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Thursday 16 March 2023

विवाह में देरी कराने में ग्रहों की भूमिका, कारण एवं उपाय

विवाह में देरी कराने में ग्रहों की भूमिका, कारण एवं उपाय(Role of planets in marriage delay, causes and remedies):-ईश्वर के द्वारा बनाई हुई सृष्टि में प्रत्येक जीव अकेला नहीं रह सकता हैं। सभी जीवों में सबसे अच्छा जीव मानव को माना गया है। मानव की जब से उत्पत्ति हुई हैं, वह अपने जीवन को चलाने के लिए उसे किसी न किसी के सहारे की जरूरत पड़ती हैं। समस्त सृष्टि में वह अपने जीवन को अकेला नहीं व्यतीत कर सकता हैं, इसलिए उसके जन्म से लेकर मरण तक वह किसी न किसी का साथ चाहता हैं। जैसे-अपने बाल्यकाल में माता-पिता, भाई-बहिन का साथ, फिर नये-नए दोस्तों का साथ चाहता हैं। जब वह बारह से अठारह वर्ष की उम्र में प्रवेश करता हैं, तब उसका झुकाव अपने से विपरीत देह वालों का साथ, जब वह जवानी में प्रवेश करता हैं, तब उसकी सोच होती हैं कि उसका जीवन भर कोई उसका साथ निभाने वाले विपरीत देह की तरफ बढ़ता जाता हैं। जैसे ही यौवन अवस्था में प्रवेश होता हैं, तब से उसके माता-पिता उसकी शादी के बारे में विचारने लग जाते है। उस लड़के या लड़की की जन्मकुण्डली को लेकर किसी जानकार ज्योतिषी के पहुंच जाते हैं।



Role of planets in marriage delay, causes and remedies




विवाह का अर्थ:-जब दो विपरीत बिना जान-पहचान वाले जोड़े लड़के या लड़की पति-पत्नी के संबंध में जुड़कर अपने नवीन जीवन की शुरुआत करते हैं, तब उसे विवाह कहा जाता हैं।



विवाह कब होगा:-लड़के या लड़की का विवाह कब होगा इस विषय पर प्राचीन काल के मनीषियों ने ग्रहों की चाल की गणना के आधार पर, दशा एवं ज्ञान के द्वारा ज्योतिषीय योगों का निर्माण किया था। उन ज्योतिषीय योगों के द्वारा जाना जा सकता हैं, की लड़के या लड़की का विवाह कब तक होगा। लेकिन कभी-कभी विवाह के योग, दशा एवं अनुकूल ग्रहों की चाल में विवाह का समय तय करने पर भी विवाह नहीं हो पाता हैं। क्योंकि लड़के या लड़की की जन्मकुण्डली विवाह में बाधक या विलम्ब कारक या देरी के योग होते हैं, जिसके कारण विवाह में देरी या होता ही नहीं हैं।




विवाह बाधा योग का अर्थ:-जब जन्मकुण्डली में ग्रहों की स्थिति, योग, दशा और ग्रहों की मेल खाने वाली चाल होते हुए भी विवाह में देरी या विवाह समय पर नहीं हो पाता हैं, तब उसे विवाह बाधा योग कहा जाता हैं।




विवाह को सफल बनाने में भावों की भूमिका:-सबसे पहले विवाह करवाने में भावों की भूमिका क्या होती हैं और कौनसे-कौनसे भाव विवाहं करवाने में सहायक होते हैं, उनको जानना भी जरूरी हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार निम्नलिखित भावों के द्वारा विवाह के बारे में जानकारी मिलती हैं।



1.दूसरा घर:-दूसरे घर परिवार-कुटम्ब का होता है तथा लड़का या लड़की शादी करने के बाद में उस परिवार के हिस्से बन जाते हैं। सातवें घर से आठवां होने विवाह के आरम्भ और आखिरी की जानकारी करवाता हैं, इसलिए यह दूसरा घर बहुत ही जरूरी हो गया हैं। दूसरे घर से बुरे ग्रह, दूसरे घर का मालिक और दूसरे घर पर पापी ग्रहों के द्वारा पड़ने वाली दृष्टियां विवाह बाधा या देरी या विलम्ब कारण बनती हैं।




