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Thursday 3 August 2023

घर के गार्डन के लिए वास्तु टिप्स का महत्त्व (Importance of Vastu Tips for Home Garden)

घर के गार्डन के लिए वास्तु टिप्स महत्त्व(Importance of Vastu Tips for Home Garden):-मनुष्य के जीवन को सभी तरह के सुख-आराम को प्रदान करने वाला उसका निवास स्थान होता हैं, जिसमें वह अपने पूरे दिन की थकावट से राहत पाता हैं। निवास स्थान की अंदरूनी साज-सज्जा एवं रंग-रोगन के अलावा पेड़-पौधों एवं गृहवाटिका का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। गृहवाटिका (गार्डन) लगाने से उसमें लगे हुए विभिन्न पेड़-पौधों से आवास स्थान की खूबसूरती में बढ़ोतरी, मन की सभी तरह परेशानियों से मुक्ति एवं आनंद की प्राप्ति, थकावट से राहत, उत्साह में बढ़ोतरी, कुदरती खूबसूरती, वातावरण की स्वच्छता और वास्तुदोषों के नाश आदि के फल मिलते हैं। मनुष्य की आंखों को हरियाली से भरे हुए पेड़-पौधे राहत एवं तन्दुरुस्ती के हिसाब से भी बहुत फायदेमंद प्रदान करते हैं। जिस तरह बहुत सारे भलाई कार्य करने, बहुत अधिक लोकहित सोच से हवन-पूजन करवाने अथवा तड़ाग खुदवाने या फिर देवताओं की पूजा-अर्चना से प्राप्त नहीं होते हैं, वह भलाई केवल एक पौधे को लगाने से सरलता से मिल जाती हैं। इस तरह एक वृक्ष लगाकर जीवधारी प्राणियों को नया जीवन मिलता हैं। वास्तुशास्त्र में भी वृक्षों का मनुष्य से गहरे संबंध के बारे में व्याख्या की गई हैं। जब भी अपने निवास स्थान की जगह पर पेड़-पौधों को लगाते समय वास्तु का भी ख्याल रखना चाहिए अन्यथा ये प्रदूषण दूर करने की अपेक्षा वास्तुदोष भी उत्पन्न करते हैं। 



Importance of Vastu Tips for Home Garden





गृह वाटिका या बगीचा में पौधरोपण के नक्षत्र (Constellations for planting saplings in the home garden or garden):-जब भी गृहवाटिका में पेड़-पौधों को लगाने का ख्याल आने पर  नक्षत्रों का विचार अवश्य करना चाहिए जैसे- उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढ़ा, स्वाति, हस्त, रोहिणी और मूल आदि नक्षत्र पेड़-पौधों को लगाने में अच्छे होते हैं। इन नक्षत्रों के समय में लगाएं गए पेड़-पौधे जल्दी बढ़ोतरी करते हैं। 



घर में बगीचा या गार्डन कहां होना चाहिए और कौन दिशा सबसे अच्छी रहती हैं? (Where should be the garden or garden in the house and which direction is best?):-आवास में से गार्डन के लिए स्थान को निकालते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।



१.आवास स्थान के बायीं ओर की जगह में ही बगीचा लगाना चाहिए।



२.जो मनुष्य अपने निवास की जगह से पूर्व, उत्तर, पश्चिम या ईशान दिशा में फूल-फल आदि के पेड़ से युक्त फुलबगिया बनाता है, वह मनुष्य हमेशा गायत्री से युक्त, धर्म एवं श्रद्धा से दोनों हाथों से देने वाला और लोकहित के विचार से हवन-पूजन युक्त शुभ काम को करने वाला होता हैं।



3.लेकिन जो मनुष्य अपने निवास की जगह से आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य या वायव्य में फूल-फल आदि के पेड़ से युक्त गार्डन बनाता है, वह मनुष्य हमेशा रुपये-पैसे की तंगी एवं नुकसान भोगने वाले, सन्तान के रूप में पुत्र उसके मान-सम्मान को ठेस पहुँचाने वाले तथा परलोक में निंदनीय लोकचर्चा प्राप्त होती है। वह मृत्यु को प्राप्त होता है। वह वंश-परम्परा आदि समाज में खराब चाल-चलन वाला और ओछा-दूसरे की बुराई करने वाला होता हैं। इसलिए निवास स्थान के नैऋत्यकोण अथवा अग्निकोण में गृहवाटिका नहीं लगानी चाहिए।




