Breaking

Sunday 9 April 2023

नपुंसक योग के ज्योतिष कारण और उपाय(Napunsak yog ke jyotish reasons and remedies)

नपुंसक योग के ज्योतिष कारण और उपाय(Napunsak yog ke jyotish reasons and remedies):-पुराने समय एवं आज के समय में संसार में पुरुष की अहमियत ज्यादा समझी जाती थी। लेकिन बहुत बार ऐसे हालात भी मिलते हैं कि आदमी विवाह के बंधन में बंधने से बचते हैं और बहुत बार यह भी हालात मिलते हैं कि हर कोई लड़की या लड़के की इच्छा होती हैं, की वह शादी करके पति-पत्नी के रूप में रतिक्रीड़ा का सुख प्राप्त करेगा, जो कि एक-दूसरे के बिना पूर्ण नहीं हो पाता हैं। जब शादी होने के कुछ साल तक पति-पत्नी अपने गृहस्थ जीवन को प्रेम व आनन्द से व्यतीत करते हैं, लेकिन कुछ समय बाद वही पति-पत्नी के गृहस्थ जीवन में प्रेम की जगह पर कटुता उत्पन्न हो जाती हैं और उनके दाम्पत्य जीवन में खुशी की जगह पर दुःख की छाया अपना असर डाल देती हैं। आदमी अपनी औरत से लज्जा या डर के कारण अपना मुँह छिपाने लग जाता हैं और अपनी पत्नी से दूर रहने के लिए को मजबूर हो जाता हैं। इस तरह की दशा में वह अपने आप में दुःख एवं पीड़ा से दुःखी होकर तीव्र मनोविकार के कारण अपने सोचने-समझने की शक्ति खो देता हैं और कही बार तो इस तरह की दशा में अपने निवास स्थान की जगह को छोड़कर दूर चला जाता हैं, कभी-कभी तो इस तरह की दशा में वह अपने जीवन के यथार्थ और समस्याओं से डरकर अपनी ईहलीला को समाप्त कर लेता हैं। ऐसी हालात बनने के बहुत सारे कारण होते हैं, उन कारणों में से एक कारण यह हैं कि जब पुरुष या स्त्री के द्वारा कामवासना या इन्द्रियजन्य आनंद पूर्ण रूप से नहीं मिल पाने की वजह से पुरुष-स्त्री के गृहस्थ जीवन में मनमुटाव व दुःख के कारण उनका जीवन बहुत कष्ट से भरा हो जाता हैं, इसका कारण हैं कि स्त्री या पुरुष का किसी वजह के कारण कामशक्ति रहित अर्थात् नपुंसक होना होता हैं।  




Napunsak yog ke jyotish reasons and remedies




napunsak-yog-ke-jyotish-reasons-and-remedies

नपुंसकता का मतलब:-जब लड़के-आदमी या लड़की-औरत के द्वारा अपने सहयोगी के साथ अपने जननेंद्रिय में उचित कसाव नहीं होने पर समागम क्रिया को नहीं कर पाते हैं, जिससे वे अपने सहयोगी को पूर्ण रूप से रतिक्रीड़ा का सुख प्रदान नहीं कर पाते हैं और सन्तान उत्पत्ति करने वाले धातु जैसे-शुक्र या आर्तव की सही मात्रा नहीं होती हैं, उस व्याधि को नपुंसकता या कामशक्ति रहित कहते हैं।



नपुंसकता के कारण:-नपुंसकता के बहुत सारे कारण हो सकते हैं। लेकिन जैसे-जैसे स्त्री-पुरुष की उम्र बढ़ती जाती हैं और जब वे चालीस वर्ष की उम्र को पार कर लेते हैं, तब उनके शरीर के अंगों में कमजोरी आने लगती हैं, उस शारीरिक कमजोरी को दूर करने के लिए नशीली पदार्थों का उपयोग करने लग जाते हैं, लेकिन उनसे उनकी शारीरिक कमजोरी रूपी नपुंसकता समाप्त नहीं होती हैं, अपितु लंबे समय तक इलाज से ठीक नहीं होने वाली व्याधि के रूप में परिवर्तित हो जाती है। नपुंसकता व्याधि सम्बन्धित अधिकतर ज्योतिष शास्त्र में कारण एवं योगों का वर्णन मिलता हैं। ज्योतिष शास्त्र में नपुंसकता व्याधि के उत्पन्न होने कारणों के बारे जानकारी देने पूरी तरह से समर्थ हैं। कई पुरुषों या स्त्रियों में नपुंसकता रोग जन्म के समय से होता हैं, लेकिन कई पुरुषों या स्त्रियों में नपुंसकता रोग आसपास के हालात के कारण उत्पन्न होते है। कभी-कभी किसी तरह आघात के द्वारा अंग के कट-फट या छिल जाने से बनने वाले घाव या किसी हादसे के कारण नपुंसकता रोग की उत्पत्ति होती है।




जीव विज्ञान के अनुसार गर्भाधान काल का विशेष महत्त्व माना गया है। रूस के प्रसिद्ध जीव वैज्ञानिक प्रोफेसर लाखोवस्की ने वास्तविक रूप से अपना यह यकीन स्पष्ट किया कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड में स्थित तारों के समूह से आने वाली किरणों से स्त्री के गर्भ में अंडाणु एवं पुरुष के शुक्राणु से नये जीव की सृष्टि आरंभ होने और गर्भ के रूप में स्थापित होकर गर्भाशय से जन्म लेकर बाहर आने पर उस जीव के आगामी समय पर असर करती हैं।इस बात को आचार्य वराह मिहिर आज से करीब डेढ़ हजार वर्ष पहले ही जानकारी प्रदान कर दी थी।



प्रोफेसर लाखोवस्की ने प्रमाणित किया कि:-सम्पूर्ण लोक या ब्रह्मांड किरणें (Cosmic-Radiation) विभिन्न प्रकार के टिमटिमाते प्रकाशवाले खगोलीय पिंड या तारों एवं ग्रहों से आ रही है तथा जिनका बहाव अदृश्य आकाश से निरन्तर जमीन पर हो रहा है। वे कोशिका केन्द्र (Cell-newcly) के गुणसूत्रों (Chromosomes) धक्के के द्वारा प्रहार करती है। ये गुणसूत्र वैश्व विद्युत-अनुनादक (Cosmo-Electrical Resonators) होते हैं अर्थात् कोशिकाओं के तन्तु जो वंशानुगत विशेषताओं को अपने साथ ले जाकर निश्चित करते हुए सब एक साथ चलते हुए अपने दबाव के साथ धारा से ऊर्जा को उत्पन्न करके कुछ विशेष आवृत्तियों पर दूसरी आवृत्तियों की तुलना में एक ही समय उत्पन्न होकर ज्यादा विस्तार के साथ निरन्तर दोहराते हुए बदलाव करके संकेत प्रदान करते हैं, जो उन ब्रह्माण्ड किरणों को लेकर अपने अन्दर ढाल लेते है, जिनसे देहजनित ऊर्जा शक्ति या दैहिक विद्युत (Whittle Electricity) बनती है। वह छिपी हुई शक्ति वास्तविक रूप में आती है, जिसे हम प्राण धारण या जीवन कहते हैं।





