वनस्पतियों के पत्तों का चमत्कारिक तांत्रिक प्रयोग एवं लाभ(Miraculous tantric uses and benefits of plant leaves):-विश्वगोलक में सूर्य और उसकी परिक्रमा करने वाले ग्रह विद्यमान हैं। मनुष्य का अपना एक सौर मण्डल होता हैं जिसमें एक रवि और नौ ग्रह विद्यमान होते हैं। पृथ्वी भी इन्हीं नौ ग्रहों में से एक है। इस पृथ्वी को अनेक नामों से जाना जाता है जैसे-धरती, धरा, वसुधा, वसुन्धरा आदि। सभी मनुष्य भी इसी पृथ्वी पर ही निवास करते हैं। धरती पर अनेकों प्रकार के जीव-जन्तु, पेड़-पौधे आदि दिखाई देते हैं। इनमें अनेक तरह की समानताएं और विभिन्नताएं दिखाई देती हैं। इस तरह धरती पर लाखों प्रकार के प्राणी विद्यमान हैं।
वनस्पति का अर्थ:-वे जीव जो कि पृथ्वी की तह को फोड़कर अंकुर के रूप में निकलते हैं, उन्हें 'उद्भिज' कहा जाता हैं। जैसे-पेड़-पौधे आदि। इन पेड़-पौधों को ही सामूहिक रूप से 'वनस्पति' कहा जाता हैं।
प्रत्येक जीव एक-दूसरे पर अपना जीवन को चलाने के लिए आश्रित होते हैं। मनुष्य भी जीवित रहने के लिए अन्य प्राणियों पर निर्भर हैं, विशेषकर 'वनस्पति' या 'उद्भिज' जीवों पर। मनुष्यों के जीवन में वनस्पतियों का विशेष महत्व हैं।
वनस्पतियों का तंत्र-मंत्र में प्रयोग:-प्राचीन काल हिन्दू विद्वानों ने अनेक वर्षों तक निरन्तर अनुसन्धान करके यह निष्कर्ष निकाला था कि-वनस्पतियों के द्वारा तांत्रिक प्रयोगों को भी सम्पन्न किया जा सकता है। तांत्रिक प्रयोग करते समय-मुहूर्त, पूजा-पाठ, मंत्र का जाप आदि का विशेष ध्यान रखना पड़ता हैं।
◆उचित विधि-विधान से वनस्पतियों का तांत्रिक प्रयोग जैसे-शारीरिक रोग, मानसिक रोग, पारिवारिक समस्या, सामाजिक समस्या, व्यापारिक समस्या आदि का निराकरण किया जा सकता हैं।
◆इसके अतिरिक्त-धन-लाभ प्राप्त किया जा सकता है, सुख-समृद्धि में वृद्धि की जा सकती हैं और अपने जीवन को सुखी बनाया जा सकता है।
◆वनस्पति जगत के पंचांग होते हैं अर्थात् जड़, तना, पत्ते, फल और फूल पांच भाग होते हैं। इन पंचांग में से पत्ते के द्वारा तांत्रिक प्रयोग का विवरण किया जा रहा है, जिसको को जानकर मनुष्य अपने जीवन पर पड़ने वाले ग्रहों जनित, बुरे शक्तियों से मुक्ति पाकर अपने जीवन को खुशहाल बना सकते हैं।
विभिन्न वनस्पति के पत्तो से फायदा:-निम्नलिखित लाभ या फायदे प्राप्त होते हैं-
1.रामनामी केले का पत्ता:-लाखों पेड़ों में कोई एक पेड़ ऐसा निकल आता है, जिस पर स्पष्ट रूप से 'राम' लिखा होता है। अगर किसी व्यक्ति को ये पत्ता प्राप्त हो जावे तो उस पत्ते को घर लाकर विधिपूर्वक पूजन करके हल्दी एवं गोरोचन का लेप करके पूजा के स्थान में रखना चाहिए जिससे भगवान श्रीरामजी की अनुकृपा मिल जावे।
2.शतावर का पत्ता:-शतावर के पत्तों का तंत्र के क्षेत्र में बड़ा महत्व माना जाता है ऐसा कहा जाता है कि इस पत्ते पर हनुमान जी पर्वत उठाये हुए मालूम पड़ते हैं यदि इस पत्ते को महीनों भी पानी में डाला जाये तो हनुमान जी का चित्र ज्यों का त्यों रहता हैं। इस पत्ते को पूजा के स्थान पर रखने से महाबला सिद्धि सम्पन्न की जाती हैं। कुछ समय की साधना से हनुमान जी शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं तथा साधक को अद्भुत शक्ति प्रदान करते हैं। जिस घर में यह पत्ता होता है। उस घर में भूत-प्रेत हमेशा के लिए भाग जाते हैं। यदि इस पत्ते को ताबीज में रखकर गले में धारण किया जाए तो बीमारी से रक्षा होती है तथा पहनने वाले पर भूत-प्रेत का प्रभाव नहीं होता हैं।