गार्डन में दिशा-विशेष में स्थित होने पर शुभ अथवा अशुभ फल:-कई वृक्ष ऐसे हैं, जो दिशा-विशेष में लगे होने पर शुभ अथवा अशुभ फल देने वाले हो जाते हैं, जैसे-



फसलों के लिए दिशाओं हेतु चुनाव:-जब भी कोई किसान या गृहवाटिका में अनाज और फल या फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको निम्नलिखित दिशाओं का चुनाव करके लगाने पर फायदा होता हैं।


 

1.नैर्ऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा) में:-जब बहुत वजन वाले बड़े फल या दाने वाली, गूढ़ बलदायक गुण वाले फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको नैर्ऋत्य कोण में लगाना चाहिए।



2.वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम दिशा) में:-जब लम्बे कद, लम्बाकार दानों या फलों, कम शाखाओं के फैलाव वाले, वायवीय गुणों वाले अनाज और फल या फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको वायव्य कोण में लगाना चाहिए।



3.आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व दिशा):-जब गर्म, चरपरे, कम जल वाले, कड़वे, कटु भूख को बढ़ाने वाले मिर्च, अदरक आदि फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको आग्नेय कोण में लगाना चाहिए।



4.ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में:-जब जलीय गुणों वाले (जल के अंश से युक्त रसवाले स्वादिष्ट) रसदार फल या फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको ईशान कोण में लगाना चाहिए।


 


गार्डन के लिए फल-फूल वाले पेड़-वृक्षों की दिशा का चुनाव:-शास्त्रों में पेड़-पौधों या वृक्षों को सही दिशा में लगाने को बहुत जरूरी बताया हैं, जिससे सही दिशा में लगे पेड़-पौधों का फायदा मिल सके। इसलिए निम्नलिखित तरह के अनाज और फल या फसलों या पेड़-पौधे को या वृक्षों को जब भी कोई किसान या गार्डन में लगाने वाला हो, तो उनकी आकृति को ध्यान रखते हुए सही दिशाओं का चुनाव करके लगाने पर फायदा होता हैं। 



1.पूर्व दिशा:-जब मनुष्य के निवास स्थान की पूर्व दिशा में पीपल का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को हर समय खौफ सतता रहता हैं और समाज में निम्न आर्थिक जीवन स्तर से जीवन को जीने वाले होते हैं। लेकिन पूर्व दिशा में बरगद का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह की मन की इच्छाओं की पूर्ति होती हैं।



2.पश्चिम दिशा:-जब मनुष्य के निवास स्थान की पश्चिम दिशा में वट का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को राजकीय शासित सत्ता से संकट एवं तकलीफे औरत और खानदान की बरबादी होती हैं और आम, कैथ, अगस्त्य तथा निर्गुण्डी रुपये-पैसों एवं जमीन-जायदाद की बरबादी करवाते हैं। लेकिन पश्चिम दिशा में पीपल का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।




3.उत्तर दिशा:-जब मनुष्य के निवास स्थान की उत्तर दिशा में गूलर का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को मन की कल्पना से उत्पन्न विचारों से कष्ट व झंझट और ऑंखों में होने वाले रोग से कष्ट होता हैं। लेकिन उत्तर दिशा में कैथ और पाकर (पाकड़) का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।




4.दक्षिण दिशा:-जब मनुष्य के निवास स्थान की दक्षिण दिशा में पाकर (पाकड़) का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को व्याधि और सभी तरह से नाकामयाबी मिलती हैं। लेकिन उत्तर दिशा में गूलर और गुलाब का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



5.आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व दिशा):-जब मनुष्य के निवास स्थान की आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व दिशा) में वट, पीपल, सेमल, पाकर तथा गूलर का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को कष्ट और मरण के समान कष्ट होता हैं। लेकिन आग्नेय कोण में अनार का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



