प्रेम विवाह योग कुंडली से कैसे जानें?(How to know love marriage yoga horoscope?):-वेदों की बातों का अनुसरण करने वाली प्राचीन समय से चली आ रही रीति में मुक्त रूप से पुरुष और स्त्रियों की जननेन्द्रियों से सम्बन्ध रखने वाले आचरण को 'इंद्रिय या विषय-सुख की कामना' नहीं कहा जाता। हकीकत में यह पति-पत्नी के बीच ऐसा व्यक्तिगत और स्वयं से सम्बंधित घनिष्ठ सम्बन्ध हैं, जिससे उनके जिंदगी की बगिया महक उठती है और जीवन में अलौकिक खुशी के अनुभव की ऐसी धीमी-धीमी बयार चलती है, जिससे उसका काया, चित्त और जीवन में नशे या मस्ती से काया आगे-पीछे और इधर-उधर हिलने लगती हैं और मुस्कुराने लगता हैं।
वात्स्यायन के अनुसार:-इंद्रिय या विषय-सुख की कामना की चाहत और मान्यता का भेद इसके उत्पादक दो तत्वों में समाविष्ट है, जिनको प्रेम एवं विश्वास कहते हैं। इंद्रिय सुख की इच्छा की शुरुआत प्रेम व विश्वास जैसे कामना व मान्य भावों से होती है और इसका वजूद तब तक रहता है, जब तक पति-पत्नी के बीच में गहरा प्रेम व विश्वास बना रहता हैं।
प्रेम एक ऐसी दिल को छूने वाली मन की कल्पना हैं, जिसमें किसी को भी अपनी तरफ खिंचने व अपने में डूबे रखने की हद न होती हैं। जिस प्रकार सूर्य के प्रति खिंचाव में बंधे ग्रह, नक्षत्र व तारे अपनी-अपनी कक्षाओं में सूर्य के चारों ओर निरन्तर घूमते रहते हैं, उसी प्रकार प्रेम की डोरी से बंधे हुए पति, पत्नी, बच्चे व परिवार के अन्य सदस्य घर में आनंदपूर्वक हंसते-खेलते रहते हैं। जब पति-पत्नी के बीच का लगाव कमजोर पड़ जाता हैं, तो उनके के बीच उपजे प्रेम भी उस टूटे हुए तारे के समान होता हैं, जो आकाशगंगा में अपने दूसरे तारों के समूह से अलग होने पर होता हैं। उसी प्रकार जब पति-पत्नी के बीच प्रेम का भाव कमजोर हो जाता हैं, तब घर की जिम्मेदारी तितर-बितर हो जाती हैं।
सृष्टि करने वाली मूल नियामक तथा संचालन शक्ति ने मुमकिन रूप से स्त्री, पुरुष, संतान, घर, परिवार, धन, वैभव आदि को प्रेम का पाठ पढ़ाने के लिए एक तरह से जाल फैलाया हैं, जिससे इंसान प्रेम करना, प्रेम से जीन्स और प्रेम की डोरी से बंधना सीखें। जिससे मानव के हृदय से प्यार का जरिया बनकर इंसान के चित्त और जीवन में उत्पन्न होने वाले दोषों को एकदम स्वच्छ कर सकें। जिस इंसान के मन एवं हृदय में प्रेम चेष्टा नहीं होती हैं, उस इंसान को जगत और जगत में निवास करने वाले प्राणियों से किसी भी तरह से लगाव व जुड़ाव नहीं होता हैं। इस तरह के उदासीन प्रेम शून्य, निस्तेज एवं निष्ठुर इंसान कितना भी समझदार, समाधि में ध्यान लगाने वाला या कठिन साधना करने वाला क्यों न हो, लेकिन वह शिष्ट इंसान नहीं हो सकता। पति-पत्नी के बीच बहुत गहरा यकीन ही उनके बीच के सम्बन्ध को मजबूती एवं जुड़ाव के लिए जरूरी होता हैं। चित्त एवं ख्याल ही उस प्रेम पर यकीन को देखने, स्पर्श करने, सुनने आदि से सुखद और मधुर अनुभूति को लोचदार बनाता है। इस तरह मनोभाव एवं विचारों की इसी मृदुलता और लचकने का भाव ही सभी तरह की संशय हो जाते हैं तथा पति-पत्नी के बीच के सम्बन्धों में जुड़ाव एवं मजबूती आ जाती हैं।
पति-पत्नी के मन की भीतरी चेतना में मौजूद डर, शक और संशय ही उनके बीच में उत्पन्न प्यार को मजबूती के सम्बन्ध को हमेशा बना रहने वाला नहीं होने देते हैं। सृष्टि में जन्म लेने वाले प्रत्येक इंसान के मन में हर समय डर बना रहता हैं और उस डर के साये में रहते हुए प्रत्येक इंसान पर संदेह की दृष्टि रखते हैं, जिससे इन कुदरती दोषों के कारण प्रेम में मजबूती नहीं आ पाती हैं। पति-पत्नी के बीच उत्पन्न प्यार के द्वारा ही एक-दूसरे को अपना मानने के विचार और यकीन के द्वारा ही सम्बन्ध में मजबूती आती हैं। इस तरह के जोड़े के भीतरी पारस्परिक लगाव के रिश्तों को 'विषय-सुख की कामना' कहते हैं। वास्तव में इंद्रिय सुख की चाहत प्रेम की वह उत्तम या श्रेष्ठ इंतजाम होता हैं, जहां प्रेमी व प्रेमिका आपस में मिलकर एक हो जाते हैं। वहां नहीं को अपने से श्रेष्ठ समझा जाता हैं और नहीं किसी के प्रति किसी भी तरह का मनमुटाव एवं वैर भाव होता है।
