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Tuesday 29 March 2022

मानव शरीर में ग्रहों का अंगन्यास कहाँ-कहाँ होता हैं?

                     

मानव शरीर में ग्रहों का अंगन्यास कहाँ-कहाँ होता हैं?(Where are the planetary positions in the human body?):-समस्त ब्रह्माण्ड में बहुत सारे चमकते हुए चमकीले छोटे-छोटे तारे स्थित होते हैं, जो स्वयं गति नही करते हैं और एक जगह पर स्थित होते हैं। इन तारों की संख्या ज्योतिष शास्त्र में अठाईस मानी गई हैं। जिनमें सत्ताईस मुख्य रूप से जाने जाते हैं। इन तारों के स्वामी ग्रह होते हैं। इन स्वामी ग्रहों व नक्षत्रों का मानव शरीर पर अधिकार होता हैं, जिससे मानव शरीर के अंगों में गति होती हैं। इन ग्रहों से ही मानव शरीर का निर्माण होता हैं। जब माता के गर्भाशय में बीज का निर्माण होता हैं, तब से इन ग्रहों की गति शुरू हो जाती हैं और धीरे-धीरे समस्त अंगों के स्वामी बनकर समस्त शरीर में विराजमान हो जाते हैं और मानव शरीर में होने वाली हलचलों को अपने प्रभाव के रूप में करवाते हैं। इस तरह जन्मकुंडली में इन ग्रहों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता हैं। जो मानव शरीर के प्रत्येक भाग की गतिविधियों को करवाते हुए उनको चलायमान करते है।



Where are the planetary positions in the human body?



ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रहों पर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड चलता हैं, जो की निरन्तर अपनी गति के द्वारा निरन्तर चलते हुए अपने समय के अनुरूप कार्य को करते हुए अपने अच्छे व बुरे प्रभाव से गर्भ में निमित्त मानव के शरीर के अंगों पर अपना नियंत्रण रखते हैं, यदि अच्छी स्थिति में होने पर शरीर में उन अंगों का विकास करते हैं और उनको मजबूती प्रदान करते हैं। यदि बुरी स्थिति में होने पर मानव शरीर में उन अंगों में विकृति उत्पन्न कर देते हैं और उस अंग में सही तरीके से विकास नहीं हो पाता हैं। इसलिए मानव शरीर के अंगों के मालिक ग्रहों के स्थान को जानना चाहिए। उसके बाद यदि किसी शरीर अंग में विकृति हो तो उस ग्रह के निमित उपाय करके उस विकृति को दूर किया जा सकता हैं। 




मानव शरीर में ग्रहों का स्थान या अंगन्यास:-जिस शरीर या अंगों को विशेष स्थिति में रखना ही अंगन्यास कहलाता हैं। जिस तरह बारह राशियों का विन्यास किया गया हैं, उसी प्रकार ग्रहों का भी विन्यास किया जाता है।




मानव शरीर में सूर्य ग्रह की जगह:-सभी ग्रहों के राजा सूर्यदेव होते हैं, जो कि अपनी उष्णता की किरणों के द्वारा सम्पूर्ण जगत में उजाला करते हैं और अंधेरे को दूर करते हैं। सूर्य गर्मी, प्रकाश और भौतिक विकास का प्रतिनिधित्व करता हैं। सूर्य कालपुरुष के सिर, मुख, अस्थि, कुक्षि या उदर पर सूर्य का अधिकार हैं। मस्तिष्क के ऊपरी भाग में सुषुम्ना, इंगला, पिंगला आदि नाड़ियों का मिलन बिंदु या स्थल से एक अंगुली नीचे की तरफ ऋषियों-मुनियों ने रवि की जगह मानव शरीर में बताई हैं। गहराई से मन ही मन में अच्छे व बुरे किये जाने वाले विचार का प्रतिनिधित्व भी रवि ही होता हैं।




मानव शरीर में चन्द्रमा ग्रह की जगह:-चन्द्रमा का स्थान मानव के मस्तिष्क के मध्य में श्वास-प्रश्वास लेने वाली पिंगला नाड़ी के एक अंगुल से नीचे नीचे की ओर मुख पर माना गया है। चन्द्रमा कालपुरुष के छाती, थूक, गर्भ स्थल, जल व रक्त पर अधिकार होता हैं। हृदय व कंठ और रक्त धातु पर अधिकार रखता हैं। चन्द्रमा को मानव के सोचने-समझने या संवेदनशील की दशा में, एक जगह पर केंद्रित नहीं होने के भाव में और अप्रत्यक्ष विषयों के बारे में रचना करने के भाव के साथ जोड़ा जाता हैं। क्योंकि सूर्य की तीक्ष्ण उष्णता से प्रकाश की जरूरत चन्द्रमा को होती है और उस प्रकाश की किरणों को चन्द्रमा ग्रहण करता हैं। इसलिए चन्द्रमा को सूर्य के नीचे प्रतिबिंब के रूप में रहना पड़ता हैं। जब चन्द्रमा पर सूर्य की आभा रूपी वस्तुओं या विषयों की जानकारी रूपी रोशनी पड़ती हैं, तब मनुष्य की जीवन शक्ति में संचार होकर चमक उत्पन्न होती हैं, जिससे शूरता के भाव भी उत्पन्न हो जाते हैं। 