6.नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा) में:-जब मनुष्य के निवास स्थान की नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा) में जामुन, कदम्ब और इमली वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



7.वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम दिशा) में:-जब मनुष्य के निवास स्थान की वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम दिशा) में बेल (बिल्व) वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



8.ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में:-जब मनुष्य के निवास स्थान की ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में आँवला, कटहल एवं आम वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



घर में बगीचा या गार्डन लगाते समय विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए:- 



1.यदि निवास स्थान की जगह के पास में कोई अनिष्टकारी पेड़-वृक्ष लगे हो और उन पेड़-वृक्ष को वहां से काटने में बाधा आ रही हो, तो उन अनिष्टकारी पेड़-वृक्ष और निवास स्थान की जगह के बीच में हितकारी या मंगलकारी पेड़-वृक्ष को लगा देना चाहिए।




2.यदि मनुष्य के आवास के नजदीक पीपल का वृक्ष लगा हो, तो उस पीपल के वृक्ष की नियमित रूप से विनय, श्रद्धा और समपर्ण की सोच से जल, फूल, फल, अक्षत आदि चढाकर पूजा एवं देखभाल करते रहना चाहिए।



3.यदि किसी वृक्ष, मन्दिर आदि की अनुकरण रूपी प्रतिकृति दिन के दूसरे और तीसरे पहर (सूर्योदय से लेकर तीन-तीन घण्टे का एक पहर) में निवास स्थान पर पड़ती हैं, तो उस निवास स्थान के सदस्य हमेशा तकलीफ और व्याधि से पीड़ित रहते हैं।




4.अक्सर नगरों में जमीन का भाग कम होता हैं, अतः आवास स्थान में वट, पीपल, गूलर, आम, नारियल आदि बड़े वृक्षों का लगाना अच्छा नहीं होता है। यह वृक्ष आकार में बहुत बड़े और फैलने वाले होते हैं एवं इसी कारण इनकी जड़ें भी जमीन के बहुत गहराई तक जाती हैं।



5.जमीन के छोटे भाग पर जब इन बड़े आकार एवं गहराई तक फैलने वाले वृक्ष को लगाया जाता हैं, तो इनके जड़ें गहराई में जाने पर आवास की दीवारों में दरज उत्पन्न होने लगती हैं, जिससे आवास को नुकसान की संभावना हो सकती हैं। इस तरह उपरोक्त सभी तरह बड़े आकार वाले वृक्ष अमंगलकारी होते हैं, लेकिन भूमि का टुकड़ा ज्यादा होने पर या जोतने-बोने की जमीन वाले कृषिक्षेत्र आदि में इन्हें लगाया जा सकता हैं।



6.बहुत सारे मनुष्य अपने आवास में किचन गार्डन लगाने लग गए हैं, इस तरह आवास में किचन गार्डन लगाने में किसी विशेष वास्तु सहमति के कायदे नहीं हैं।



7.निवास स्थान की छत पर भी यदि पौधे लगाए जा रहे हैं, तो कोई विशेष नियम नहीं है। बस यह ध्यान रखना चाहिए कि काँटेदार पौधे नहीं हों।



8.जब आवास स्थान में कैक्टस जैसे रेतीली भूमि में उगने वाले रेगिस्तानी पौधे उगाये जाते हैं, तब उस आवास के सदस्यों में बेचैनी, दुश्मनों के द्वारा परेशानी और रुपये-पैसों का नुकसान होता रहता हैं।



9.लॉन या दूब लगाना:-जब निवास स्थान की जगह में खुला घासयुक्त मैदान वाला लॉन या दूब को लगाना हो, तो आवास के पूर्वी अथवा उत्तरी दिशा में हितकारी रहता हैं।



10.यदि आवास के पूर्व दिशा में बड़े एवं फैलाव वाले वृक्षों का न होना या कम होना हितकारी होता हैं। यदि उन वृक्षों को नहीं काट पाने की स्थिति में आवास के उत्तर दिशा की ओर उनके बुरे प्रभावों को ठीक तरह करने के लिए आंवला, अमलतास, हरश्रृंगार, तुलसी, वन तुलसी आदि पौधों में से कोई भी एक पौधों को लगाया जा सकता है।