प्रेम शब्द का विन्यास:-प्रेम में ऐसे तो ढाई शब्दों के मेल से बना होता हैं, लेकिन जब प्रेम के शब्दों को जब अलग-अलग किया जाता हैं, तब प् आधा र, ए और म शब्द बाहर निकल कर आते हैं।
प् का मतलब:-किसी के प्रति पूरी तरह समर्पण होना।
र का मतलब:-किसी के प्रति आकर्षण में डूबना।
ए का मतलब:-बिना किसी अहंकार से।
म का मतलब:-बिना किसी स्वार्थ से।
प्रेम का अर्थ:-किसी भी व्यक्ति, वस्तु, काम, बात, विषय आदि के प्रति मन में उत्पन्न होने वाली किसी खास मन की तरंग में सवार होकर बिना किसी की चिंता के लगातार ईर्ष्या और द्वेष से रहित भाव में डूबे रहने को प्रेम कहते हैं।
प्रेम का अर्थ:-प्रेम एक को दूसरे के साथ सुख-दुःख आदि अनुभूति करवाता हैं, जो कि एक-दूसरे के मन जब मिलते हैं, तब होता हैं और उसमें अनेक तरह के भाव मिले होते है, उसे प्रेम कहा जाता हैं। जिसमें व्यक्ति को समस्त इच्छाएँ की पूर्ति होने से वह उसमें आसक्त होने से उसकी अलग ही तरह की कांति के भाव दिखाई पड़ते हैं। मन की स्वाभाविक गति के द्वारा अनुभूति होने से उनमें अलग तरह की दीप्ति, सदाचार से यूक्त मर्यादा आदि में रहते हुए उसमें पूर्ण रूप डूब जाने का असर रहता हैं। जिसमें किसी भी तरह से एक-दूसरे से श्रेष्ठता को जगह नहीं रहती हैं, आस्था भाव रखते हुए यकीन होता है, जिसमें एक-दूसरे के सार तत्व का मिलन होता हैं।
प्रेम के भेद:-प्रेम के अनेक भेद हो सकते हैं। लेकिन मुख्य रूप से तीन भेद होते हैं।
1.दिलकशी या कशिश प्रेम:-जिसमें एक-दूसरे को अपने मोह में डुबाकर रखना दिलकशी या कशिश प्रेम कहा जाता हैं।
2.क्षणभंगुर या अस्थायी प्रेम:-जिसमें किसी को प्राप्त करने के पीछे अपना स्वार्थ होता हैं और जब स्वार्थ की पूर्ति हो जाती हैं, तब उसका समय समाप्त हो जाता हैं।
3.अलौकिक प्रेम:-जिसका सम्बन्ध इस लोक से न परलोक से सम्बंधित होता हैं, जिसमें किसी भी तरह का मतलब नहीं होते हुए उसमें डूब जाना होता हैं, जिस तरह ईश्वर के प्रति विश्वास एवं आस्था रखते हुए उनके गुणगान में डूबे रहना होता हैं, उसी तरह का यह सम्बन्ध होता हैं। जो कि निरन्तर हरा-भरा रहता हैं, उसमें कभी भी पतझड़ के भाव नहीं होते हैं।
उपनिषदों में सत्यकाम के बारे में जानकारी मिलती हैं, उन्होंने विवाह के आठ प्रकार बताये थे, इसी तरह महर्षि वशिष्ठ ने छह, मनु और कौटिल्य ने आठ प्रकार के विवाह के बारे विवरण दिया था।
मनुस्मृति में श्लोक 3/21 में ब्रह्म, प्रजापत्य, आर्ष, देव, असुर, गंधर्व, राक्षस एवं पैशाच आदि आठ तरह के विवाह को बताया था। मनुस्मृति में जिस विवाह को गान्धर्व या गंधर्व विवाह के नाम से उल्लिखित किया है, आधुनिक युग में उसे प्रेम विवाह कहते हैं।
गंधर्व विवाह या प्रेम विवाह का अर्थ:-इस विवाह में वर और वधू के अतिरिक्त कोई भी मौजूद नहीं होता हैं। दोनों अपनी इच्छा से एक दूसरे से विवाह करते है तथा पारिवारिक जीवन जीते हैं।
'विश्वास ही हैं' प्रेम का आधार' प्रेम करना, प्रेम से जीना, प्रेम की डोरी से बन्धना सीखें
क्या प्रश्नकुंडली के आधार पर प्रेम विवाह का योग हैं?(will love marraige yoga be happened based on the horoscope):-प्रेम सम्बन्धों के विवाह में परिणत होने से सम्बन्धित प्रश्न में निम्नलिखित योग द्रष्टव्य हैं:
◆जब इत्थशाल योग प्रश्नकुण्डली के पहले भाव का स्वामी अथवा चन्द्रमा सातवें भाव के स्वामी के साथ बैठे होते हैं, तो लड़की या लड़के के द्वारा किसी भी तरह की मेहनत नहीं करने पर बिना किसी तरह के तिकड़म लगाए बगैर अथवा विनती के प्यार हो जाता हैं।
◆जब जन्मकुण्डली के सातवें भाव में पहले भाव का स्वामी अथवा चन्द्रमा बैठा होते हैं, तो लड़की या लड़के के द्वारा किसी तरह के तिकड़म लगाकर अथवा विनती के द्वारा प्यार हो जाता हैं।