प्रोफेसर लाखोवस्की के मतानुसार:-जब शुक्राणु-कोशिका एवं अंड-कोशिका का एक साथ जुड़कर निषेचित (Fertilized) अण्डे के जोड़े के रूप में मादा के गर्भ में उसके अंडाणु और नर के शुक्राणु से जीव की सृष्टि के आरंभ के समय (Gents) जिनमें अपने पूर्वजों की निजी विशेषता को अपनी पीढ़ी में अवतरित करने वाले सूक्ष्मजीव बनते हैं, गर्भस्थापन के समय विशेषता युक्त तरंगों (Specific-wave Length) में बदल जाते हैं तथा वे इस काबिल होते है कि किसी अन्य ग्रह, तारों से आ रही उनके अपने समान कँपाने या हिलाने वाली रफ्तार से युक्त तरंगों या किरणों के साथ दोहराते हुए बदलाव को पैदा कर सकें। इस तरह सोच-विचार करने को बहुत सामग्री मिल जाती है।




एक बहुत जानकर मनोवैज्ञानिकवेत्ता वैज्ञानिक जगत के सामने यह पेश किया कि गर्भ के स्थापन के समय ही मानव प्राणी ग्रह लोकों से निकलने वाली व उनकी तरफ खींचने वाली किरणों के द्वारा एक ढाँचे के रूप को ग्रहण कर लेता हैं और जीवन युक्त देह को धारण करके उसकी तकदीर का निर्धारण जीव वैज्ञानिक (Biological) दृष्टि से जन्म होने के साथ निश्चित हो जाता हैं। अर्थात् गर्भस्थापन के समय के जो ग्रह किरणें जिस तरह से असर करती हैं, वैसे ही गर्भ में जीव स्थापित हो जायेगा।

 


चन्द्र कलाएं भी इस विषय में जरूरी योग प्रदान करती है। जो बच्चे गर्भ में स्थापन से लेकर जन्म के समय से नपुंसक (क्लीब, हिजड़े) पैदा होते हैं, उनमें गर्भस्थापन तथा जीवन की अन्तिम बड़ी और जरूरी कार्य करने की एवं आगे बढ़ने इच्छा का आवश्यक मिलाप को देती हैं।




नपुंसकता कारणों को निम्नलिखित जरिये के द्वारा समझ सकते हैं। 



1.मनोवैज्ञानिक नपुंसकता:-जब लड़के-आदमी या लड़की-औरत में किसी तरह का डर, किसी तरह की शंका या किसी विषय के संबंध में मन में बार-बार सोचने से मन का विचलित होने की दशा में अपने सहयोगी के साथ पूरी तरह से बिना रुचि के सहवास क्रिया करने पर सहवास क्रिया को पूर्ण रूप से नहीं कर पाने को मनोवैज्ञानिक नपुंसकता कहा जाता हैं। जो लड़का-आदमी या लड़की-औरत यौन उतेजना (इरेक्शन) को लेकर मन ही मन में विचार करते रहते हैं, जिससे उनको कभी सन्तुष्टि नहीं मिल पाती हैं और वे यौन उतेजना को कभी प्राप्त नहीं कर पाते हैं।




हिजड़ा या नपुंसक होने के कारण:-दो कारण मुख्य रूप से होते हैं।



1.किसी भी स्त्री या पुरुष का हिजड़ा (नपुंसक) के रूप में जन्म होना उनके मनोवैज्ञानिक कारण से होता हैं।




2.जब गर्भ धारण के समय स्त्री या पुरुष की रुचि समागम क्रिया करते समय किसी तरह का डर होने या किसी तरह का संदेह होने पर भी हिजड़ा पैदा होने की संभावना बनती हैं।




पुरुष की वस्तुगत विशेषता मन में उत्पन्न होने वाले ख्यालों पर या सकारात्मक विशेषता से युक्त हैं। इसी तरह ही स्त्री की वस्तुगत विशेषता भी मन में उत्पन्न होने वाले ख्यालों पर या सकारात्मक विशेषता से युक्त होती हैं। लेकिन जब इन दोनों विशेषता के उल्टा कोई पुरुष यह कहता हैं कि स्त्री का जन्म होना बढ़िया हैं, स्त्री सबसे अच्छी हैं या स्त्री यह कहती हैं कि पुरुष का जन्म होना बढ़िया हैं, पुरुष सबसे अच्छा हैं आदि तो एक दशा ऐसी आती हैं कि उस पुरुष या स्त्री के मन में उसके सोचे हुए जन्म को प्राप्त करने की सोच स्थायी हो जाती हैं, जिससे वह आने वाले समय हिजड़ा के रूप में जन्म लेता हैं। जन्म लेने के बाद उनमें स्त्री या पुरुष के तरह विशेषता से युक्त लगने लगता हैं।




आयुर्वेद के अनुसार:-आयुर्वेद में वर्णन मिलता हैं कि जब औरत का रज (आर्तव) और आदमी का शुक्र धातु का मान समान रूप से मिलकर गर्भ में स्थापित होता हैं, तब नपुंसक या हिजड़ा सन्तान की उत्पत्ति होती हैं।




जब गर्भ धारण के समय आदमी या औरत को समागम क्रिया को करने में अरुचि या घिन हो तो जो बच्चा जन्म लेगा वह क्लीब या पुरुषत्वहीन होगा। इस तरह के कई जाँच पूरी तरह से मनोवैज्ञानिक रूप साक्ष्य विद्यमान हैं। 





1.जन्मोपरान्त नपुंसकता होने के मनोवैज्ञानिक कारण:-जब लड़के-आदमी या लड़की-औरत के शरीर में चिकनाई वाले पदाथों के अधिक सेवन से चर्बी का ज्यादा बढ़ जाना, छोटी-छोटी बातों पर ज्यादा चिड़चिड़ापन होना, किसी भी विषय के बारे में मन ही मन में सोच-विचार करने में लगा होने, मन के अंदर नकारात्मक विचारों का जन्म होना, मादक पदार्थों के ज्यादा सेवन करना, दंड योग्य कर्म करने के बाद गलती के अफसोस से पीड़ित होना और दूसरे ओर भी मन के ख्यालों कारणों के कारण से मनोवैज्ञानिक नपुंसकता का जन्म होता हैं। 




(१.) मनोवैज्ञानिक डर के कारण:-जब कोई भी लड़का या आदमी दूसरों से अपने प्रेम संबंध को छिपाकर किसी लड़की या औरत से प्यार करते हुए, मन में पकड़े जाने के डर की सोच रखते हुए समागम करते हैं, तो वह जल्दी ही समागम क्रिया में रुखलित या स्खलित हो जाता है जिससे उस लड़के या आदमी के मन में शारीरिक या मानसिक शिथिलता उत्पन्न हो जाती है जिससे वह समागम क्रिया में अक्षम होने की स्थिति में पंहुच जाता है।