11.जब वृक्षों में किसी भी कारण से कम फल लगे या नहीं लगते हो, तब उड़द, मूंग, यव, तिल और कुलथी को एक साथ मिलाकर उनको पानी में डालकर उस पानी से उन वृक्षों को जल देना चाहिए।



12.शयनागार में:-मनुष्य अपने दिन भर की थकावट से अपने शरीर को राहत देने के लिए अपने निवास स्थान में  सोने के कक्ष का सहारा लेता है, जिससे उसके शरीर में पूरे दिन की नष्ट हुई ऊर्जा सोकर मिल सके। उस जगह पर भी पौधे लगाने की राह नहीं दे सकते हैं, क्योंकि रात्रिकाल में पेड़-पौधे या वृक्ष अपनी क्रियाविधि को चलाने के लिए कार्बनडाई ऑक्साइड को छोड़ते हैं और स्वयं ऑक्सीजन को उपयोग करते हैं, जिससे शयनागार के पास रहने से मनुष्य को शुद्ध ऑक्सीजन नहीं मिल पाती हैं और कार्बनडाई ऑक्साइड को ग्रहण करना पड़ता हैं जिससे मनुष्य की तन्दुरुस्ती बिगड़ने लगती है और कई रोगों का घर मनुष्य शरीर बन जाता हैं।



13.पुष्प वाले पौधे:-आवास में पुष्प वाले पौधे, मनीप्लान्ट अथवा तड़क-भड़कदार वाले शोभाकारी सजावटी, दीवार, पेड़ आदि पर फैलने वाले बिना तने की लता या बेलों को लगाना भी फलदायक होता है। मनी प्लान्ट अर्थात् रुपयों-पैसों को अपनी तरफ खींचकर धनवान वाला पौधा को हमेशा ईशान कोण या उत्तर दिशा में ही लगाना चाहिए।



14.कंटीले एवं दूध वाले वृक्ष:-वास्तु के अनुसार कंटीले एवं दूध वाले वृक्ष आवास के गार्डन में नहीं लगाने चाहिए।



आसन्नाः कन्टकिनो रिपू भयदाः क्षीरिणोSर्थनाशाय।


फलिनः प्रजाक्षय करा दारूण्यपि वर्जये देषाम्।। 


(बृहत्संहिता 53/86)


अर्थात्:-


काँटें वाले वृक्ष:-आवास के नजदीक टहनियों में सुई के आकार कंटक वाले वृक्ष जैसे-बेर, बबूल, गुलाब, कैक्टस को लगाने से आवास के लोगों हर समय दुश्मनों के द्वारा नुकसान पहुँचाने का डर सताता रहता हैं।




15.सफेद गाढ़े तरल युक्त दूध वाले वृक्ष या पेड़:-पत्तियों या डंठलों में स्थित सफेद तरल वाले पेड़ या वृक्ष को भी अपने आशियाना में नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि इन पेड़ या वृक्ष की टहनियों या डंठलों या पत्तियों से निकलने वाला सफेद तरल पदार्थ बहुत ही विष से युक्त होता हैं और नेत्रों के लिए हानिकारक होते हुए जलन सहित पीड़ा देने वाला होता हैं। जो वृक्ष ज्यादा सफेद गाढ़े तरल युक्त दूध वाले हो, उनको लगाने से आवास वाले लोगों को रुपये-पैसों का नुकसान करवाते हैं, जिससे हर समय आर्थिक तंगी के हालात बने रहते हैं।