2.पांचवा घर:-पांचवां घर भी सुखी वैवाहिक जीवन के लिए आवश्यक होता हैं, क्योंकि वैवाहिक जीवन को सफल बनाने के लिए प्रेम एवं संतान की आवश्यकता होती हैं, जो कि पांचवें घर से ही मिल सकती हैं। इसलिए पांचवें घर की जाँच कर लेनी जरूरी होती हैं।




3.सातवां घर:-सातवें घर से लड़के एवं लड़की को सामाजिक एवं धार्मिक रूप पति-पत्नी के रुप में मान्यता एवं शारीरिक सुख आदि से सम्बन्धित सभी तरह के भावों की वास्तविकता सामने आती हैं। 




4.बारहवां घर:-बारहवें घर से स्त्री या पुरुष को पति-पत्नी के रूप में मिलने वाले शारीरिक सुख के बारे में जानकारी मिलती हैं।




5.आठवां घर:-आठवें घर से औरत की अच्छी किस्मत के बारे में जानकारी मिलती हैं, इसलिए आठवें घर की गहराई जांच जरूरी होती हैं।




विवाह कारक ग्रहों की जांच:-प्राचीन काल के विद्वानों ने लड़की या स्त्री और लड़के या पुरुष के विवाह के लिए अलग-अलग कारक ग्रह ज्योतिष शास्त्र में बताएं गए हैं, जो निम्नलिखित हैं।




लड़के या पुरुष के लिए विवाह कारक ग्रह:-शुक्र ग्रह को बताया गया हैं।



लड़की या स्त्री के लिए विवाह कारक ग्रह:-गुरु ग्रह को बताया गया हैं। प्रश्नकुंडली के विषय में लड़की या स्त्रियों के लिए विवाह कारक ग्रह शनि को बताया गया हैं।




सातवें घर की भूमिका:-विवाह के बारे में सही जानकारी सातवें घर, सातवें घर के मालिक, कारक ग्रह एवं इन पर पड़ने वाली दृष्टि से होता हैं।



शादी-विवाह में देरी कराने में ग्रहों की भूमिका एवं शादी में देरी या विलम्ब के कारण एवं कुंडली में बनने वाले विवाह प्रतिबंधक ज्योतिषीय योग:-लड़के या पुरुष और लड़की या स्त्री के शादी-विवाह में देरी या विलम्ब के बहुत सारे कारण हो सकते हैं। यदि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शादी में देरी कराने में ग्रहों की भूमिका होती हैं, जो निम्नलिखित ग्रह होते हैं। शादी-विवाह में विलम्ब या देरी कराने में सूर्य, चन्द्र, गुरु, शुक्र, शनि और राहु-केतु मुख्य रुप से अपनी भूमिका निभाते हैं। लड़के या पुरुष और स्त्री या लड़की जन्मकुण्डली में ज्योतिष शास्त्र में वर्णित ग्रहों से बनने वाले एक या एक से अधिक ज्योतिषीय योगों के होने से विवाह में विलम्ब या देरी की संभावना हो सकती हैं। विवाह में विलम्ब के लिए कौन-कौन से ग्रह बाधक और योग बनते हैं, वे निम्नलिखित हैं।




1.विलम्ब विवाह में शनि ग्रह की भूमिका:-विलम्ब विवाह में सबसे पहले शनि ग्रह को देखना चाहिए, क्योंकि शनि ग्रह अपने गति से चलते हुए एक राशि को दो वर्ष छः माह में चक्कर पूर्ण करता हैं और बारह राशियों को पार करने में तीस वर्ष का समय लेता हैं, इसलिए शादी में देरी होने में शनि की सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं।



1.जब जन्मकुण्डली के पहले घर और चन्द्र कुण्डली के पहले घर से मंद ग्रह पहले, तीसरे, पांचवें, सातवें या दशवें घर में स्थित होता हैं, तब लड़के या लड़की की शादी बहुत देरी से होती हैं। 



2.जब जन्मकुण्डली के पहले घर का स्वामी भृगु ग्रह के साथ बैठे होता हैं और मंद ग्रह आठवें घर में बैठा होता हैं, तब विवाहं में देरी होती हैं।



3.जब जन्मकुण्डली में मंद ग्रह सातवें घर में अपनी राशि (मकर, कुंभ राशि) में बैठा होता हैं और रवि ग्रह से सातवें घर में बैठा होता हैं, तब विवाह में रुकावट जरूर आती हैं।