(२.) व्याधि के कारण:-जब कोई लड़का या पुरुष किसी भी तरह की व्याधि से ग्रसित होते हैं, तब उनके शरीर में दुर्बलता आ जाती हैं, तब वे अपने सहभागी को समागम क्रिया में संतुष्ट नहीं कर पाते हैं।



(३.) बिना सहयोगी की इच्छा के कारण:-जब आदमी या लड़का अपने बिना सहयोगी की इच्छा से समागम क्रिया करते हैं, तब वे डरते हुए जल्दी ही रुखलित हो जाते हैं, जिससे उनके मन में हीन भावना पैदा हो जाती है और वह अपनी मजबूत मानसिक शक्ति एवं योग्यता पर भरोसा खो कर अपने आप को कामशक्ति के अयोग्य समझने लग जाता हैं। 



(४.) दिन में रतिक्रिया के कारण:-जब आदमी या लड़का और औरत या लड़की दिन के समय में सहवास करते हैं, तब वैज्ञानिक नजरिये से नपुंसकता आती है।




(५.) अमावस्या तिथि के कारण:-जब आदमी या लड़का और औरत या लड़की कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि में रात के समय में सहवास करते हैं, उस चन्द्रमा पूर्ण बली होने से सहभागी के अच्छे-बुरे का विवेक करने वाली भीतरी चेतना शक्ति कमजोर होती हैं, जिससे उस समय किया गया सहवास से मनोवैज्ञानिक नपुंसकता आती है।




मनोवैज्ञानिक नपुंसकता के कारणों के पीछे ज्योतिषीय ग्रह स्थिति का मुख्य आधार:-निम्नलिखित हैं।



1.जब जन्मकुण्डली के किसी भी घर सूर्य व चन्द्रमा एक साथ बैठे होते हैं और उन दोनों पर शनि ग्रह अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हो, तो आदमी या लड़का और औरत या लड़की में नपुंसकता आ जाती है।



2.जब जन्मकुण्डली के छठे घर में बुध अपनी दुश्मन की राशि में बैठा होता हैं और शुक्र अपनी नीच कन्या राशि होता हैं और उन पर राहु ग्रह अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हो, तो आदमी या लड़का और औरत या लड़की में मनोवैज्ञानिक नपुंसकता आ जाती है।



3.जब किसी जातक का जन्म चन्द्र ग्रहण (राहु एवं चन्द्रमा) के समय होता हैं, उस समय चौथे घर में सूर्य और सातवें घर में शनि ग्रह बैठा हो, तो कृष्णपक्ष में मनोवैज्ञानिक नपुंसकता आती है। इस तरह के और भी मनोवैज्ञानिक ज्योतिष योग है।



2.शारीरिक नपुंसकता:-जब लड़के-आदमी या लड़की-औरत के माता-पिता के डिम्ब का शुक्र से मिलन गर्भाशय के अंदर होता हैं, तब गर्भाशय में उचित रूप से पोषण नहीं मिलने या किसी तरह की विकृति होने से शरीर के अंगों का पूरी तरह से निर्माण नहीं हो पाता हैं और जन्म लेने वाले बच्चे में शारीरिक रूप से विकृति आ जाती हैं, जब वह जवानी की अवस्था में प्रवेश करता हैं, तब वह नपुंसकता के जाल में फँस जाता हैं। 




शारीरिक नपुंसकता के कारण:-जब लड़के-आदमी या लड़की-औरत के शरीर के जननेंद्रिय अंग पर आघात से घाव या कट-फट होने से, शारीरिक व्याधि, शरीर की वृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाले अंतस्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्त्रावित विशिष्ट रस के सही तरह से नहीं होने से, रक्त में शर्करा के स्तर बढ़ जाने वाले शुगर रोग, शरीर की धमनियों में रक्त प्रवाह की गति के तेज होने पर अथवा मादक पदार्थो या नशीली औषधियों के सेवन करने से शरीर में कमजोरी आने लगती हैं, जिससे शरीर में रक्त का सही ढंग से संचार नहीं होने से जननेंद्रिय सही रूप से कार्य नहीं करने से नपुंसकता का जन्म होता हैं।




1.जन्मोपरान्त किसी दुर्घटना या चोट से उत्पन्न हुई नपुंसकता के कारण:-निम्नलिखित हैं।



(१.) लड़की-औरत और लड़का-आदमी के जननेंद्रिय पर युवावस्था में चोट लगने पर:-जब लड़की-औरत और लड़का-आदमी की जन्मकुण्डली में शनि बाईस डिग्री से ऊपर उन्नतीस  डिग्री के बीच का हो और मंगल दस डिग्री तक सातवें घर में बैठा होता हैं और उन पर राहु अपनी दृष्टि से देखता हैं, तब लड़की-औरत और लड़का-आदमी के कम उम्र में आघात से अंग के कट-फट या छिल जाने से घाव बनने से नपुंसकता पैदा होती हैं।




(२.) लड़की-औरत और लड़का-आदमी के जननेंद्रिय पर युवावस्था में चोट लगने पर:-जब लड़की-औरत और लड़का-आदमी की जन्मकुण्डली में बुध उन्नीस से चौबीस डिग्री के बीच में स्थित हो और शनि तेबीस डिग्री तक पांचवें घर में बैठा होता हैं और एक सौ अस्सी डिग्री से युक्त राहु अपनी दृष्टि से देखता हैं, तब लड़की-औरत और लड़का-आदमी के युवावस्था में आघात से अंग के कट-फट या छिल जाने से घाव बनने से नपुंसकता पैदा होती हैं।




(३.) लड़की-औरत और लड़का-आदमी के जननेंद्रिय पर युवावस्था में चोट लगने पर:-जब लड़की-औरत और लड़का-आदमी की जन्मकुण्डली में शुक्र पांचवें घर में कन्या राशि के चौबीस से सत्ताईस डिग्री के बीच में स्थित हो और एक सौ अस्सी डिग्री से युक्त सूर्य अपनी दृष्टि से देखता हैं, तब लड़की-औरत और लड़का-आदमी के युवावस्था में आघात से अंग के कट-फट या छिल जाने से घाव बनने से नपुंसकता पैदा होती हैं।



(४.) लड़की-औरत और लड़का-आदमी के जननेंद्रिय के काटने पर:-जब लड़की-औरत और लड़का-आदमी की जन्मकुण्डली में राहु पहले घर में, शुक्र पांचवें घर में, बुध व शनि सातवें घर में और हर्षल ग्रह ग्यारहवें घर में बैठे हो, तो लड़की-औरत और लड़का-आदमी के द्वारा संतान उत्पन्न करने वाली इंद्रिय अंग-लिंगेन्द्रीय-प्रजनन नलिका को काटने पर नपुंसकता पैदा होती हैं।