16.फलदार वृक्षों:-फलदार वृक्षों को अपने निवास स्थान में खुली रखी हुई जगह जिसका उपयोग अपने निवास स्थान के कामों में किया जाता हैं, उस जगह पर फलदार वृक्षों को लगाना अनिष्टकारी शास्त्रों में वर्णित किया गया हैं। क्योंकि इस स्थान में लगे हुए फलदार वृक्षों के फल को तोड़ने के लिए बच्चे वृक्ष पर चढ़कर गिरने का डर रहता हैं जिससे उनको चोट लग सकती हैं और फल तोड़ने के चक्कर में शिला का प्रयोग कर सकते हैं, जिससे निवास स्थान के दरवाजों या खिड़की आदि की जगहों पर लगे दर्पण या आईना को शिला मारकर तोड़ सकते हैं। जो वृक्ष फल वाले हो, उनको लगाने से आवास के लोगों को सन्तान और स्त्री सुख का नुकसान होता हैं। इन फल वाले वृक्षों की काष्ठ को आवास में नहीं लगाना चाहिए। यदि उपरोक्त वृक्षों को काटना संभव नहीं हो, तो इन वृक्षों और आवास के बीच में हितकारी वृक्ष को लगा देना चाहिए।



17.बेल बिना तना वाली लताएं:-जो जमीन, दीवार, पेड़ आदि पर फैलकर बिना तने की लताओं को अपने निवास स्थान के नजदीक नहीं लगाने की राय दी जाती हैं, क्योंकि ये लताएं जब फैलती हुई निवास स्थान की कई जगहों को अपना सहारा बनाकर निवास स्थान पर मकड़ी के झाले की तरह छा जाती हैं, जिससे इन फैली हुई लताओं के शेयर भुजंग, वृश्चिक, मूषक और जो पूरे शरीर को जमीन पर टेढ़ा-मेढ़ा करते हुए खिसकने वाले सरीसृपों या कीड़े-मकोड़े आदि विष से युक्त जीवात्मा निवास स्थान में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे उनके स्पर्श से खाने-पीने की चीजों की दूषित हो जाती है और उनके द्वारा काटने से मानव शरीर में विष के संचार से मृत्यु तक का डर रहता हैं, इसलिए अपने निवास स्थान की जगह पर बेल को नहीं लगाना चाहिए।





18.बड़े और बहुत विस्तृत वृक्षों को:-बड़े-ऊँचे और बहुत फैलाव वाले वृक्षों को लगाने के विषय में शास्त्रों में वर्णन मिलता हैं कि इस तरह के वृक्षों को सदैव दक्षिण दिशा या पश्चिम दिशा या दक्षिण-पश्चिम दिशा में से कोई भी दिशा जो आशियाने में फैले हुए जगह के अनुसार लगाना चाहिए। जिससे कि इन वृक्षों के द्वारा मनुष्य निवास स्थान पर मध्याह्न के समय पड़ने वाली सूर्य की तेज अग्नि के समान गर्मी और नुकसानदायक रश्मियों का प्रभाव मानव शरीर पर नहीं पड़ सके। क्योंकि जब पूर्व दिशा में बड़े पेड़ होंगे तो पौ फटने के समय सूर्य की आने वाली किरणें जो जोश एवं बल देने वाली, निश्चत एवं स्थिर स्वरूप और वास्तुदोषों को दूर करने वाली होती है, वे ठीक से नहीं आ पावेगी। जबकि पश्चिम दिशा में बड़े पेड़ होने पर संध्या के समय की नकारात्मक ऊर्जा एवं बुरे असर से रक्षा करेगी।




19.छोटे वृक्षों या पेड़-पौधों:-छोटे पेड़-पौधों या वृक्षों को हमेशा उत्तर दिशा या पूर्व दिशा या उत्तर-पूर्व या ईशान कोण में लगाने की राह शास्त्रों में वर्णित किया गया हैं, जिससे निवास स्थान पर सूर्य की किरणें सही तरीके से बिना किसी व्यधान से प्रवेश कर सके और सूर्य की गर्मी के द्वारा संचलन करने की शक्ति मानव को मिल सके और शरीर को आवश्यक सोलह विटामिनों में से विटामिन ए व विटामिन डी आदि की उचित मात्रा मिल सके और मनुष्य के शरीर की पुष्टि बनी रह सकें।  




लेकिन कुछ आचार्यों के अनुसार:-वास्तुशास्त्र के कुछ वास्तुशास्त्रियों के अनुसार गुलाब एवं सफेद आक लगाना नुकसान दायक नहीं होता हैं, बल्कि इनको लगाना फायदेमन्द होता हैं।