◆जब ईशराफ योग प्रश्नकुण्डली के पहले भाव के स्वामी का चन्द्रमा के साथ होता हैं और इत्थशाल योग चन्द्रमा तथा सातवें भाव के स्वामी के बीच होता हैं, तो एकाएक औरत या लड़की से लाभ या प्रेम-प्रसंग होता हैं।
◆जब इत्थशाल योग प्रश्नकुण्डली के सातवें भाव के स्वामी और पहले भाव के स्वामी के बीच स्नेहा दृष्टि के साथ बनता हैं, तो लड़के-आदमी (प्रेमी) और लड़की-औरत (प्रेमिका) के बीच बहुत ही ज्यादा अटूट लगाव सम्बन्ध होता हैं।
◆जब कंबूल योग प्रश्नकुण्डली के सातवें भाव के स्वामी और पहले भाव के स्वामी के बीच चन्द्रमा की स्नेहा दृष्टि के साथ बनता हैं, तो लड़के-आदमी (प्रेमी) और लड़की-औरत (प्रेमिका) के बीच बहुत ही ज्यादा अटूट लगाव सम्बन्ध होता हैं।
◆जब प्रश्नकुंडली में सूर्य अच्छी स्थिति में होते हैं, तब प्रेमी बल से युत होता है और यदि शुक्र अच्छी स्थिति में या बल से युत हो, तो प्रेमिका बल से युत होती हैं और यदि दोनों ही अच्छी स्थिति में अथवा बल से युत हों, तो प्रेमी और प्रेमिका दोनों बल से युत होते हैं, जिससे प्रेम सम्बन्ध प्रगाढ़ बनता हैं और आखिर में प्रेम विवाह करते हैं।
◆जब प्रश्नकुण्डली में शनि पहले घर का मालिक होकर पहले, चौथे, सातवें या दशवें घर में बैठा होता हैं और पहले, चौथे, सातवें या दशवें घर में सातवें घर का मालिक बैठा होता हैं, और दोनों के बीच में इत्थशाल योग बनाते हुए शत्रुतापूर्ण भाव के द्वारा देखते हो, तो प्रेमी एवं प्रेमिका एक दूसरे से प्रेम सम्बन्ध तो बनाते हैं और प्रेम विवाह भी करते हैं।
उपर्युक्त के अतिरिक्त कार्यसिद्धि से सम्बन्धित योग भी यहाँ द्रष्टव्य है।
प्रेम विवाह में सफलता के ज्योतिषीय योग या प्रेम सम्बन्धों में सफलता मिलेगी या नहीं?(Astrological yoga for success in love marriage or success in love relationships or not?):-जन्मकुण्डली में स्थित ग्रहों की दशाओं के आधार पर प्रेम सम्बन्ध को बनाने में जन्मकुण्डलियां स्थित ग्रहों की दशाओं का अहम रोल होता हैं, साथ ही जब गोचर में भी ग्रहों का भ्रमण होता हैं, उस समय जन्मकुण्डली के ग्रहों की दशा भी चल रही होती हैं, तो प्रेम विवाह करवाने में अपना योगदान देती हैं। इसलिए प्रेम सम्बन्ध एवं प्रेम विवाह को करवाने में दशाओं का भी विशेष महत्त्व होता है।
◆जब लड़के या लड़की के विवाह योग्य आयु में पांचवें भाव का स्वामी या सातवें भाव का स्वामी अथवा पांचवें भाव या सातवें भाव में बैठे हुए ग्रह हो, तो प्रेम विवाह होता हैं।
◆जब शुक्र की अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर्दशा हो, तो प्रेम विवाह होता हैं।
◆जब चन्द्रमा पाप ग्रहों के प्रभाव में होकर कमजोर होता हैं, पहले घर में पाप ग्रह बैठा हो, राहु की अन्तर्दशा एवं प्रत्यन्तर्दशा चल रही होती हैं, तब लड़के या आदमी -लड़की या औरत के बीच में प्रेम सम्बन्ध बनते हैं, जो कि प्रेम विवाह के लिए उत्तरदायी हो सकती हैं।
◆जब चन्द्रमा व पहले घर का किसी भी पापग्रह एवं तृतीय भाव एवं तृतीयेश से सम्बन्ध बनता है, तो जातक घरवालों की मर्जी के खिलाफ प्रेम-सम्बन्ध या प्रेम-विवाह करता है और ये सम्बन्ध अन्तरजातीय भी हो सकते हैं।
क्या प्रेम विवाह योग कुंडली में हैं? जानें ज्योतिषीय योग से(Are love marriages in the yoga horoscope? Know Astrological Yoga):-ज्योतिष शास्त्र के ज्योतिषीय मत के आधार पर जब लड़की-औरत एवं लड़के-आदमी की जन्मकुण्डलियों में स्थित ग्रहों के बीच बन रहे सम्बन्धों के द्वारा प्रेम की सोच को मन उत्पन्न करते हैं। बिना किसी भी तरह से पाप एवं दोष से रहित निर्मल श्रद्धापूर्ण विचार का सम्बन्ध एक दूसरे ग्रहों के बीच में बन रहे सम्बन्ध के द्वारा परिपूर्ण होती हैं, जिसके बाद सामाजिक मान्यता के साथ पति-पत्नी के रूप में स्वीकार्यता पूर्वक बन्धन में बंध जाते हैं। दाम्पत्य बन्धन में बंधने की व्यवहारिक रीति में रोड़ा अटकाते हैं और दम्पति के जीवन में वैचारिक मतभेद, टकराव, एक-दूसरों को कष्ट पहुंचाकर कलह करवाते हुए अंत में एक-दूसरे को अलग करवाने में भी ग्रहों की भूमिका मददगार होती हैं।