2.नपुंसकता के अन्य शारीरिक कारणों में ज्योतिषीय योगों का विवेचन:-लड़की-औरत और लड़का-आदमी में कई तरह की व्याधियों जैसे-सोते समय नींद में किसी के साथ समागम क्रिया करते हुए संतान उत्पन्न करने वाली धातु जैसे-शुक्र का स्वतः ही निकलना अर्थात् स्वप्नदोष, सहवास क्रिया में वीर्य का कम समय में निकलना या शीघ्रपतन, संतान उत्पन्न करने वाली धातु की हानि अर्थात् धातु क्षय, सन्तानोत्पत्ति के लिए जरूरी शुक्राणु एवं आर्तव की कमी अर्थात् वीर्यरोग, थोड़ी-थोड़ी देर पेशाब निकलने के साथ शरीर की सप्त धातुओं जैसे-रक्त, रस, शुक्र आदि भी पेशाब की जगह से निकलने वाला प्रमेह रोग, उपस्थ रोग एवं स्त्रियों के जननेंद्रिय रोग और आदमी के अण्डकोषों में पानी भर जाना या अण्डकोषों का बढ़ जाना अर्थात् अण्डवृद्धि और चालीस वर्ष के बाद उत्पन्न नपुंसकता का वर्णन निम्नलिखित है- 



वियाग्रा, सिल्डेनाफिल, डपॉक्सिटीन


(१.) स्वप्न दोष:-जब लड़की-औरत और लड़का-आदमी के द्वारा रात के समय नींद में अवचेतन मन की कल्पना के स्वरूप जब सहवास क्रिया करने पर लड़की-औरत और लड़का-आदमी का रुखलित हो जाना ही स्वप्नदोष कहलाता हैं। जब जागने पर बहुत मन में खेद होता हैं, जिसके कारण मन-मस्तिष्क पर बहुत खराब असर होता हैं। इस तरह स्वप्नदोष बिना शादी किये हुए और शादी किये हुए लड़कीयों-औरतों और लड़को-आदमीयों में होता हैं, जिसका मस्तिष्क बहुत खराब मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है। जिससे लड़की-औरत और लड़का-आदमी एक-दूसरे के काबिल नहीं रहते हैं, इस नपुंसकता के ज्योतिष कारण इस प्रकार से हैं-

 



1.जब जन्मकुण्डली के दूसरे घर में चन्द्रमा, छठे घर में शनि एवं आठवें घर में मंगल होता हैं, तब स्वप्न दोष के कारण नपुंसकता पैदा होती हैं।




2.जब जन्मकुण्डली के दूसरे घर में सूर्य, छठे घर में शनि, आठवें घर में मंगल और सातवें या बारहवें घर में चन्द्रमा होता हैं, तब स्वप्न दोष के कारण नपुंसकता पैदा होती हैं।



3.जब जन्मकुण्डली के पांचवें घर में शनि, छठे घर में मंगल, सातवें घर में राहु और दूसरे या बारहवें घर में चन्द्रमा होता हैं, तब स्वप्न दोष के कारण नपुंसकता पैदा होती हैं।



स्वप्नदोष के निदान:-ज्योतिषीय योग से सम्बंधित स्वप्नदोष व्याधि का पूरी तरह से रोग की पहचान तथा उसके कारण का निश्चय करने योग्य हैं।





(२.) शीघ्रपतन:-जब लड़की-औरत और लड़का-आदमी के द्वारा सहवास क्रिया करते ही दोनों की शुक्र धातु एक-दूसरे को संतुष्ट किये बिना और इच्छा के विरुद्ध जल्दी निकलना ही शीघ्रपतन कहलाता हैं। इस तरह की स्थिति होने से उनको बहुत ही मानसिक और शारीरिक शिथिलता सहित हीन दशा महसूस करने लगते हैं और धीरे-धीरे वे अपने आप को कामशक्ति से रहित मानते हुए नपुंसक समझने लग जाते हैं। शीघ्रपतन व्याधि को उत्पन्न करने वाले ज्योतिषीय योग निम्नलिखित हैं।


 


1.जब जन्मकुण्डली में स्थित चर राशि जैसे-मेष, कर्क, तुला, मकर आदि में से किसी भी राशि में सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, शुक्र हो तो लड़की-औरत और लड़का-आदमी शीघ्रपतन के शिकार होता है।



2.जब जन्मकुण्डली में स्थित चर राशि जैसे-मेष, कर्क, तुला, मकर आदि में से किसी भी राशि में चन्द्रमा, मंगल हो और राहु, शुक्र अपनी उच्च मीन राशि और शनि अपनी उच्च तुला राशि में बैठा हो, तो लड़की-औरत और लड़का-आदमी शीघ्रपतन के शिकार होता है।



3.जब जन्मकुण्डली में स्थित चर राशि जैसे-मेष, कर्क, तुला, मकर आदि में लग्न हो अथवा सातवें में हो और पांचवें घर में वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुम्भ राशि स्थित हो उसमें शनि बैठा हो, तो लड़की-औरत और लड़का-आदमी शीघ्रपतन के शिकार होकर नपुंसकता से ग्रसित होते है।



4.जब जन्मकुण्डली में कन्या लग्न हो, शनि लग्न में बैठा हो और लग्न को बुध, शुक्र, राहु ग्रह देखते हो, तो लड़की-औरत और लड़का-आदमी शीघ्रपतन के शिकार होकर नपुंसकता से ग्रसित होते है।



5.जब किसी जातक का जन्म पूर्णिमा तिथि के समय में होता हैं, उस समय पहले घर में सूर्य और सातवें घर में चन्द्रमा ग्रह बैठा हो, तो लड़की-औरत और लड़का-आदमी शीघ्रपतन के शिकार होकर नपुंसकता से ग्रसित होते है।




शीघ्रपतन के निदान:-ज्योतिषीय योग से सम्बंधित शीघ्रपतन व्याधि का पूरी तरह से रोग की पहचान तथा उसके कारण का निश्चय करने योग्य हैं।


 


शीघ्रपतन के उपाय हेतु:-शीघ्रपतन से ग्रसित लड़की-औरत और लड़का-आदमी को शनि ग्रह से सम्बंधित शनि प्रधान भोजन करना चाहिए।


(३.) धातुक्षय:-जब लड़की-औरत और लड़का-आदमी के द्वारा एक-दूसरे के साथ सहवास क्रिया के बारे में मन में कल्पना करने पर पेशाब करने के समय या पेशाब करने से पूर्व शरीर के धातु तत्त्वों का तरल द्रव्य के रूप में बाहर निकलने से शरीर कमजोर होने को धातुक्षय कहलाता हैं। जिससे धीरे-धीरे वे अपने आप को कामशक्ति से रहित मानते हुए नपुंसक समझने लग जाते हैं। धातुक्षय व्याधि को उत्पन्न करने वाले ज्योतिषीय योग निम्नलिखित हैं।



1.जब जन्मकुण्डली के पहले घर में शुक्र अपने शत्रु राशि कर्क, सिंह राशि का होकर बैठा हो और मंगल अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हो, तो लड़की-औरत और लड़का-आदमी धातुक्षय के रोग से ग्रसित होकर नपुंसकता के शिकार होते है।



2.जब जन्मकुण्डली के चौथे घर में शनि अपनी नीच मेष राशि और चन्द्रमा हो, तो लड़की-औरत और लड़का-आदमी धातुक्षय के रोग से ग्रसित होकर नपुंसकता के शिकार होते है।