3.श्वेत गुज्जा की जड़ और पत्तों:-को पीसकर ताम्बूल के साथ खिलाने से सभी मनुष्य अपने किये हुए अनुसार चलते हैं।
4.भाँग के पत्ते:-को लेकर सरसों के साथ मिलकर देह पर लेप करने से संसार मोहित हो जाता हैं।
5.तुलसी के पत्तों को:-लेकर उन्हें छाया में सुखा ले। उसके साथ अश्वगंधा तथा भाँग के बीज कपिला गाय के शुद्ध दूध के साथ पीसकर छोटी-छोटी गोलियां या वटी बना ले, प्रातःकाल उठकर उस वटी को खाने से साधक सम्पूर्ण जगत मोहित कर लेता हैं।
विषम ज्वर:-श्यामा तुलसी की पत्तियों की माला बनाकर रोगी को गले में धारण करें, फिर अगले दिन उस माला को कच्ची जमीन में गड्ढा खोदकर दबा देनी चाहिए। इस तरह यह प्रक्रिया सात दिन तक लगातार करने से विषम ज्वर शान्त हो जाता हैं।
स्मरण शक्ति की बढ़ोतरी हेतु:-मनुष्य को किसी शुभ मुहूर्त में यह प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। इस प्रक्रिया में तुलसी के ग्यारह पत्ते तोड़ लें और अच्छी तरह से चबा-चबाकर खा लेना चाहिए। यह प्रक्रिया लगातार इकत्तीस दिन तक करने से स्मरण शक्ति में बढ़ोतरी होती हैं।
दमा रोग से छुटकारा हेतु:-रोगी को प्रतिदिन तुलसी की चार-छः पत्तियाँ मुख में चुसनी चाहिए। यह प्रक्रिया प्रतिदिन तीन से चार बार करनी चाहिए। इस तरह यह प्रयोग लम्बे समय तक करने पर शरीर के भीतरी कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और दमा में आराम होता हैं।
पेट के रोग:-पेट के रोग (जैसे-कब्ज, अपच, अफारा, पेट-दर्द, पेट के कीड़े होना, भूख न लगना आदि) में तुलसी का प्रयोग करना चाहिए। पानी को उबालकर फिर उस पानी को ठंडा होने दें, उस पानी में दस से बारह तुलसी की ताजी पत्तियों को डालकर उस पानी को पियें। इस तरह प्रतिदिन करना चाहिए।
6.अपामार्ग या ओंगा या लटजीरा या चिरचिटा के पत्ते को:-रवि पुष्य नक्षत्र अथवा शुभ मुहूर्त में लाना चाहिए, फिर इसके पत्ते को स्नान कराकर निम्नलिखित रूप से उपयोग में लेना चाहिए-
◆श्वेत अपामार्ग की पत्तियों को पीसकर यदि बिच्छू काटे स्थान पर लगा दिया जाय तो विष का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
◆लाल अपामार्ग की ताजा पत्तियों की माला प्रतिदिन पहनने से कण्ठमाला का पुराने से पुराना रोग भी दूर हो जाता है।
◆यदि मनुष्य बुखार से पीड़ित है किसी भी प्रकार से बुखार मनुष्य का पीछा नहीं छोड़ रहा है तो परेशान होने की आवश्यकता नहीं है आप अपामार्ग की तीन या चार पत्तियाँ को गुड़ के साथ मिलकर तीन दिन तक रोगी को खिलाने पर रोगी के बुखार में तुरन्त लाभ मिलता हैं।
7.अमलतास पेड़ की पत्तियों के रस से भी:-खुजली के रोग को समाप्त करने की सामर्थ्य हैं।