4.जब जन्मकुण्डली के पहले घर में रवि एवं मंद ग्रह एक साथ संयोग करके बैठे होते हैं, तब लड़की या लड़के का विवाह देरी से होगा।



5.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के पहले घर में मंद और सातवें घर में सोम ग्रह बैठे हो अथवा सातवें घर में मंद एवं सोम दोनों एक साथ बैठे होते हैं, तब लड़के या लड़की के विवाह में जरूर देरी होगी।



6.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के छठे घर में मंद ग्रह, रवि ग्रह आठवें घर में होता हो और आठवें घर का मालिक पापी ग्रहों के प्रभाव से कमजोर हो तो विवाह होता ही नहीं हैं अथवा ज्यादा समय निकलने बाद विवाह होगा।



7.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के सातवें घर में रवि ग्रह बैठा होता हैं और मंद ग्रह अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हो अर्थात् पहले घर में, पांचवें घर में या दशवें घर में मंद ग्रह बैठा हो तो तब विवाह में देरी संभव होती हैं। 



8.यदि जन्मकुण्डली का सातवां घर या सातवें घर का मालिक मंद ग्रह के पाप प्रभाव से कमजोर होता हैं, तब विवाह में देरी होती हैं। 



9.यदि जन्मकुण्डली के किसी भी घर में रवि व मंद ग्रह के साथ भृगु ग्रह भी साथ में बैठा होता हैं, तब शादी में अवश्य देरी होगी। 



2.विलम्ब विवाह में शुक्र, सोम एवं रवि ग्रह की भूमिका:-भोग कारक शुक्र विवाह किस प्रकार से अपनी भूमिका निभाते हुए विवाह में विलम्ब करता हैं। 



1.ज्योतिष शास्त्र में भृगु ग्रह एवं सोम ग्रह को एक-दूसरे का दुश्मन माना गया है। सोम ग्रह की तरह रवि ग्रह भी भृगु ग्रह का दुश्मन ग्रह माना गया हैं, इसलिए जब लड़के या लड़की की जन्मकुण्डली के सातवें घर में रवि या सोम के साथ भृगु ग्रह का एक साथ बैठना की दशा पर बहुत ध्यान देने योग्य शोचनीय बात हैं।




2.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के सातवें घर में भौम एवं मंद ग्रह एक साथ बैठे होते हैं, तब अवश्य ही शादी के उचित समय से अधिक समय लगता हैं।



3.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के चौथे घर में सैंहिकीय ग्रह और पांचवें घर में भृगु बैठा होता हैं, तब विवाह विलम्ब से होता हैं।



4.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के सातवें घर में सौम्य एवं भृगु ग्रह एक साथ बैठे होते हैं, तब विवाह की बातें होती रहती है, लेकिन विवाह की उम्र काफी बीतने के बाद ही विवाहं हो पाता हैं।  



5.जब जन्मकुण्डली में जीव या भृगु ग्रह पहले, सातवें, नवें घर में और दशवें घर में योगकारक नहीं होते हैं और सोम ग्रह भी पाप ग्रहों के प्रभाव में होता हैं, तब लड़के या लड़की के विवाह में अड़चनें आती हैं।



6.जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में भृगु अपने शत्रु की राशि में बैठा होता हैं, तब लड़के या लड़की के विवाह में अड़चनें आती हैं, जिससे विवाह में देरी जरूर होगी।



3.विलम्ब विवाह में सोम ग्रह की भूमिका:-मन को एक जगह पर स्थिर रखने का कारक सोम विवाह में किस प्रकार से अपनी भूमिका निभाते हुए विवाह में विलम्ब करता हैं।



1.जब जन्मकुण्डली में सातवें घर का स्वामी भृगु होता हैं एवं भृगु ग्रह के साथ रवि व सोम ग्रह बैठे होते हैं, तब विवाह में बाधाएं आती हैं या विवाह नहीं होता हैं। यदि जब सातवें घर में बैठे हुए ग्रहों पर जीव ग्रह अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हैं, तब जीवन में एक बार विवाहं जरूर होता हैं। उस वैवाहिक जीवन में लड़के-लड़की के सम्बन्धों में मधुरता नहीं रहती हैं।



2.जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में रवि, भौम, मंद, राहु या केतु में से किसी पापी ग्रह के साथ यदि पहले घर का स्वामी और सोम ग्रह बैठा होता हैं और बारहवें घर में सातवें घर का मालिक बैठा होता हैं, तब शादी में देरी होगी।



3.जब जन्मकुण्डली में सोम ग्रह बैठा होता हैं, उससे गिनने पर जीव ग्रह सातवें आता हैं, तब शादी में विलंब होता हैं।




4.आचार्य आनन्द जालान के मतानुसार:-जब जन्मकुण्डली में सोम ग्रह की कर्क स्वराशि से गिनने पर जीव ग्रह सातवें घर में बैठा होता हैं, तब विवाह में अड़चनें आती रहती हैं। 




4.विलम्ब विवाह में रवि, भौम, मंद, राहु या केतु पापी ग्रहों की भूमिका:-मन को एक जगह पर स्थिर रखने का कारक सोम विवाह में किस प्रकार से अपनी भूमिका निभाते हुए विवाह में विलम्ब करता हैं।



◆जब जन्मकुण्डली में सोम एवं भृगु ग्रह के स्थित घर से गिनने पर सातवें घर में भौम और मंद ग्रह बैठा होता हैं, तब शादी में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के सातवें भाव के दोनों तरफ पापी ग्रह जैसे-सूर्य, मंगल, शनि, राहु या केतु में से दो ग्रह से पापकर्तरी योग बन रहा होता हैं, तब शादी में देरी निश्चित रुप से होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के पहले, सातवें घर में जीव ग्रह मंद ग्रह के साथ बैठा होता हैं, तब शादी में निश्चित रुप से देरी होती हैं।



◆जब लड़के या लड़की जन्मकुण्डली के पहले, चौथे, सातवें या बारहवें भाव में मंगल बैठा होता हैं, तब भी विवाह में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु में से कोई भी पापी ग्रह बैठा हो और आठवें घर पर पाप प्रभाव में गुरु ग्रह कमजोर होकर अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हैं, तब शादी में देरी होती हैं।

 


◆जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में राहु और आठवें घर में मंगल ग्रह बैठा होता हैं, तब बहुत कोशिश करने पर शादी हो पाती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली में भौम ग्रह पहले घर या चौथे घर बैठा होता हैं और मंद ग्रह सातवें घर में बैठा होता हैं, तब लड़का या लड़की की इच्छा शादी करने में नहीं होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के पांचवें घर, सातवें घर या नवें घर में भौम तथा भृगु ग्रह एक साथ बैठे होते हैं और पाप प्रभाव में गुरु ग्रह कमजोर होकर अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हैं, तब शादी में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के पहले, दूसरे, सातवें या बारहवें घर में चन्द्र तथा शनि एक साथ बैठा होता हैं, तब विवाह में बाधाएँ आती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के पांचवें घर में शुक्र ग्रह और ग्यारहवें घर में राहु ग्रह बैठा होता हैं, तब विवाहं में विलम्ब होता हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के छठे, आठवें, बारहवें घर में रवि, मंगल, शनि, राहु, केतु में से कोई भी पापी ग्रह बैठे हो तो शादी में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के छठे, आठवें, बारहवें घर में सातवें घर का स्वामी ग्रह बैठा हो तो शादी में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के छठे, आठवें, बारहवें घर का स्वामी ग्रह सातवें घर का स्वामी ग्रह हो, तो कोई भी शुभ ग्रह जैसे-चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र में से पहले, पांचवें, नवें घर में योगकारक नही होता हैं, तो लड़की या लड़के की शादी में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के पहले घर या पहले घर के स्वामी को सूर्य, मंगल या बुध अपनी पूर्ण दृष्टि के द्वारा देखते हो और बारहवें घर में गुरु ग्रह स्थित होता हैं, तब लड़का या लड़की की ज्यादा रुचि परमात्मा और आत्मा के पारस्परिक संबंध के बारे में गहराई से सोचने में डूबे रहने की होने से विवाह में विलंब करवाती हैं।