3.जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में शुक्र अपनी नीच कन्या राशि अपने शत्रु राशि कर्क, सिंह राशि का होकर बैठा हो और केतु भी अपनी नीच राशि एवं शत्रु राशि में बैठा हो, तो लड़की-औरत और लड़का-आदमी धातुक्षय के रोग से ग्रसित होकर नपुंसकता के शिकार होते है।




धातुक्षय के उपचार:-ज्योतिष योगों से सम्बंधित धातुक्षय व्याधि का भी ग्रह पूजा-विधान या अनुष्ठान विधि और औषधियों के इलाज से नपुंसकता ठीक हो जाती हैं।



(४.) अण्डवृद्धि:-जब आदमी के शुक्राणु को पैदा करने वाले अण्डकोषों में जब पानी भर जाता है या अण्डकोषों का आकार बढ़ जाता हैं, तब उसे अण्डवृद्धि कहते हैं। अंडवृद्धि के कारण धीरे-धीरे वे अपने आप को कामशक्ति से रहित मानते हुए नपुंसक समझने लग जाते हैं। अण्डवृद्धि व्याधि को उत्पन्न करने वाले ज्योतिषीय योग निम्नलिखित हैं।



1.जब जन्मकुण्डली के पहले घर में गुरु, राहु शत्रुगत राशि में बैठे होते हैं, तब आदमी में शुक्राणु पैदा करने वाले वृषण अंगों में किसी तरल द्रव्य के भर जाने से वृषण अंगों के आकार में वृद्धि होने आदमी कामशक्ति से रहित हो जाता हैं।



2.जब जन्मकुण्डली के छठे घर में मंगल, शनि, राहु ग्रह एक साथ एक राशि में बैठे होते हैं और शुक्र ग्रह छठे घर से छठे स्थान पर बैठा होता हैं, तब आदमी के वृषण अंगों में किसी तरल द्रव्य के भर जाने से वृषण अंगों के आकार में वृद्धि होने पर आदमी कामशक्ति से रहित हो जाता हैं। 



3.जब नवांश कुंडली में लग्न के स्वामी से पीड़ित नवांश का स्वामी राहु, मंगल गुलिक के साथ हो तो अण्डवृद्धि से नपुंसकता पैदा होती हैं।



4.जब नवांश कुण्डली में मंगल व राहु शुक्र के नवांश में स्थित होता हैं, तब अण्डकोष वृद्धि से नपुंसकता आती है।



5.जब कारकांश कुण्डली में बुध पर बुध, शुक्र की दृष्टि अण्डकोष वृद्धि देती हैं।



6.जब जातक का जन्म चतुर्थ तिथि की वृद्धि के समय तथा नक्षत्र क्षय व वृद्धि योग के समय हो तो अण्डवृद्धि होती है। यदि यह योग में व्याधि पैदा होने के समय पर बन जाएं तो व्याधि उत्पत्ति के समय बन जाएं तो व्याधि बर्दाश्त के बाहर होती हैं।




7.जब जन्मकुण्डली में चन्द्रमा व शुक्र मंगल की राशि वृश्चिक में  हो और गुरु एवं गुरु शनि के द्वारा देखा जाने पर जातक के अण्डकोष में पानी भर जाने से नपुंसकता पैदा होती हैं।



8.जब नवांश कुण्डली में चन्द्रमा, मंगल, शुक्र आठवें घर के नवांश राशि में बैठे हो, तो अण्डकोष में पानी भर जाने से नपुंसकता पैदा होती हैं।



अण्डवृद्धि के उपचार:-ज्योतिष योगों से सम्बंधित अण्डवृद्धि दोष के द्वारा उत्पन्न नपुंसकता को कमजोर ग्रह की पूजा या अनुष्ठान विधान और औषधीय इलाज के द्वारा ठीक किया जा सकता हैं 



 


(५.) हस्त मैथुन से नपुंसकता के ज्योतिषीय योग:-जब लड़का-आदमी और लड़की-औरत के द्वारा अपने चरमसुख की प्राप्ति के लिए हाथ से इंद्रिय को सहलाने में रुचि बढ़ जाती हैं, तब निरन्तर हस्तमैथुन करते रहने पर नपुंसकता शुरू हो जाती हैं। जन्मकुण्डली के आधार पर हस्तमैथुन से बनने निम्नलिखित ज्योतिष योग हैं।



1.जब जन्मकुण्डली का पहले घर में दूसरे घर का स्वामी, सातवें घर का स्वामी, छठे घर का स्वामी और शुक्र बुरे एवं क्रूर असर डालने वाले ग्रहों के प्रभाव से पीड़ित होता हैं, तब आदमी या लड़का शादी करने के बाद भी आनंद एवं वीर्यपात करने के लिए हाथ से इंद्रिय को सहलाने वाले होते हैं, जिससे वे संभोग क्रिया करने में अक्षम होने लग जाते हैं।



2.जब जन्मकुण्डली में बुध पहले घर का स्वामी होकर पांचवें घर में और राहु सातवें घर में बैठा हो, तो आदमी या लड़के शादी के पहले और शादी करने के बाद भी आनंद एवं वीर्यपात करने के लिए हाथ से इंद्रिय को सहलाने वाले होते हैं, जिससे वे संभोग क्रिया करने में अक्षम होने लग जाते हैं।



3.जब जन्मकुण्डली के पहले, सातवें और बारहवें घर में बुरे एवं क्रूर असर डालने वाले ग्रह (सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु) बैठे हो, तब आदमी या लड़के की रुचि अपने हाथ से इंद्रिय को सहलाकर वीर्यपात करने में होता हैं। इसके साथ ही ग्यारहवें घर में हर्षल ग्रह हो, तो वे संभोग क्रिया करने में अक्षम होने लग जाते हैं।



हस्तमैथुन के उपचार:-ज्योतिष योगों से सम्बंधित हस्तमैथुन दोष के द्वारा उत्पन्न नपुंसकता को कमजोर ग्रह की पूजा या अनुष्ठान विधान और औषधीय इलाज के द्वारा ठीक किया जा सकता हैं 





(६.) शराबी योग से भी नपुंसकता:-जब कोई भी लड़का-आदमी और लड़की-औरत अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए शराब का आश्रय लेते है परन्तु शराब या नशीले द्रव्य दीर्घ कालीन नपुंसकता पैदा करता हैं। शराब सेवन करने वाले ज्योतिषीय योग निम्नलिखित हैं।



1.जब जन्मकुण्डली के पहले घर के स्वामी बुध, दूसरे घर के स्वामी शुक्र और चन्द्रमा एक साथ ग्यारहवें घर में बैठे होते हैं और राहु अपनी क्रूर पूर्ण दृष्टि से देखता हैं, तब लड़का या आदमी अधिक शराब पीने के कारण नपुंसकता के शिकार हो जाते हैं।



2.जब जन्मकुण्डली के दूसरे घर में चन्द्रमा, सातवें घर में राहु और बारहवें घर में शनि बैठे होते हैं, तब लड़का या आदमी अधिक शराब पीने के कारण नपुंसकता के शिकार हो जाते हैं।