कैसे जाने लड़का या आदमी और लड़की या औरत के बीच प्रेम प्रसंग के सम्बन्ध बनेंगे:-लड़के या आदमी और लड़की या औरत की जन्मकुण्डली का विश्लेषण करने पर निम्नलिखित ज्योतिषीय योगों में कोई भी योग बनता हैं, तब कह सकते हैं, की लड़के या आदमी और लड़की या औरत एक-दूसरे प्यार करते हैं-
1.जब लड़की-औरत की जन्मकुण्डली के सातवें घर का मालिक ग्रह जब जिस राशि में जाकर बैठा होता हैं, यदि वह राशि उस लड़की या औरत की जन्म के समय की राशि हो, तो एक-दूसरे से प्यार के योग बनेंगे।
2.जब जन्मकुण्डली के सातवें घर के मालिक की उच्च या नीच राशि लड़की-औरत की जन्म के समय की राशि हो या पहले, पांचवें या नवें घर की राशि होती हैं, तब लड़की-औरत प्यार करने वाली होती हैं।
3.जब लड़की-औरत की नवांश कुण्डली में सातवें घर का मालिक जिस स्थान पर बैठता हैं, वही राशि लड़की-औरत के जन्म के समय की राशि होती हैं, लड़की-औरत उस लड़के-आदमी से प्यार करने वाली होगी।
5.जब लड़की-औरत की जन्मकुण्डली के सातवें घर के मालिक ग्रह की उच्च या नीच राशि में लड़के-आदमी के सातवें घर का मालिक बैठे होने पर वह लड़का-आदमी प्यार करने वाले होंगे।
6.जब लड़के-आदमी की जन्मकुण्डली के पहले घर या जन्म के समय वाली राशि में लड़की-औरत के जन्मकुण्डली के सातवा घर स्थित हो, तो वह लड़का-आदमी प्यार करने वाले होंगे।
7.जब लड़के-आदमी की जन्मकुण्डली के सातवें घर के मालिक ग्रह की उच्च या नीच राशि में लड़की-औरत का सातवें घर का मालिक बैठे होने पर वह लड़का-आदमी प्यार करने वाले होंगे।
8.जब लड़के-आदमी के जन्मकुण्डली के पांचवें घर के मालिक ग्रह एवं लड़की-औरत की जन्मकुण्डली के एकादश घर के स्वामी के बीच में राशि परिवर्तन, एक साथ बैठना या एक-दूसरे को अपनी दृष्टि से देखने आदि के सम्बन्ध बनने पर प्रेम विवाह योग बनता हैं।
9.जब लड़के-आदमी के जन्मकुण्डली में स्थित भृगु ग्रह एवं लड़की-औरत की जन्मकुण्डली में स्थित भौम ग्रह के बीच में राशि परिवर्तन, एक साथ बैठना या एक-दूसरे को अपनी दृष्टि से देखने आदि के सम्बन्ध बनने पर प्रेम विवाह योग बनता हैं।
10.जब लड़के-आदमी के जन्मकुण्डली में स्थित भौम ग्रह एवं लड़की-औरत की जन्मकुण्डली में स्थित भृगु ग्रह के बीच में राशि परिवर्तन, एक साथ बैठना या एक-दूसरे को अपनी दृष्टि से देखने आदि के सम्बन्ध बनने पर प्रेम विवाह योग बनता हैं।
11.जब लड़की-औरत और लड़के-आदमी की जन्मकुण्डली में जीव ग्रह पहले, चौथे, सातवें एवं दशवें घर या पहले, पांचवें एवं नवें घर में स्थित होकर किसी भी तरह से जैसे-युति, दृष्टि या राशि परिवर्तन का सम्बन्ध बनाते हैं, तो एक-दूसरे के बीच प्यार पनपता हैं और प्रेम विवाह करते हैं।
12.जब लड़की-औरत और लड़के-आदमी की जन्मकुण्डली में सैंहिकीय ग्रह पहले, चौथे, सातवें एवं दशवें घर या पहले, पांचवें एवं नवें घर में स्थित होकर किसी भी तरह से जैसे-युति, दृष्टि या राशि परिवर्तन का सम्बन्ध बनाते हैं, तो एक-दूसरे के बीच प्यार पनपता हैं और प्रेम विवाह करते हैं।
13.जब लड़की-औरत और लड़के-आदमी की जन्मकुण्डली में पहले घर के मालिक ग्रह, सोम ग्रह एवं रवि ग्रह की अवस्था एक जैसी दोनों की जन्मकुण्डलियों होने पर प्रेम विवाह का योग बनता हैं।
14.जब जन्मकुण्डली में सोम, भौम, भृगु और लग्न भाव के स्वामी का जुड़ाव पहले, पांचवें, सातवें एवं नौवें घर से होता हैं, तब लड़के-आदमी और लड़की-औरत एक-दूसरे के प्रति असक्तिपूर्ण लगाव से पारस्परिक खिंचे चले आते हैं।
15.जब जन्मकुण्डली के किसी भी घर में सोम ग्रह एवं भृगु एक साथ बैठे होते हैं, तब प्रेमियों के बीच में अट्टू प्रेम को उत्पन्न करते हैं और एक दूसरे में खोए रहते हैं।