इस तरह से जन्मकुण्डली में बहुत सारे कारण या योग बनते हैं, जिसके कारण लड़के या पुरुष और लड़की या स्त्री का विवाह समय पर नहीं हो पाता हैं और विवाह में देरी के कारण बनते हैं।



विवाह में विलम्ब या देरी अथवा विवाह बाधा निवारण उपाय:-निम्नलिखित हैं, जिनको करने से विवाह हो देरी में राहत मिलती हैं।



◆जन्मकुण्डली में जो ग्रह कमजोर होते हैं, उनकी शांति यन्त्र, तंत्र और मन्त्र के उपायों को किसी योग्य विद्वान से कराना चाहिए।



◆अपने कुलदेवी-देवता और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनकी जो मन्नत रखी होती हैं, उनको पूरा करना चाहिए।



◆लड़के या लड़की को किसी योग्य विद्वान से कात्यायनी यन्त्र को मन्त्रों के द्वारा सिद्ध करवाकर उसका नियमित रुप से पूजन करना चाहिए। कात्यायनी मन्त्र का वांचन एक सौ आठ बार करना चाहिए।



◆जिन लड़के या लड़की का विवाह होने देरी हो रही हैं, उनको नौ दिन तक संकल्प लेकर लगातार नौ दिनों तक भगवान रामजी को खुश करने के लिए 'श्री रामरक्षा स्तोत्र' का वांचन करना चाहिए।



◆भगवान शिवजी को खुश करने के लिए सोमवार का व्रत करना चाहिए, क्योंकि भगवान शिवजी जल्दी अपनी भक्त पुकार सुनते हैं।



◆लड़की या स्त्री के विवाह देरी होने पर उनको माता महागौरी पार्वती को खुश करने के लिए उनका नवरात्रि में नौ दिनों तक व्रत एवं पूजन करना चाहिए।



◆भगवान सूर्य सभी ग्रहों के राजा होने से उनको खुश करने के लिए नियमित रुप से लाल मिर्च का एक दाना या इलायची का एक दाना ताम्र धातु से बने लोटे में जल से परिपूर्ण करके उस जल से सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए। 



◆माता पुष्पसारा का नियमित रूप पूजन करना चाहिए और पूजन करने के बाद उनकी ग्यारह परिक्रमा करें।



◆लड़की या स्त्री को ग्यारह, इक्कीस या इक्यावन गुरुवार के व्रत का संकल्प लेकर व्रत करना चाहिए।



◆लड़के या पुरुष को ग्यारह, इक्कीस या इक्यावन शुक्रवार के व्रत का संकल्प लेकर व्रत करना चाहिए।



◆लड़के या पुरुष को शुक्र ग्रह के रत्न हीरा को किसी योग्य पण्डित के द्वारा उनके बताए हुए मार्गदर्शन के अनुसार मन्त्रों से सिद्ध कराके शुक्रवार को पहनना चाहिए। 



◆लड़की या स्त्री को गुरु ग्रह के रत्न पुखराज या सौनेला या टोपाज को किसी योग्य पण्डित के द्वारा उनके बताए हुए मार्गदर्शन के अनुसार मन्त्रों से सिद्ध कराके गुरुवार को पहनना चाहिए। 



◆लड़की या स्त्री को शुद्ध दो मुखी रुद्राक्ष को किसी योग्य पण्डित के द्वारा उनके बताए हुए मार्गदर्शन के अनुसार मन्त्रों से सिद्ध कराके बाँयी भुजा में धारण करना चाहिए। 



◆लड़की या स्त्री को केले की मूल को पीत वर्ण के कपड़े में बांधकर किसी योग्य पण्डित के द्वारा उनके बताए हुए मार्गदर्शन के अनुसार मन्त्रों से सिद्ध कराके के बाँयी भुजा में धारण करना चाहिए।



◆लड़की या स्त्री को कदली वृक्ष का पूजन करना चाहिए। 



◆लड़की या स्त्री को प्रत्येक गुरुवार के दिन अन्न और रामरस को ग्रहण नहीं करना चाहिए। केवल फलों और दूध का सेवन करते हुए व्रत को पूर्ण करना चाहिए।



◆लड़की या स्त्री और लड़के या पुरुष के मांगलिक योग जन्मकुण्डली में बनने पर प्रत्येक मंगलवार 'मंगल चण्डिका स्तोत्र' का वांचन करना शुरू करें।