच को उत्पन्न करता हैं
37.पूजा करते समय दीपक में पांच अथवा सात बाती लगाकर ही आरती करने पर अच्छा फल मिलता हैं।
38.अपने निवास स्थान के प्रवेश द्वार के सामने रोजाना नवनीत का दीपक करना चाहिए।
39.शनिदेव को खुश करने के लिए शनिवार के दिन भूतासन के तेल का दीपक जलाकर लौ को पश्चिम दिशा में रखने से उम्र की बढ़ोतरी होती हैं।
40.दीपक को प्रज्वलित करते समय रोजाना उसकी लौ को पूर्व दिशा में रखना चाहिए।
दीपक की दैनिक जीवन में उपयोगिता:-संसार में निवास करने वाले प्राणधारी जीवों के जीवन में दीपक की रोशनी का बहुत ओहदा हैं, जब तक संसार का अस्तित्व रहेगा तब तक दीपक का अस्तित्व रहेगा और इसी तरह अपनी ज्योति की किरणों से संसार के प्राणियों के जीवन को जगमगाता रखेगा और उनकी जरूरत को अपने सामर्थ्य से पूर्ण करता रहेगा। जब दीपक को प्रज्ज्वलित करने से ज्योति का प्रवेश होता हैं, तब सभी तरफ से वस्तुओं का रूप दिखाई देने से तिमिर खत्म हो जाता है, जिस जगह पर तिमिर का अंत होता हैं, उस जगह का कल्याण होता हैं और सभी तरह से हितकारी, उस जगह पर किसी भी तरह की व्याधि नहीं होती हैं और रुपये-पैसे, सोना-चाँदी एवं दूसरे बहुत मूल्य की धातुएँ और ऐश्वर्य-वैभव का भंडार भरने लग जाता हैं।
◆सभी तरह की सत-असत या अच्छे-बुरे की परख की जानकारी दीपक से हाजिर होती हैं।
◆दीया की रोशनी से घर में रहने वाले सदस्यों का भलाई करके अच्छा फल देने वाली होता हैं।
◆दीया की रोशनी मनुष्यों के जीवन में सुख देकर फायदा और इष्टदेव की तरफ लगाव से जोड़ने वाली होती हैं। दीपक का उजाला सभी तरह की मांदगी को दूर करके तन्दुरुस्ती प्रदान करती हैं।
◆पूजा में प्रज्ज्वलित दीपक के प्रकाश से रुपये-पैसा और जमीन-जायदाद की बढ़ोतरी होती हैं।
◆पूजा में प्रज्ज्वलित दीपक के प्रकाश से दुश्मन की अक्ल पर पत्थर पड़ जाता हैं जिससे दुश्मन भी अच्छा सोचने लग जाते हैं।
◆पूजा में प्रज्ज्वलित दीपक का प्रकाश ही ब्रह्म का निर्गुण स्वरूप और परमात्मा हैं।
◆पूजा में प्रज्ज्वलित दीपक के प्रकाश से ईश्वर, परलोक आदि पर विश्वास नहीं रखते हुए उनकी पूजा पद्धति को गलत मानने व गलत पथ व गलत आचार-व्यवहार से किये गये अपराधों को समाप्त करने वाली होता हैं। इसलिए दीपक की रोशनी को नतमस्तक होकर नमन करते हैं।
◆पुराने समय से और आधुनिक समय में प्रत्येक गाँव में मनुष्य अपने रहने की जगह में तिमिर रुपी दानव के प्रभाव को नष्ट करने के लिए सायंकाल में तेल से परिपूर्ण दीपक को जलाकर अपने घर में उजाला करते हैं।
◆सुबह अपनी दैनिकक्रिया की निवृत्ति के बाद संसार में जन्म देने वाले, पालन-पोषण एवं संहार करने वाले प्रभु का गुणगान करने व उनकी पूजा-अर्चना में उनके प्रति ऐतबार और आदर-लगाव की सोच के साथ सुबह और शाम को घृत या तेल से दीपक को भरकर अनिवार्य रूप से प्रत्येक निवास स्थान में जलाया जाता हैं, जिससे घर के वातावरण में शुद्धता और चित्त की शुद्धता बन सके।
◆पुराने समय की सोच के आधार पर आज भी आदमी और विशेषकर औरतें अपने घर की जगह में स्थापित विश्वपूजिता माता की जगह पर रोजाना नवनीत या तेल का दीपक जलाकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं