कृष्णामूर्ति ज्योतिष पद्धति से नक्षत्रों के आधार पर फलादेश(Krishnamurti astrology predictions on the basis of constellations):-कृष्णामूर्ति पद्धति में ग्रहों के फल देने का आधार नक्षत्र एवं उप नक्षत्र का स्वामी माना गया है। इस पद्धति से फलादेश करने का सिद्धान्त सर्वप्रथम 'मीना' नामक लेखक ने प्रतिपादित किया। इसके बाद कृष्णामूर्ति जैसे विद्वान ने इस पर और अधिक खोज की। कृष्णामूर्ति ने खोज करते हुए पाया कि दो या तीन ग्रह जब एक ही राशि में एक ही नक्षत्र में स्थित होने के बावजूद भी अलग-अलग फल दे रहे हैं, तो उन्होंने इस पर और खोज की। उन्होंने खोज करते हुए नक्षत्र जो कि 13 डिग्री 20 अंश का होता है। उसे विशोंत्तरी दशा के कुल 120 वर्षों का आधार बनाकर प्रत्येक ग्रह में कुल वर्षों से भाग देकर नक्षत्र को नौ भागों में बांटा। इसे उन्होंने उप नक्षत्र या सब लॉड की संज्ञा दी। इसके आधार पर उन्होंने पाया कि दो या तीन ग्रह एक ही नक्षत्र में स्थित होते हुए भी उप नक्षत्र भिन्न-भिन्न होने के कारण अनुकूल-प्रतिकूल फल देते हैं।
कृष्णामूर्ति ज्योतिष पद्धति में फलादेश के सिद्धांत:-इस पद्धति में ग्रहों के फल देने के सिद्धांत में पांच बातें निम्न प्रकार है-
पहला सिद्धांत फलादेश:-ग्रह जिस भाव में बैठा है, उस भाव का फल वह ग्रह देगा जो कि उस भाव स्थित ग्रह के नक्षत्र में स्थित हैं।
उदाहरणार्थ:-मेष लग्न में सूर्य स्थित हैं, तो जो ग्रह सूर्य के तीन नक्षत्रों कृत्तिका, उत्तराफाल्गुनी एवं उत्तराषाढ़ा में क्रमशः मेष, सिंह अथवा धनु राशि में 26 डिग्री 40 कला से लेकर 30 डिग्री तक, इसी तरह वृषभ, कन्या व मकर राशि के 0 डिग्री से 10 डिग्री तक स्थित होगा, वह ग्रह सूर्य का फल देगा।
दूसरा सिद्धांत फलादेश:-यदि कोई अन्य ग्रह इन नक्षत्रों में स्थित नहीं होगा तो फिर सूर्य उस भाव का फल देगा।
तीसरा सिद्धांत फलादेश:-यदि मेष राशि में कोई ग्रह स्थित नहीं हो तो मेष राशि का स्वामी मंगल के तीनों नक्षत्रों क्रमशः मृगशिरा, चित्रा एवं धनिष्ठा में जो ग्रह स्थित है, वे ग्रह मेष राशि का फल देंगे।
चौथा सिद्धांत फलादेश:-यदि कोई अन्य ग्रह मंगल के मृगशिरा, चित्रा एवं धनिष्ठा नक्षत्रों में स्थित नहीं हैं, तो फिर मंगल स्वयं उस राशि का फल देगा।
पांचवां सिद्धांत फलादेश:-उपरोक्त चार प्रकार से फल निर्धारण के अलावा ऐसे ग्रह जो उस भाव एवं भाव में स्थित ग्रह से किसी प्रकार से संबंध स्थापित करते हों तो वे ग्रह भी उस भाव का फल देने में सहायक होंगे।
ग्रहों के फल देने के इन पांच सिद्धांतो के अलावा एक मुख्य बात:- यह है कि यदि राहु एवं केतु इन भावों से संबंध रखते हों अथवा उन राशियों में बैठे हैं तो वे उस ग्रह का फल लूट लेते हैं। उस ग्रह के स्थान पर स्वयं मुख्य रूप से फल देते हैं। उस ग्रह को फल नहीं देने देते।
उदाहरणार्थ:-मेष राशि में सूर्य, बुध एवं शुक्र स्थित है। यदि राहु एवं केतु इन ग्रहों के नक्षत्रों में स्थित हो अथवा सूर्य की राशि सिंह में स्थित हो तो सूर्य के स्थान पर राहु-सूर्य का फल देगा।
◆इसी प्रकार राहु या केतु बुध की राशि मिथुन अथवा कन्या में स्थित होगा तो बुध के स्थान पर राहु या केतु देंगे।
◆इसी प्रकार शुक्र की राशि वृषभ या तुला में राहु या केतु स्थित होने पर शुक्र के स्थान पर राहु या केतु फल देंगे। शुक्र फल नहीं देगा।
कृष्णामूर्ति ज्योतिष पद्धति का महत्त्व:-ग्रहों के फल देने की कृष्णामूर्ति की यह नवीन पद्धति है। फल अनुकूल होगा या प्रतिकूल यह उप नक्षत्र अथवा उप-नक्षत्र के स्वामी जिसके नक्षत्र में जो ग्रह स्थित होगा। उसके राशि स्वामी व राशि के आधार पर मूल्यांकन होगा। इस तरह नहीं कोई ग्रह खराब है व नहीं कोई ग्रह अच्छा हैं।