विजातीय विवाह सम्बन्ध:-जब जन्मकुण्डली में जीव ग्रह, नौवां घर एवं नौवें घर का मालिक ग्रह बुरे ग्रहों के असर में होकर कमजोर हालात में होने से लड़के-आदमी और लड़की-औरत विजातीय धर्म या विजातीय वाले से श्रद्धापूर्ण पारस्परिक लगाव को बढ़ाने वाले होंगे।
◆जब जन्मकुण्डली में लग्न भाव एवं पंचम भाव का स्वामी एक साथ एक ही भाव में बैठे हो, एक-दूसरे को परस्पर पूर्ण दृष्टि से देखते हो या एक दूसरे की राशि मे परस्पर बदलाव करते हो, तब प्रेम विवाह विजातीय धर्म या विजातीय जाति में होता हैं।
◆जब जन्मकुण्डली में लग्न भाव एवं नवम भाव का स्वामी एक साथ एक ही भाव में बैठे हो, एक-दूसरे को परस्पर पूर्ण दृष्टि से देखते हो या एक दूसरे की राशि मे परस्पर बदलाव करते हो, तब प्रेम विवाह विजातीय धर्म या विजातीय जाति में होता हैं।
प्रेम विवाह से पूर्व शारीरिक सुख:-जब जन्मकुण्डली में भौम ग्रह का सम्बन्ध मंद या सैंहिकीय ग्रह से होता हैं, तब लड़की-औरत एवं लड़के-आदमी एक-दूसरे के प्रति खींचे चले आते हैं और उनके बीच लगाव बढ़ता है, जिससे वे सभी सीमा को तोड़ते हुए विषय भोग रूपी शारीरिक सुख को भी प्राप्त करते हैं।
अपने नजदीकी परिचित से प्रेम विवाह:-जब जन्म कुण्डली के सातवें घर या सातवें घर के मालिक पर मंद ग्रह का असर होता हैं, तब लड़की-औरत एवं लड़के-आदमी अपने नजदीकी परिचित के मोह में फंसकर उससे मेलजोल बढाते हुए बाद में प्रेम विवाह करने वाले होते हैं।
◆जब जन्मकुण्डली के सातवें घर के मालिक और भौम ग्रह पर जब मंद ग्रह का असर होता हैं, तब लड़की-औरत एवं लड़के-आदमी अपने नजदीकी परिचित के मोह में फंसकर उससे मेलजोल बढाते हुए बाद में प्रेम विवाह करने वाले होते हैं।
अनैतिक सम्बन्ध:-जब जन्मकुण्डली में भौम ग्रह पर जब सैंहिकीय ग्रह का असर होता हैं, तब लड़की-औरत एवं लड़के-आदमी का नीति के विरुद्ध आचरणहीनता को अपनाते बहुत जनों से प्यार का सम्बन्ध बनाकर शारीरिक सुख की प्राप्ति कर सकते हैं।
कुटुम्ब के नातेदार से प्रेम विवाह:-जब जन्मकुण्डली के दूसरे घर का सम्बन्ध सातवें घर या सातवें घर के मालिक या भौम ग्रह से होता हैं, तब कुटुम्ब के नातेदार से प्यार करके प्रेम विवाह करते हैं।
मौसी या मामा के साथ प्रेम विवाह:-जब जन्मकुण्डली के दूसरे घर एवं भौम ग्रह या सातवें घर के मालिक से सोम ग्रह का सम्बन्ध बनता हैं, तब अपने नजदीकी रिश्तेदार जैसे-मामा या मौसी के प्यार में पड़कर प्रेम सम्बन्ध बनाते हैं।
प्रेम विवाह से पूर्व शारीरिक सम्बन्ध:-जब जन्मकुण्डली में सैंहिकीय ग्रह एवं मंद ग्रह का सम्बन्ध भृगु ग्रह के साथ बनता हैं, तब लड़की-औरत एवं लड़के-आदमी एक-दूसरे प्रेम करते हुए विषय भोग की कामना को पूरा करने के लिए शारीरिक सम्बन्ध तक बना देते हैं।
प्रेम विवाह सफल:-जब जन्मकुण्डली में भृगु ग्रह का सैंहिकीय ग्रह से सम्बन्ध बनता हैं, तब लड़की-औरत एवं लड़के-आदमी के बीच प्यार पनपता हैं, फिर प्रेम विवाह सफल होता हैं।
प्रेम संबंध लम्बे समय तक प्रेम विवाह देरी से सफल:-जब जन्मकुण्डली में लग्न या लग्न के स्वामी, सातवें घर या सातवें घर के मालिक, रवि, सोम या भृगु ग्रह पर मंद पापी ग्रह खराब असर होने पर लड़की-औरत एवं लड़के-आदमी के बीच तो प्यार होता हैं और उनका विवाह बहुत ही विलंब से होता हैं या कभी नहीं होता हैं
चन्द्रमा:-जब लड़के-आदमी और लड़की-औरत की जन्मकुडली में सोम ग्रह के हालात किस अवस्था में योग कर रहे हैं एवं दृष्टि सम्बन्ध के द्वारा जैसा असर होगा, वैसी ही उनकी प्रकृति के अनुसार उनकी चेतना पर असर करती हैं।
◆यदि जन्मकुण्डली में चन्द्रमा उपचय भाव जैसे-तीसरे, छठे, दशवें या ग्यारहवें में अथवा सातवें भाव में शुभ राशि में स्थित हो तथा बुध, सूरज एवं गुरु से द्र्ष्ट हो, तो प्रेमिका ही पत्नी बनती हैं।
प्रेम विवाह योग में ग्रहों एवं भावों की क्या भूमिका हैं? (What is the role of planets and houses in love marriage yoga?):-