3.जब जन्मकुण्डली के दूसरे घर के स्वामी, नवें घर के स्वामी पांचवें, सातवें घर में बैठकर पहले घर को अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हैं, तब लड़का या आदमी अधिक शराब पीने के कारण नपुंसकता के शिकार हो जाते हैं। 



4.जब जन्मकुण्डली के दूसरे घर में शनि एवं राहु एक साथ बैठे होते हैं, उन पर सूर्य, मंगल, केतु अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हैं, तब लड़का या आदमी मादक द्रव्यों का अधिक सेवन करने से नपुंसकता के शिकार हो जाते हैं। 



5.जब जन्मकुण्डली के पांचवें, सातवें, बारहवें घर में क्रमशः शुक्र, शनि, मंगल, चन्दमा होते हैं, तब लड़का या आदमी बहुत ज्यादा रतिक्रीड़ा करने के कारण नपुंसकता के शिकार हो जाते हैं। इस ज्योतिषीय योग में 15 से 19 डिग्री तक शनि तथा 24 डिग्री से ऊपर चन्दमा, 27 डिग्री से 29 डिग्री के बीच में शुक्र हो तो आदमी में नपुंसकता 40 वर्ष के बाद आने लग जाती हैं। इसी तरह इन ग्रहों की डिग्री के आधार आदमी में नपुंसकता शुरू होने का समय ज्ञात किया जा सकता हैं। 



6.जब जन्मकुण्डली के दूसरे घर में चन्द्रमा, चौथे घर में शुक्र, सातवें घर में राहु और बारहवें घर में शनि बैठे होते हैं, तब लड़का या आदमी बहुत ज्यादा रतिक्रीड़ा करने के कारण नपुंसकता के शिकार हो जाते हैं।




शराबी योग के उपचार:-ज्योतिष योगों से सम्बंधित शराबी योग के द्वारा उत्पन्न नपुंसकता को कमजोर ग्रह की पूजा या अनुष्ठान विधान और औषधीय इलाज के द्वारा ठीक किया जा सकता हैं।




(७.) नपुंसकता के कारण मृत्यु योग:-जब लड़का-आदमी और लड़की-औरत कामशक्ति से रहित होने पर वे इतने निराश हो जाते हैं कि वे आदमी या औरत के सामने जाने अथवा उनके बारे में सोचने तक डरने लगे जाते हैं, तब वे अपनी जीवनलीला को समाप्त करने की सोचते हैं, निम्नलिखित ज्योतिष योगों के द्वारा निराश लड़का-आदमी और लड़की-औरत नपुंसकता के कारण मृत्यु कैसे करते है।




1.लड़का-आदमी और लड़की-औरत द्वारा ईहलीला समाप्त करने के योग:-जब जन्मकुण्डली में मीन लग्न हो, पहले घर में सूर्य एवं चन्द्रमा बुरे व क्रूर ग्रहों जैसे-शनि, मंगल, राहु, केतु आदि के साथ बैठा हो अथवा शुक्र अपनी नीच कन्या राशि में बैठकर देखता हो और राहु आठवें घर में स्थित होता हैं, तब लड़का-आदमी और लड़की-औरत नपुंसकता के कारण गुस्से में आकर ईहलीला समाप्त कर देते हैं।



2.लड़का-आदमी और लड़की-औरत द्वारा ईहलीला समाप्त करने के योग:-जब जन्मकुण्डली में मेष लग्न हो, पहले घर में सूर्य एवं कन्या राशि का चन्द्रमा एवं शुक्र सातवें घर में हो, तो लड़का-आदमी और लड़की-औरत के तानों के कारण परेशान होकर अपनी ईहलीला समाप्त कर लेते हैं।




3.लड़का-आदमी और लड़की-औरत द्वारा पानी में डूबकर अपनी ईहलीला समाप्त करने के योग:-जब जन्मकुण्डली के पहले घर में सूर्य एवं चन्द्रमा कन्या राशि का हो और बुरे व क्रूर ग्रहों जैसे-शनि व राहु अपनी पूर्ण दृष्टि से चन्द्रमा को देखते हो, तो लड़का-आदमी और लड़की-औरत नपुंसकता से परेशान होकर पानी में डूबकर अपनी ईहलीला समाप्त कर लेते हैं। 




4.लड़का-आदमी और लड़की-औरत द्वारा आग लगाकर अपनी ईहलीला समाप्त करने के योग:-जब जन्मकुण्डली में नेपच्यून ग्रह दूजे घर में और क्षीण चन्द्रमा, पापी ग्रह मंगल, शनि, राहु एक साथ आठवें घर में बैठे हो, तो लड़का-आदमी और लड़की-औरत नपुंसकता से परेशान होकर आग लगाकर अपनी ईहलीला समाप्त कर लेते हैं। 




5.जहर द्वारा ईहलीला समाप्त करने के योग:-जब लग्न नवांश से दशम नवांश का स्वामी शनि हो और राहु ग्रह भी साथ में बैठा हो, तो लड़का-आदमी और लड़की-औरत नपुंसकता से परेशान होकर जहर का भक्षण करके अपनी ईहलीला समाप्त कर लेते हैं।




6.जहर द्वारा ईहलीला समाप्त करने के योग:-जब जन्मकुण्डली में हर्षल दूसरे घर में, मंगल छठे घर में, चन्द्रमा व राहु सातवें घर में और शनि बारहवें घर में बैठा होता हैं, तब लड़का-आदमी और लड़की-औरत कामशक्ति से रहित समझकर एवं परेशान होकर जहर का भक्षण करके अपनी ईहलीला समाप्त कर लेते हैं।



नपुंसकता के बारे में जानकारी देने वाले विशेष ज्योतिषीय योगों का विवरण:-जब लड़के-आदमी या लड़की-औरत की जन्म के समय बनने वाली जन्मकुण्डली के द्वारा जानकर ज्योतिषी से जन्मपत्रिका का उचित विश्लेषण करवाकर जान सकते हैं, की नपुंसकता या कामशक्ति हीनता की व्याधि जन्म समय की हैं या किसी अन्य शारीरिक वजह या मन की कल्पना से उत्पन्न हैं। इस तरह प्राचीनकाल से वर्णित ज्योतिषीय योगों के द्वारा भी नपुंसकता के बारे में जान सकते हैं, जिससे लड़के-आदमी या लड़की-औरत के शादी करने के बाद किसी तरह से समागम क्रिया में तकलीफ नहीं होवे और शादी के बाद सुख-आनन्द से अपने रतिक्रीड़ा सुख को भोग सकें। निम्नलिखित ज्योतिषीय योगों के द्वारा अमुक लड़के-आदमी या लड़की-औरत में नपुंसकता का दोष होगा जन्मकुण्डली के विश्लेषण के द्वारा बनने वाले योगों से जानकारी मिल सकती हैं।




1.जब लड़के या आदमी की जन्मकुण्डली के दशवें घर में भृगु या मंद ग्रह एक साथ बैठे होते हैं, तब लड़के या आदमी के पुरुषेंद्रिय का पूरी उत्थान नहीं होता हैं।