शास्त्रानुसार भवन के नजदीक वृक्ष होने का शुभाशुभ निर्णय:-निम्नलिखित रूप से लेना चाहिए।



कौनसे अशुभ पेड़ या वृक्ष नहीं लगाये:-मनुष्य को अपने घर के पास निम्नलिखित वृक्ष या पेड़ जैसे-पाकर, गूलर, आम, नीम, बहेड़ा, पीपल, अगस्त्य, बेर, निर्गुण्डी, इमली, कदम्ब, केला, नींबू, अनार, खजूर, बेल आदि को नहीं लगाना चाहिए, अन्यथा अमंगलकारी और नुकसान होता हैं।


 

वास्तु सौख्यम् 39 के अनुसार:-


मालती मल्लिकां मोचां चिच्चां श्वेतां पराजिताम्।


वास्तुन्यां रोपयेद्यस्तु स शस्त्रेण निहन्यते।।



1.अर्थात्:-जब अपने आवास के गार्डन की जमीन में मालती, मल्लिका, मोचा (कपास), इमली, श्वेता (विष्णुक्रान्ता) और अपराजिता आदि पेड़-पौधों को लगाता हैं, वह मनुष्य किसी हथियार के आघात से मृत्यु को प्राप्त करता हैं। 




बदरी कदली चैव दाड़िमी बीजपूरिका।


प्ररोहन्ति गृहे यत्र तद्गृहं न प्ररोहति।। (समरांगण सूत्रधार 38/131)


2.अर्थात्:-जब किसी भी निवास स्थान की जगह पर जब कदली (केला), बदरी (बेर) एवं बांझ अनार आदि बिना बोये उग जाते हैं या बोये जाते हैं, जिससे उस निवास स्थान में रहने वाले सदस्यों के जीवन में बढ़ोतरी नहीं होती हैं। आवास की सरहद में कदली (केला), बदरी (बेर) एवं बांझ अनार के वृक्ष पड़ता है। बेर का वृक्ष ज्यादा दुश्मनी करवाता हैं। 



अश्वत्थं च कदम्बं च कदली बीज पूरकम्।


गृहे यस्य प्ररोहन्ति सगृही न प्ररोहति।। (बृहद्दैवज्ञ.87/9)



3.अर्थात्:-जब किसी भी निवास स्थान की जगह पर जब पीपल, कदम्ब, केला, बीजू नींबू आदि बिना बोये उग जाते हैं या बोये जाते हैं, जिससे उस निवास स्थान में रहने वाले सदस्यों की बढ़ोतरी नहीं होती हैं। 




4.जब आवास स्थान की हद में पलाश, कंचन, अर्जुन, करंज और लश्वेमांतक नामक वृक्षों में से कोई भी वृक्ष होता है, उस आवास स्थान में हमेशा बेचैनी बनी रहती है।




5.पीपल का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में पीपल का वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों का वंश आगे नहीं बढ़ता हैं, क्योंकि पीपल के वृक्ष पर पितृगणों, साँपों और आत्माओं का निवास होता है। 



6.शमी का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में शमी का वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों पर बुरी शक्तियों का असर होने लगता हैं। 



7.कीकर का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में कीकर के वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों पर नकारात्मक शक्ति अपने असर में ले लेती हैं।



8.इमली का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में पीपल के वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों का वंश आगे नहीं बढ़ता और शारीरिक व मानसिक व्याधि से ग्रसित रहते हैं, क्योंकि शमी, कीकर और इमली के वृक्षों में भी बुरी आत्माओं का निवास माना जाता है, अतः इन्हें घर में नहीं लगाना चाहिए।


9.चंदन का पेड़:-जब आवास स्थान के पास या हद में चंदन का पेड़ उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों को हर समय भय बना रहता हैं। क्योंकि चंदन के वृक्ष से सर्प आकर्षित होते हैं। अतः इन्हें घर में नहीं लगाना चाहिए।