8.अर्जुन वृक्ष की पत्तियाँ:-बड़ी कलात्मक होती हैं इसलिए विवाह शादी के अवसर पर इसकी पत्तियों को सजावट के लिए प्रयोग किया जाता है। गेट तथा बन्दरवार इसकी पत्तियों द्वारा ही बनाये जाते हैं।
9.धतूरा पौधा के पत्तों को:-तोड़ने पर पीले रंग का रस निकलता है इसे इकट्ठा कर लेना चाहिए, यह अनेक रोगों में काम आता है।
10.अशोक वृक्ष की ताजा तीन कोमल पत्तियाँ:-प्रातःकाल नियमपूर्वक चबाने से शोक व चिन्ताओं से मुक्ति मिल जाती हैं।
रोग-शोक आदि के नाश के लिए:-जबकि किसी घर में रोग-शोक पीछा नहीं छोड़ रहे हों और कोई परेशानी लगातार बनी ही रहती हो तो अशोक के पेड़ के पत्तों को किसी शुभ मुहूर्त में घर पर लाकर उसकी बन्दरवार बनाकर लगानी चाहिए, ऐसा करने से घर में प्रवेश करने वाली वायु शुद्ध हो जाती हैं और सभी तरह की बाधाएं बाहर रह जाती हैं- इससे शुभ कार्य बहुत अच्छी तरह से सम्पन्न होते हैं और उनमें किसी प्रकार की कोई बाधा नहीं आती हैं और रोग-शोक आदि का नाश होने लगता हैं।
पुत्र उत्पन्न करने के लिए:-स्त्री अपने मासिक-धर्म के दिनों में पलाश या ढाक के पेड़ का एक पत्ता लेकर उसे बछड़े वाली गाय के दूध में पीसकर पी लें। फिर मासिक-धर्म समाप्त होने के बाद स्नान करके उसी रात को संभोग करे तो इससे गर्भ ठहरक, संतान के रूप में लड़का ही उत्पन्न होगा।
बवासीर या अर्श दूर करने के लिए:-जबकि शनिवार को पुष्य नक्षत्र हो तो यह प्रयोग करें-प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व आक या मदार के सात पत्ते तोड़ लाएं। फिर उसके बाद जब शौचक्रिया से निवृत्त होने के लिए जाएं तो यह पत्ते अपने साथ ले जाएं। फिर शौच से निवृत्त होकर अपनी गुदा को जल से धो लें और उसके बाद में आक के एक-एक पत्ते से गुदा को रगड़कर उन पत्तों को दक्षिण दिशा की ओर फेंकते जायें। इस प्रकार से इस क्रिया को लगातार इक्कीस दिनों तक करें। इससे बवासीर की जलन और सूजन दूर होकर यह रोग पूर्णतः नष्ट हो जाता है।
11.नीम के पत्तों के उपयोग:-निम्नलिखित रूप में होता हैं-
बिच्छू का विष उतारने के लिए:-जबकि किसी व्यक्ति को बिच्छू ने काट लिया हो और उसका विष नहीं उतर पा रहा हो तो-कोई अन्य व्यक्ति नीम की दस-बारह पत्तियाँ अपने मुख में डालकर चबाये और फिर अपने मुख से पीड़ित व्यक्ति (जिसे बिच्छू ने काटा हो) कि कान में फूँक मार दे तो बिच्छू का विष उतर जाता है-ऐसा अनेक तांत्रिकों का कहना हैं।
प्रत्येक प्रकार का विष दूर करने के लिए:-जबकि कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार के विष से पीड़ित हुआ हो और उसका उपचार भी कराया जा रहा हो लेकिन उसको कोई लाभ नहीं हो रहा हो तो ऐसी दशा में यह प्रयोग करें-नीम की ढेर सारी पत्तियाँ लाकर बिछा दें और उसके ऊपर पीड़ित व्यक्ति को लिटा दें। लिटाने से पहले व्यक्ति के सारे कपड़े उतार देने चाहिए, केवल गुप्तांगों को ही ढका रहने देना चाहिए, व्यक्ति के ऊपर पत्तियों को बिछाकर छोड़ देना चाहिए। इस तरह समय के बीतने पर विष का असर कम होने लगता हैं।
पेट में कीड़े होना, पुरानी कब्ज:-रोगी को प्रतिदिन दस-बारह नीम की पत्तियां चबानी चाहिए, इस तरह लम्बे समय तक पत्तियों को चबाने रहने पर पेट के कीड़े, पुरानी कब्ज से छुटकारा मिल जाता हैं।