2.जब लड़के या आदमी की जन्मकुण्डली के सौम्य ग्रह मीन राशि का होकर सातवें घर और दशवें घर में भृगु या मंद ग्रह एक साथ बैठे होते हैं, तब लड़के या आदमी के पुरुषेंद्रिय का पूरी विकास नहीं होता हैं। अर्थात् लड़के या पच्चीस वर्ष के आदमी के पुरुषेंद्रिय पाँच साल के बच्चे के पुरुषेंद्रिय के समान होता हैं।



3.जब लड़के या आदमी की जन्मकुण्डली के सातवें घर में सूर्य, बुध, शनि ग्रह एक साथ बैठे होते हैं, तब लड़का या आदमी काम शक्ति रहित अर्थात् नपुंसक होता हैं।  


4.जब जन्मकुण्डली के सातवें या आठवें घर बुध एवं शनि एक साथ बैठे हो, तो नपुंसक योग बनता हैं।


5.जब लड़के या आदमी की जन्मकुण्डली के सातवें घर में बुध, शनि ग्रह एक साथ और बारहवें घर में हर्षल ग्रह बैठा होतहें, तब लड़का या आदमी विवाह करने के बाद काम शक्ति रहित अर्थात् नपुंसक होता हैं।  



5.जब जन्मकुण्डली में मंगल पहले घर, राहु छठे घर और बुध अपनी नीच मीन राशि में बैठा होता हैं, तब जातक बचपन में अपनी गलतियों से काम शक्ति रहित अर्थात् नपुंसक होता हैं।



6.जब जन्मकुण्डली के सातवें घर का मालिक ग्रह चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) में स्थित होता हैं और बुध, शनि अपनी पूर्ण दृष्टि से उसे देखते हो तो नपुंसकता पैदा होती हैं।



7.जब जन्मकुण्डली में शुक्र के साथ में शनि या राहु ग्रह भी आठवें घर में बैठा हो, तो लड़के-आदमी या लड़की-औरत को धातु दोष जैसे-शुक्राणु या आर्तव सम्बन्धी व्याधि या हाथ के द्वारा अपनी कामवासना की तृप्ति करने में रुचि होती हैं।


8.जब जन्मकुण्डली में शनि के साथ में राहु ग्रह भी पहले घर में बैठा हो और बुध ग्रह आठवें घर में बैठा हो, तो लड़के-आदमी या लड़की-औरत कामशक्ति से रहित या नपुंसक होता हैं।



9.जब जन्मकुण्डली के किसी भी घर में चन्द्रमा एवं शुक्र एक साथ बैठे हो और उनके साथ पापी या क्रूर ग्रहों जैसे शनि या राहु या केतु ग्रह में से कोई भी एक ग्रह स्थित हो, तो लड़के-आदमी या लड़की-औरत कामशक्ति से रहित या नपुंसक होता हैं।



10.जब जन्मकुण्डली के किसी भी घर में चन्द्रमा एवं शनि एक साथ बैठे हो और उनके साथ पापी या क्रूर ग्रहों जैसे मंगल या राहु या केतु ग्रह में से कोई भी एक ग्रह स्थित हो, तो लड़के-आदमी या लड़की-औरत कामशक्ति से रहित या नपुंसक होती हैं।



11.जब जन्मकुण्डली के किसी भी घर में बुध एवं शनि एक साथ बैठे हो और उनके साथ शुक्र अस्त होकर साथ में बैठा हो, तो लड़के-आदमी या लड़की-औरत कामशक्ति से रहित या नपुंसक होती हैं।



12.जब जन्मकुण्डली में शनि के साथ में राहु ग्रह भी पहले घर में बैठा हो और शुक्र अस्त हो या शुक्र अपनी नीच कन्या राशि में स्थित हो, तो लड़के-आदमी या लड़की-औरत कामशक्ति से रहित या नपुंसक होता हैं।



13.जब वृश्चिक या कुम्भ जन्म लग्नकुण्डली में शनि के साथ में राहु या केतु ग्रह भी एक साथ आठवें घर में बैठे हो, तो लड़के-आदमी या लड़की-औरत कामशक्ति से रहित या नपुंसक होता हैं।



14.जब जन्मकुण्डली में शुक्र आठवें घर में बैठा हो, तो शुक्र ग्रह मंगल या शनि या दोनों ग्रह एक साथ अपनी पूर्ण दृष्टि से देखते हो, तो लड़के-आदमी या लड़की-औरत को धातु दोष जैसे-शुक्राणु या आर्तव सम्बन्धी व्याधि या हाथ के द्वारा अपनी कामवासना की तृप्ति करने में रुचि होती हैं।



15.जब जन्मकुण्डली में शुक्र व मंगल आठवें घर में एक साथ बैठे हो, तो शनि ग्रह दोनों ग्रहों पर एक साथ अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हो, तो लड़के-आदमी या लड़की-औरत को धातु दोष जैसे-शुक्राणु या आर्तव सम्बन्धी व्याधि या हाथ के द्वारा अपनी कामवासना की तृप्ति करने में रुचि रखने वाले और अण्डकोषों से सम्बंधित व्याधि से पीड़ित हो सकते हैं।



 

16.जब जन्मकुण्डली में शुक्र व मंगल सातवें घर में एक साथ बैठे हो, तो शनि ग्रह दोनों ग्रहों पर एक साथ अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हो, तो लड़के-आदमी या लड़की-औरत को रतिक्रीड़ा करने के समय रतिक्रीड़ा सम्बन्धित व्याधि होती हैं।



17.जब वृषभ या सिंह जन्म लग्नकुण्डली के छठे घर में गुरु ग्रह बैठा हो, लड़के-आदमी या लड़की-औरत कामशक्ति से रहित या नपुंसक या कोई गुप्त व्याधि से पीड़ित होता हैं।



18.जब सिंह या कन्या जन्म लग्नकुण्डली में आठवें घर और आठवें घर के स्वामी पर बुरे व क्रूर ग्रहों जैसे-सूर्य, मंगल, राहु, केतु और शनि के द्वारा अपनी पूर्ण दृष्टि से देखा जाता हो, तो लड़के-आदमी या लड़की-औरत कामशक्ति से रहित या नपुंसक होता हैं।



19.जब जन्मकुण्डली में आठवें घर में बुरे व क्रूर ग्रहों जैसे-सूर्य, मंगल, राहु, केतु और शनि बैठे हो और आठवें घर के पर बुरे व क्रूर ग्रहों जैसे-सूर्य, मंगल, राहु, केतु और शनि के द्वारा अपनी पूर्ण दृष्टि से देखते हो, तो लड़के-आदमी या लड़की-औरत कामशक्ति से रहित या नपुंसकता या किसी गुप्त व्याधि से ग्रसित होते हैं।



20.जब जन्मकुण्डली के बारहवें घर में शुक्र अपनी नीच कन्या राशि में शनि के साथ बैठा होता हैं, तब जातक में काम शक्ति हीनता अर्थात् नपुंसकता उत्पन्न होती हैं। 