10.नीम का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में नीम का वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों को हर समय बिना मतलब के क्लेश बना रहता और आवास को नुकसान हो सकता हैं। क्योंकि नीम की जड़े जमीन में गहराई तक जाती हैं, अतः इन्हें घर में नहीं लगाना चाहिए।



11.नारियल के वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में नारियल का वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों में बिना मतलब एक-दूसरे से श्रेष्ठ होने की और दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति बनती हैं। क्योंकि नारियल का वृक्ष की ऊँचाई बहुत ज्यादा होती हैं और हितकारी भी नहीं होते हैं, अतः इन्हें शहरी घर में नहीं लगाना चाहिए।



कौनसे शुभ पेड़ या वृक्ष गार्डन में लगाये:-मनुष्य को अपने आवास में पेड़-वृक्ष जैसे-अशोक, पुन्नाग, मौलसिरी, शमी, चम्पा, अर्जुन, कटहल, केतकी, चमेली, पाटल, नारियल, नागकेशर, अड़हुल, महुआ, वट, सेमल, बकुल, शाल आदि को लगाना हितकारी रहता हैं।



1.अशोक का वृक्ष:-मनुष्य को अपने आवास में अशोक का वृक्ष लगाने पर सभी तरह के आत्मीय दुःख से उपजी वेदना से मुक्ति मिलती हैं और तकदीर का साथ मिलता हैं। यदि आवास स्थान की जमीन का भाग छोटा हैं, तो उसे घर के बाहर भी इसे लगाया जा सकता है।



2.वट या बरगद के वृक्षों:-जो मनुष्य को अपने निवास स्थान से खुली जगह में दो बड़ के वृक्षों का लगाना चाहिए, उस मनुष्य के सभी तरह के धर्म व नीति के खिलाफ किये बुरे अपराधों की माफी मिल जाती हैं। 



3.पलाश या ढाक के वृक्षों:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर पलाश के वृक्षों का लगाता है, उन दम्पत्तियों को कहना मानने वाला, सुंदर, सुशील और सभी तरह से आराम प्रदान करने वाला गुणवान पुत्र की प्राप्ति होती हैं। 




4.पारस का वृक्ष:-जो मनुष्य अपने आवास में पीपल से थोड़ा भिन्न छोटा पारस के वृक्ष का लगाता है, उन मनुष्य को जमीन-जायदाद की प्राप्ति होती हैं।



5.पीपल का वृक्ष:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर पीपल के वृक्ष को लगाता है, उन मनुष्य को सभी तरह आराम सहित वैभव की प्राप्ति होती हैं।



6.बिल्ब का वृक्ष:-जो मनुष्य को अपने निवास स्थान से खुली जगह में बिल्ब का एक वृक्ष लगाते हैं, उस मनुष्य को धन-संपत्ति की प्राप्ति होती हैं, क्योंकि बिल्व वृक्ष में लक्ष्मी जी का वास्तविक रूप से वास रहता हैं।



7.आँवला का पेड़:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर या किसी भी जगह पर आमलक के पेड़ को लगाता है, उस मनुष्य को जमीन-जायदाद, दौलत और सभी तरह की परेशानियों से मुक्ति मिल जाती हैं।



8.श्वेतार्क का पेड़:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर या किसी भी जगह पर श्वेतार्क के पेड़ को लगाता है, उस मनुष्य को गणेश एवं शिवजी की अनुकृपा से सोना-चाँदी और अन्य बहुमूल्य धातुएँ सहित द्रव्य की प्राप्ति होती हैं। 



9.केले का पेड़:-जो मनुष्य अपने आवास में या किसी भी जगह पर केले के पेड़ को लगाता है, उस मनुष्य पर भगवान सत्यनारायण जी की अनुकृपा सहित लक्ष्मीजी की कृपा भी मिल जाती हैं। 



10.गूलर का पौधा:-जो मनुष्य अपने आवास में या किसी भी जगह पर गूलर का पौधा को लगाता है, उस मनुष्य को चन्द्रमा ग्रह से मिलने वाली पीड़ा से मुक्ति मिल जाती हैं। ।