चर्म रोग, कोढ़:-जिन मनुष्य को चर्म रोग, कोढ़ हो उनको पन्द्रहरा-बीस नीम की पत्तियों को रोज चबाना चाहिए जिससे बहुत पुराना चर्म रोग भी ठीक हो जाता है।
बहुत सारी नीम की पत्तियों को ठंडे पानी के भगोले में उबालकर उस पानी से स्नान करना चाहिए, जिससे पुराना चर्म रोग ठीक हो जाता है।
उपदंश:-जबकि किसी पुरुष या महिला के गुप्तांगों के आस-पास के क्षेत्र में फुन्सियाँ, दाने, घाव आदि हो जावें तो पीड़ित व्यक्ति को प्रतिदिन पन्द्रहरा-बीस नीम की ताजी पत्तियों को चबानी चाहिए। पत्तियों को पानी में गर्म करके उबले पानी को शरीर के सहने योग्य रखते हुए गुप्तांगों को धोना चाहिए। जिससे उपदंश रोग से राहत मिलती हैं।
पत्ते लाने की विधि:-पत्ते लाने की विधि निम्नलिखित हैं-
◆जिस किसी भी मनुष्य को पत्ते लाने के हो, उस दिन से पहले कोई शुभ समय को पंचांग से जानना चाहिए।
◆जिस पेड़ या वृक्ष से पत्ते लाने के दिन से पूर्व के दिन पहले सन्ध्याकाल में उस पेड़-पौधों को न्यौता देकर आना चाहिए।
◆उस पेड़-पौधों के पत्तियों के पास जाकर हाथ जोड़कर उनसे विनती करनी चाहिए कि-हे ब्रह्म औषधी। मैं कल तुम्हें अपने प्रयोग के लिए लेने आऊँगा। अतः आप मेरे साथ चलकर मेरे कार्य को सफलता प्रदान करें।
◆फिर अगले दिन मनुष्य को प्रातःकाल उठकर घर से पवित्र-स्नान करके स्वच्छ कपडो को पहने।
◆फिर किसी शुभ मुहूर्त में भूतादि सहित शिव की पूजा करें।
◆जो सामग्री मिल सकें जैसे-कच्ची सुपारी, गुलाल, कुंकुम, अक्षत, पुष्प, धूप, दिप और नैवेद्य आदि को लेकर अच्छे विचारों से युक्त व्रत को रखते हुए उस वृक्ष के पास में जाना चाहिए। फिर वृक्ष के पास जाकर उसकी जड़ को अभिमंत्रित निम्नलिखित मंत्र के द्वारा करना चाहिए-
ऊँ बेतालाश्च पिशाचाश्य राक्षसाश्च सरीसृपाः।
अपसर्पन्तु ते सवे वृक्षादस्माच्छिवाज्ञया।।
अर्थात्:-बेताल, पिशाच, राक्षस, सरीसृप आप सब शिव की आज्ञा से इस वृक्ष से दूर हों। इस मंत्र से अभिमन्त्रित करके औषधी को खोदते समय लक्ष कर रहे है कि हे ब्रह्म औषधी! जिस कारण तुम्हें ब्रह्मा भृगुजी ने खोदा तथा जिस कारण तुम्हें वरुण और इन्द्र ने खोदा है। इसी कारण मन्त्र से अभिमन्त्रित कर पवित्र हाथों से मैं तुम्हें खोद रहा हूँ। हे कल्याणी! अपने सर्वगुणों सहित तुम मेरा कल्याण करो मेरे कार्य की सिद्धि होने पर तुम्हारा स्वर्ग में वास होगा।
मन्त्र:-ऊँ ह्रीं चण्डें हुं फट् स्वाहा।
◆इस मंत्र से रविवार के दिन, पुष्य नक्षत्र या पुष्य अर्क योग में ऊँ वन दण्डे महादण्डाय स्वाहा।
◆ऊँ शुद्री कपाल नलिनी स्वाहा। यह मन्त्र सात बार जपकर औषधी उखाड़ कर प्राप्त करने पर कार्य की सिद्धि होती हैं।
◆वृक्ष की पूजा करके और प्रार्थना करनी चाहिए कि हे वनस्पति देव! मैं आपकी शरण में आए है। जिस किसी भी काम के लिए गये हो, उस काम के बारे में उस वनस्पति देव के आगे दोहराना चाहिए और उनके आगे विनती करनी चाहिए कि-हे वनस्पति देव! आप अपने पत्ते को देवें, फिर उस वनस्पति से पत्ते को तोड़कर लेकर चले जावे और पीछे की ओर मुड़कर नहीं देखे।