21.जब जन्मकुण्डली के पहले घर या चन्द्र कुण्डली से पहले घर से सातवें घर शुक्र एवं शनि एक साथ बैठे होते हैं, तब जातक में काम शक्ति हीनता अर्थात् नपुंसकता उत्पन्न होती हैं। 




22.जब जन्मकुण्डली के पहले घर या सातवें घर में शुक्र पाप ग्रहों (सूर्य, मंगल, शनि, राहु) के बीच में बैठा होता है और चन्द्रमा एवं बुध भी एक साथ बैठे होते हैं, तब लड़के या आदमी के वीर्य में जीवित जीवाणु की कमी के कारण नपुंसकता होती हैं।



23.जब जन्मकुण्डली के सातवें घर का स्वामी बुध चौथे घर में हो और छठे घर का स्वामी शुक्र दशवें घर में बैठा होता हैं, तब सातवें घर के स्वामी की दशा और दशवें घर के स्वामी की अन्तर्दशा में नपुंसकता होती हैं।



24.जब कारकांश कुण्डली के सातवें घर में बुध, शनि एवं आठवें घर में चन्द्रमा के साथ शुक्र बैठा हो, तो चन्द्रमा, बुध तथा शुक्र, शनि की दशा-अन्तर्दशा में नपुंसकता पैदा होती हैं।




गोचर ग्रह के आधार पर नपुंसकता के योग:-गोचर के ग्रह भी अल्प समय के लिए नपुंसकता पैदा करते हैं।



1.जब जन्म राशि से गोचर के आधार पर चौथे घर में चन्द्रमा एवं शनि एक साथ कृष्णपक्ष में मिलते हैं, तब आदमी या लड़के को कुछ समय के लिए नपुंसकता आती हैं।



2.जब जन्म राशि से गोचर के आधार पर सातवें घर में चन्द्रमा, शुक्र एवं राहु एक साथ युति करते हैं, तब आदमी या लड़के को कुछ समय के लिए नपुंसकता आती हैं।



3.जब जन्म राशि से गोचर के आधार पर सातवें घर में मंगल अपनी नीच कर्क राशि में होकर प्लूटो के साथ युति करते हैं, तब आदमी या लड़के को कुछ समय के लिए नपुंसकता आती हैं।



4.जब जन्म राशि से गोचर के आधार पर सातवें घर में बुध एवं शनि एक साथ युति करते हैं, तब आदमी या लड़के को कुछ समय के लिए नपुंसकता आती हैं।



5.जब जन्म राशि से गोचर के आधार पर छठे घर में शुक्र एवं राहु एक साथ युति करते हैं, तब आदमी या लड़के को कुछ समय के लिए नपुंसकता आती हैं।



6.जब जन्म राशि से गोचर के आधार पर पांचवें या सातवें घर में शनि अपनी नीच मेष राशि में बैठे होते हैं, तब आदमी या लड़के को कुछ समय के लिए नपुंसकता आती हैं।



नपुंसकता के उपाय:-नपुंसकता से सम्बन्धित अनेकानेक जन्म पत्रिका में योग पाया जाता है, तो इस रोग से छुटकारा भी दिलवाया जा सकता है। जो नपुंसकता जन्म के साथ होती हैं, उनका इलाज शायद ही हो सकता हैं।




1.ग्रह उपचार के द्वारा:-ज्योतिष योगों से सम्बंधित अन्य तरह की नपुंसकता में कमजोर ग्रह की पूजा या अनुष्ठान विधान और औषधीय इलाज के द्वारा ठीक किया जा सकता हैं 




2.रत्न उपचार एवं रत्नों का विविध विधि से प्रयोग कर:-नपुंसकता रोग से मुक्ति दिलाने में रत्न उपचार एवं रत्नों का विविध विध प्रयोग करके कर सकते हैं।




1.माणिक्य रत्न की क्रीम बना कर पुरुषेंद्रिय पर मालिश करनी चाहिए।



2.कारिलियन की क्रीम भी पुरुषेंद्रिय पर मालिश करनी चाहिए।




3.धारण योग्य रत्न को:-जन्म पत्री का उचित रूप से योग्य जानकर ज्योतिषी के द्वारा विश्लेषण करवाकर उनके मार्गदर्शन में धारण करना चाहिए, जिससे नपुंसकता में राहत मिल सकें।


 


3.विशिष्ट प्रकार के स्नान करवाकर:-नपुंसकता से ग्रसित को विशिष्ठ प्रकार के स्नान करवाने से फायदा मिलता हैं।



4.केंचुए का चूर्ण का उपयोग:-जब रात को सोते समय ताजा दूध बिना गर्म किये हो, उस दूध को पुरुष अपनी पुरुषेंद्रिय पर धीरे-धीरे मालिश करना चाहिए। उसके बाद केंचुए को सुखाकर बनाएं हुए चूर्ण की मालिश करने पर नपुंसकता समाप्त हो जाती हैं।



5.औषधीय हलवा के द्वारा:-जायफल को तवे पर भूनकर और गाय के शुद्ध घृत में शकरकन्दी को सेकर बनाये हुए हलवे में मिलाकर औषधि बना लें, फिर उस बनी हुई औषधि को नब्बे दिन तक सुबह-शाम दो समय पर हल्के गर्म दूध के साथ खाने पर फायदा मिलता हैं।




6.अण्डकोष वृद्धि होने पर:-जब अण्डकोष की वृद्धि होने लग जाती हैं, तब तम्बाकू का पत्ता को नियमित रूप से अण्डकोष पर बाँधने पर कुछ ही दिनों में उम्मीद से ज्यादा फायदा मिलता हैं।  



7.मालिश के रूप में:-लंबी नाक और छोटी पूँछ वाला पालतू या जंगली शूकर जानवर के शरीर का सफेदी लिए हुए पीले रंग का चिकना गाढ़ा पदार्थ अर्थात् चर्बी की कमर पर मालिश करने से मनोवैज्ञानिक विकार भी दूर हो जाते हैं।




8.मालिश एवं खाने के रूप में:-सेही (पीठ पर नुकीले काँटे से युक्त लोमड़ी के आकार किआ जन्तु) की चर्बी से मालिश पुरुषेंद्रिय पर करना चाहिए तथा सेही के शरीर की हड्डियों और चमड़े के बीच का मुलायम और लचीला भाग को खाना चाहिए।



9.मालिश एवं खाने के रूप में:-रोहू मछली की चर्बी से मालिश पुरुषेंद्रिय पर करना चाहिए तथा रोहू मछली को खाना चाहिए।



10.आयुर्वेदिक औषधि के रूप में गोखरू को दुग्ध के साथ गर्म करके अच्छी तरह पकाकर उस दुग्ध सहित गोखरू से बने अवलेह को पीना चाहिए। 



11.नशीले या मादक द्रव्यों का सेवन रोकना:-नशीले द्रव्यों या मादक पदार्थों के सेवन को बंध करना चाहिए। 



12.जीवनसाथी का सहयोग:-उपरोक्त के साथ-साथ जीवन साथी का पूर्ण सहयोग परिस्थितियों वंश उत्पन्न नपुंसकता को दूर करने में विशेष महत्व रखता हैं।