पहले घर के कारक:-लग्न स्वयं जातक एवं उसकी अभिरुचि का प्रतिनिधित्व करता हैं।
पारस्परिक प्रेम सम्बन्ध के बाद प्रेम विवाह में सफलता:-जब जन्मकुण्डली के पहले घर के स्वामी के साथ दूसरे घर के स्वामी के बीच पारस्परिक किसी भी तरह से सम्बन्ध बनता हैं, तो प्रेम विवाह का इशारा होता हैं।
◆जब जन्मकुण्डली के पहले घर के स्वामी के साथ पांचवें घर के स्वामी के बीच पारस्परिक किसी भी तरह से सम्बन्ध बनता हैं, तो प्रेम विवाह का इशारा होता हैं।
◆जब जन्मकुण्डली के पहले घर के स्वामी के साथ सातवें घर के स्वामी के बीच पारस्परिक किसी भी तरह से सम्बन्ध बनता हैं, तो प्रेम सम्बन्धों के विवाह में परिणत होने की सम्भावना होती हैं।
◆जब जन्मकुण्डली के पहले भाव के स्वामी, पांचवें भाव के स्वामी और सातवें भाव के स्वामी के बीच किसी भी तरह परस्पर जैसे-एक-दूसरे की राशि में बैठना, एक-दूसरे पर अपनी दृष्टि से देखना या एक साथ एक जगह बैठने आदि का सम्बन्ध बनता हैं और शुक्र के द्वारा देखा जाने या शुक्र के साथ बैठे जाने से लड़के या आदमी-लड़की या औरत के बीच प्रेम का जुड़ाव होकर आखिर में प्रेम विवाह में बदल जाता हैं।
◆जब जन्मकुण्डली के पहले भाव, पांचवें भाव और सातवें भाव के स्वामी का एवं शुक्र ग्रह का दूसरे भाव व उसके स्वामी और ग्यारहवें भाव और उसके स्वामी के बीच किसी भी तरह परस्पर जैसे-एक-दूसरे की राशि में बैठना, एक-दूसरे पर अपनी दृष्टि से देखना या एक साथ एक जगह बैठने आदि का सम्बन्ध बनता हैं, तो लड़के या आदमी-लड़की या औरत के बीच प्रेम का जुड़ाव होकर आखिर में प्रेम विवाह में बदल जाता हैं।
ज्योतिष शास्त्र में लड़के-आदमी एवं लड़की-औरत के बीच किसी भी विशेष तरह के लगाव एवं आसक्ति को जानने के लिए:-जब लड़का या लड़की प्रेम विवाह के बारे में जानना चाहते हैं, तब उनको अपनी जन्मकुण्डली के प्रेम संबंध के द्वारा प्रेम विवाह में मददकारी भावों जैसे-पंचम, सप्तम, नवम, एकादश एवं द्वितीय भाव एवं ग्रहों को जानना चाहिए, जो कि निम्नलिखित हैं।
1.पांचवें घर के कारक:-जन्मकुण्डली में पंचम भाव प्रेम का होता हैं और इसका कारक ग्रह शुक्र हैं। घर से किसी भी लड़की-औरत एवं लड़के-आदमी के मन में उत्पन्न होने वाले बार-बार के भाव, मजबूत इरादा, सोच-समझकर निर्णय लेने की दृढ़ता, सौहार्द, जोश व उत्साह, मन की कल्पना आदि के विषयों के बोध का कारक होता हैं।
राहु या केतु:-
◆जब जन्मकुण्डली में सैंहिकीय या शिखि ग्रह पांचवें घर के मालिक की उच्च राशि में स्थित होते हैं।
◆जब जन्मकुण्डली में सैंहिकीय या शिखि ग्रह पांचवें घर में या सातवें घर में स्थित हो, देखते हो।
◆जब जन्मकुण्डली में सैंहिकीय या शिखि ग्रह पांचवें घर या सातवें घर के मालिक के साथ बैठे हो या देखते हो या राशि बदलाव करते हो।
◆जब जन्मकुण्डली में पांचवें घर का सातवें घर या पांचवें घर या सातवें घर के मालिक या सैंहिकीय या शिखि ग्रह के साथ बैठे हो या देखते हो या राशि बदलाव करते हो।
मंगल ग्रह:-लड़के-आदमी और लड़की-औरत में अपने प्रेम को पूर्ण जोश के साथ स्वीकार करनी की हिम्मत प्रदान करने में सहायक होते हैं।
प्रेम सम्बन्ध किसी के आगे झुकता नहीं:-जिस किसी भी लड़के-आदमी और लड़की-औरत की जन्मकुडली में भौम ग्रह मजबूत एवं पापग्रहों के प्रभाव से रहित होकर शुभ भावों में बैठा होता हैं, तब लड़के-आदमी और लड़की-औरत के मन में स्थिरता के भाव को उत्पन्न करके उनको हिम्मत प्रदान करता हैं, जिससे वे अपने प्यार के लिए किसी के आगे नहीं झुकते हैं।
◆जब लड़के-आदमी और लड़की-औरत की जन्मकुडली में भौम ग्रह मजबूत एवं पापग्रहों के प्रभाव से रहित होकर पांचवे घर पर अपनी दृष्टि द्वारा या राशि बदलाव या बैठने के द्वारा जितना अधिक अपने प्रभाव में रखता हैं, उतना ही प्यार के प्रति लगाव होगा। जिससे लड़के-आदमी और लड़की-औरत अपने मन में धारित बातों को अच्छी तरह से साफ-सुथरी एवं बिना किसी भी तरह से वाणी में रुकावट से दूसरों को पूरे जोश में बताने में संकोच नहीं करते हैं।