11.निर्गुडी का पौधा:-जिस आवास की हद में निर्गुडी का पौधा का लगा होता हैं, उस आवास में हमेशा वैयक्तिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती हैं।


 

12.दूसरे पौधे:-मनुष्य को आवास की हद से दूर अंगूर, पनस, पाकड़ तथा महुआ के पौधों को लगाना भी हितकारी होता हैं।

 


13.पुष्पदार पौधों में:-मनुष्य को आवास की हद से दूर या आवास स्थान में चंपा, गुलाब, चमेली, केतकी पुष्पदार के पौधों को लगाना भी हितकारी होता हैं।



14.नीम का वृक्ष:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर या किसी भी जगह पर अर्थात् सड़क के किनारे या जहां पर वह पनप सके उस स्थान पर नीम का वृक्ष को लगाता है, उस मनुष्य को मंगल ग्रह से मिलने वाले कष्टों से मुक्ति, बढ़े हुए कर्ज और खून की बीमारियों से मुक्ति मिल जाती हैं। लेकिन कुछ आचार्यों ने कुछ दूसरे पेड़ जैसे-नीम, चंदन एवं नारियल को लगाना भी हितकारी बताया है।



15.तुलसी का पौधा:-मनुष्य को अपने निवास की जगह के ईशान या ब्रह्म स्थान तुलसी का पौधा लगाना चाहिए, जिससे मनुष्य को सुबह दर्शन करने से सोने के दान की तरह फल मिल जावें, रुपये-पैसों, पुत्र सन्तान की प्राप्ति, सभी तरह परोपकार के कार्यों का फल, ईश्वर भक्ति में रुचि और कल्याण की प्राप्ति हो सकें। लेकिन तुलसी के पौधे को दक्षिण दिशा में में नहीं लगाना चाहिए, अन्यथा मरने के समय यम दूतों के द्वारा दी जाने वाले कष्टों को झेलना पड़ता हैं।

 


विशेष:-जब परिस्थिति वश किसी वृक्ष को काटना पड़े, तो उस स्थिति में दूसरे दश वृक्षों को कहीं पर लगाना चाहिए और उनकी देखभाल सभी तरह जैसे-पानी, खाद, जानवरों आदि से करनी चाहिए। इस तरह से वृक्षों की सेवा करने से जो वृक्षों को काटने से हुए बुरे कर्मों के दोष से मुक्त हो जाता हैं। मनुष्य को बिना वजह वृक्षों को काटना और उनकी डालों, पल्लवों को तोड़ना अनुचित एवं निंदनीय कर्म माना गया है, क्योंकि वृक्षों में भी जीवनी शक्ति होती हैं, क्योंकि यह बात को वैज्ञानिकों ने भी वास्तविक रूप से बिना विवाद के सिद्ध कर चुके हैं कि सुख-दुख और गर्मी, सर्दी व बरसात जैसी सभी चारों तरफ के हालातों से वृक्षों पर असर होता हैं और वे भी सही तरह से अहसास करते हैं। इसी कारण से वृक्षों को काटने और उनको नुकसान पहुँचाने के बारे में भर्त्सना की गई हैं। यही कारण है कि धर्मशास्त्रों में वृक्षों को नष्ट करने की निंदा की गई हैं।



ऋग्वेद के अनुसार:-वृक्षों को दुःख, काटने आदि करने के बारे में निम्नलिखित रूप से ऋग्वेद में कहा गया है-


मा काकम्बीरमुद्वृहो वनस्पतिम् शस्तीर्वि हि नीनशः।


मोत सूरो अह एवा चन ग्रीवा अदद्यते वेः।।


अर्थात्:-जिस तरह अपनी ताकत के बल द्वारा कुटिल मनोवृत्ति वाला बाज पक्षी दूसरे कमजोर पक्षियों की गर्दन को मरोड़कर उन्हें तकलीफ सहित पीड़ा देता हैं, तुम भी उसी तरह मत बनो। इन वृक्षों को पीड़ा मत दो, उनको जड़ से उखाड़-पछाड़ मत करो। ये सभी संसार के पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं को शरण देते हैं।