◆जब लड़के-आदमी और लड़की-औरत की जन्मकुडली में भौम ग्रह और तीसरा घर कमजोर एवं पापग्रहों का असर होने पर लड़के-आदमी और लड़की-औरत के अंतःकरण में सोची हुई प्यार सम्बन्धित बात को एक-दूसरों को उस बात को बताने में असमर्थ रहते हैं, जिससे उनके अंतःकरण में वह बात उनके अंदर ही अंदर रह जाती हैं, तो भी वे एक-दूसरे के साथ प्रेम करते हुए प्रेम विवाह करते हैं।
बेझिक एक-दूसरे से इजहार कर प्रेम विवाह में सफलता:-जब लड़के या लड़की की जन्मकुण्डली में भौम ग्रह का असर पांचवें घर अथवा पांचवें घर के मालिक पर होता हैं, तब लड़का-लड़की अपने मन की सोच को एक-दूसरे को बता देने में सफल हो जाते हैं, जिसके बाद उनके बीच प्रेम सम्बन्ध बनकर आखिर में प्रेम विवाह कर लेते हैं।
प्रेम सम्बन्ध में अनिश्चियता के बाद संजोग से प्रेम विवाह:-जब जन्मकुण्डली में भौम ग्रह एवं तीसरा घर कमजोर होने पर लड़के या लड़की एक दूसरे को अपने प्रेम सम्बन्ध को बताने संकोच, बताये या नहीं बताये, अनिश्चय की स्थिति में रहते हैं, जिससे वे मन ही मन में प्रेम को दबाकर रखते हैं, आखिर में किसी संजोग से उनके बीच प्रेम विवाह हो जाता हैं।
◆जब जन्मकुण्डली में भौम ग्रह पांचवें घर में या नवें घर में बैठा होता हैं तथा सातवें घर का स्वामी ग्यारहवें घर में राशि को परिवर्तन कर रहा होता हैं, तो लड़के या लड़की एक दूसरे को अपने प्रेम सम्बन्ध बनाकर प्रेम विवाह करते हैं।
◆जब जन्मकुण्डली के पांचवे भाव में शुभ ग्रहों का असर होता हैं, तब प्रेम विवाह के योग बनते हैं।
◆पांचवें घर एवं पांचवें घर का मालिक और सातवें घर एवं सातवें घर के मालिक के बीच किसी भी तरह जुड़ना जैसे-एक-दूसरे के साथ राशि बदलाव करना, एक-दूसरों को अपनी पूर्ण दृष्टि से देखना या एक-दूसरे का एक ही राशि में साथ में बैठना आदि का होना अनिवार्य होता हैं, तब ही प्रेम विवाह के योग बन सकते हैं।
प्रेम सम्बन्ध में घनिष्ठता के बाद प्रेम विवाह में सफलता:-जब जन्मकुण्डली के पांचवें घर में जब सूर्य व शुक्र, चन्द्रमा व शुक्र या राहु व शुक्र एक साथ बैठे हो, तब लड़के या पुरुषों या लड़की या स्त्रियों के मध्य प्रेम सम्बन्ध के योग बनते हैं, जिससे उनके बीच प्रेम सम्बन्ध घनिष्ठ होकर प्रेम विवाह तक हो जाता हैं।
प्रेम सम्बन्ध के बाद प्रेम विवाह में सफलता:-जब जन्मकुण्डली के पांचवें घर एवं सातवें घर के स्वामी का सम्बन्ध जब दूसरे या ग्यारहवें घर से बनता हैं, प्रेम सम्बन्धों के द्वारा आखिर में विवाह में परिणत होने की सम्भावना होती हैं।
पारस्परिक प्रेम सम्बन्ध के बाद प्रेम विवाह में सफलता:-जब जन्मकुण्डली के पहले घर, पांचवें घर एवं सातवें घर के स्वामी के बीच पारस्परिक किसी भी तरह से सम्बन्ध बनता हैं, तो प्रेम विवाह का इशारा होता हैं।
◆जब जन्मकुण्डली के पहले घर का स्वामी और पांचवें घर का स्वामी एक-दूसरे के साथ बैठे हो या एक-दूसरे को देखते हो और उनमें राशि परिवर्तन हो, तो प्रेम विवाह का इशारा होता हैं।
◆जब जन्मकुण्डली के पहले घर का स्वामी और नवें घर का स्वामी एक-दूसरे के साथ बैठे हो या एक-दूसरे को देखते हो और उनमें राशि परिवर्तन हो, तो प्रेम विवाह का इशारा होता हैं।
◆जब जन्मकुण्डली के पांचवें घर का स्वामी और नवें घर का स्वामी एक-दूसरे के साथ बैठे हो या एक-दूसरे को देखते हो और उनमें राशि परिवर्तन हो, तो प्रेम विवाह का इशारा होता हैं।
◆जब जन्मकुण्डली के सातवें घर का स्वामी और नवें घर का स्वामी एक-दूसरे के साथ बैठे हो या एक-दूसरे को देखते हो और उनमें राशि परिवर्तन हो, तो प्रेम विवाह का इशारा होता हैं।
शुक्र ग्रह:-जब जन्मकुण्डली के लग्न भाव से या चन्द्र लग्न कुंडली के लग्न भाव से शुक्र पांचवें घर में स्थित होता हैं, तब प्रेम सम्बन्ध विवाह में बदलते हैं।
◆जब जन्मकुण्डली में भृगु ग्रह पांचवें घर में विराजमान होते हैं, तब लड़के-आदमी को जिसे देखने, स्पर्श करने, सुनने आदि से सुखद और मधुरता का अहसास करवाने की तरफ प्रवृत्त करते हैं।
◆जब जन्मकुण्डली के लग्न भाव में लग्न के स्वामी के साथ शुक्र होने पर प्रेम सम्बन्ध विवाह में बदलते हैं।
2.सातवें घर के कारक:-सातवां घर किसी भी लड़की-औरत एवं लड़के-आदमी के साथ एक बन्धन में बंधने, एक-दूसरे के साथ दाम्पत्य जीवन के सुख एवं लगाव और एक-दूसरों को विषय भोग में संतुष्टि आदि विषयों के बोध का कारक होता हैं।
प्रेम विवाह एवं तलाक:-जब जन्मकुण्डली में मंद ग्रह एवं शिखि ग्रह एक साथ सातवें घर में बैठे होते हैं, तब प्रेम विवाह होता हैं, लेकिन पृथकता भी करवा देते हैं।
भौम ग्रह:-जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में या पहले घर में सातवें घर के स्वामी के साथ भौम ग्रह बैठे होते हैं, तब प्रेम विवाह होता हैं।
सोम ग्रह:-जब जन्मकुण्डली के पहले घर में या सातवें घर में पहले घर का स्वामी, सातवें घर का स्वामी एवं सोम ग्रह बैठे होते हैं, तब प्रेम विवाह होता हैं।
शुक्र ग्रहः-जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में सातवें घर के स्वामी के साथ शुक्र ग्रह बैठे होते हैं, तब प्रेम विवाह होता हैं।
2.नवम घर के कारक:-नवा घर किसी भी लड़की-औरत एवं लड़के-आदमी के बीच पनपे प्यार का प्रेम विवाह एक स्वभाव, रंग-रूप, संस्कृति और आकृति आदि की समानता वाले मानव समूह के बीच होगा या भिन्न जाति या समान धर्म, गुण या स्वभाव या भिन्न धर्म के बीच में होगा आदि विषयों के बोध का कारक होता हैं।
शुक्र ग्रह:-जब जन्मकुण्डली के नवें घर में शुक्र ग्रह बैठे होते हैं, तब प्रेम विवाह होता हैं।
4.ग्याहरवां घर के कारक:-ग्याहरवां घर किसी भी लड़की-औरत एवं लड़के-आदमी के बीच पनपे प्यार के प्रेम विवाह को उनके परिवार वाले सदस्यों एवं रिश्तेदारों के द्वारा अनुमति देकर मानने आदि विषयों के बोध का कारक होता हैं।
5.दूसरे घर के कारक:-दूसरा घर किसी भी लड़की-औरत एवं लड़के-आदमी के बीच पनपे प्यार के प्रेम विवाह होने के बाद उसके परिवार-कुटुम्ब के सदस्यों और रिश्तेदारों के द्वारा मान-सम्मान एवं उनका लगाव और उनके द्वारा मिलने वाले सुख आदि विषयों के बोध का कारक होता हैं।
6.बारहवें घर के कारक:-बारहवां घर किसी भी लड़की-औरत एवं लड़के-आदमी के बीच में विषय भोग रूपी शारीरिक सुख, शय्या सुख और दूसरों को अपनी तरफ अपने मोह में लेने आदि विषयों के बोध का कारक होता हैं।
उपसंहार या विशेष:-इस प्रकार से साबित होता हैं कि पांचवा, सातवां एवं नौवां घर और उनके स्वामी के बीच जो सम्बन्ध बनता है, उस सम्बन्ध के आधार पर लड़की-औरत एवं लड़के-आदमी के बीच में प्यार के प्रति जुकाव होता हैं।
प्रेम विवाह कराने में सहायक कारक ग्रह:-आदमी-लड़के और औरत-लड़की को प्रेम के सम्बन्ध में जोड़ने वाले ग्रहः निम्नलिखित हैं।
शुक्र ग्रह:-आदमी को प्यार की तरफ मोड़ने में शुक्र ग्रह की भूमिका होती हैं, जिससे वह प्यार के चक्कर में पड़ता हैं।
शुक्र ग्रह:-शुक्र ग्रह ही स्त्री-पुरुष को सामाजिक एवं धार्मिक प्रक्रिया के द्वारा पति-पत्नी के रूप में मान्यता और एक-दूर के प्रति प्यार का लगाव बढ़ाने के कारक होता हैं। शुक्र ग्रह के द्वारा मन को हरने वाली देह एवं सूरत, मन के अंदर अच्छी सोच-समझ वाले विचारों, स्त्री-पुरुष के बीच में विषय भोग रूपी शारीरिक सुख एवं सभी तरह के ऐशो-आराम आदि विषयों का बोध कराता हैं।
मंगल ग्रह:-लड़की या औरत के मन में प्रेम भावना भौम ग्रह के कारण उपजती हैं। सामर्थ्य और पुरुषार्थ रूपी बल का प्रतिनिधित्व करने वाला होता हैं।
सोम ग्रह:-सोम ग्रह ही अच्छे-बुरे का विवेक करने वाली भीतरी इन्द्रिय या चेतना शक्ति का कारक होता हैं।
जीव ग्रहः-विजातीय धर्म या विजातीय वाले से श्रद्धापूर्ण पारस्परिक लगाव को बढ़ाने वाले होंगे