मानव शरीर में मगंल ग्रह की जगह:-भौम या मंगल ग्रह को मानव शरीर की आंखों में जगह मिली हैं। कालपुरुष के पेट व पीठ, मज्जा, नाक, कान, सिर और छाती पर मगंल ग्रह अपना अधिकार रखते हैं। मंगल शारीरिक सामर्थ्य और उतेजना क्षमता आदि के विषय के गुण, रूप की जानकारी कराने का प्रतिनिधित्व करता हैं। मनुष्य के नेत्रों में सबकुछ छुपे हुए भाव होते हैं, जिस तरह दर्पण में देखने पर उसकी प्रतिच्छाया दिखाई देती हैं, उसी तरह ही नेत्रों में सभी भावों का समावेश होता हैं। मनुष्य के जीवन की स्थिति के बारे में जानकारी आंखों के भावों के द्वारा प्राप्त की जा सकती है। मनुष्य के सम्पूर्ण शरीर में रक्त के द्वारा ही सभी अंगों का संचालन होता हैं, जिससे शरीर के सभी अंग सही तरीके से कार्य कर पाते हैं। इसलिए मंगल को रक्त का प्रतिनिधित्व भी माना गया है और नेत्रों की जगह में स्थान बताया गया है।  




मानव शरीर में बुध ग्रह की जगह:-बुध या सौम्य मनुष्य के जीवन का मूल आधार हृदय होता हैं, जब तक हृदय में रक्त का संचरण सही तरीके से होता हैं, तब तक मनुष्य के प्राण चलते रहते हैं। प्राणरूपी हृदय की जगह में सौम्य ग्रह या बुध ग्रह मानव शरीर के अंग में विराजमान रहते हैं, कालपुरुष के हाथों व पांवों, जीभ, फेफड़ों, स्नायु केंद्रों पर, त्वचा, नितम्ब और वक्षस्थल में अपना अधिकार रखते हैं। सौम्य को बुद्धि और चिंतन के विषयों का प्रतिनिधित्व माना जाता है। जो कि मुहं से शब्दों के उच्चारण करने का कारक होता है। जब किसी भी मानव के द्वारा किये जाने वाले लोक रीति का पालन के बर्ताव, चित्त रस से उत्पन्न करने की क्षमता और धार्मिक, नैतिक आदि गंभीर विषयों पर भलाई से सम्बंधित करने योग्य अच्छी व विचारपूर्ण बातों की उत्पत्ति होने पर सौम्य ग्रह या बुध ग्रह को मुख्य रोल के रूप में देखा जाता हैं।




मानव शरीर में बृहस्पति ग्रह की जगह:-बृहस्पति का मानव शरीर के अंग पेट के बीच के गड्ढानुमा भाग या नाभि में माना जाता है। कालपुरुष की बस्ति, वसा उरु या जांघ पर अधिकार रखता हैं। जीव ग्रह व्यापकता को बढ़ाने वाला, बौद्धिक विकास और धर्मज्ञान एवं प्राचीन घटनाओं की जानकारी देने वाले शास्त्र के बहुत ही ज्ञाता हैं। ये सभी तरह के विवेचनात्मक ज्ञानविषयक ग्रन्थों और चेतना शक्ति के द्वारा जीवों, प्राणियों आदि को आवश्यकताओं और स्थितियों के अनुरूप अनेक तरह की अनुभूतियाँ और सब बातों की जानकारी के स्वरूप होते हैं। इसलिए नाभि की जगह में बृहस्पति को स्थान मानव शरीर में प्राप्त हुआ हैं।




मानव शरीर में शुक्र ग्रह की जगह:-शुक्र को मानव शरीर के अंग गुप्त स्थान, नेत्र, कफ, जल, वीर्य धातु व में जगह मिली हैं, इसलिए मानव के द्वारा किसी विषय पर चिंतन करने की क्षमता या मन की अभिलाषा की क्षमता का प्रतिनिधित्व ग्रह भृगु को माना जाता है। भृगु का अधिकार अन्तरिक्ष, विद्युत शक्ति और मानसिक आवेश होता हैं।





मानव शरीर में शनि ग्रह की जगह:-मानव शरीर में मन्द या शनि का स्थान फुले हुए पेट के आगे बढ़ा हुआ नाभि गोलक में होता है। मनुष्य शरीर के जीवन संचरण में नाभि का प्रमुख स्थान होता हैं, कालपुरुष के जांघो, घुटने, मज्जा व पैर स्नायु जानु आदि पर अधिकार रखते हैं। रमल शास्त्र या अरबी ज्योतिष के अनुसार किसी भी मनुष्य के द्वारा गहनता से मन ही मन में अच्छे व बुरे भावनाओं के बारे में और स्वभाव, चरित्र या चाल-चलन के विषय आदि को जानना होता हैं, तब मन्द ग्रह के हालात को देखने के बाद ही मनुष्य के मन को पढा जा सकता हैं। मन्द ग्रह की गति को गणित में जाना जा सकता हैं कि मन्द की गति किस तरह की और कैसे अलग-अलग राशि वाले  मनुष्य के जीवन को प्रभावित करेगा आदि के नतीजे ज्ञात किये जा सकते हैं।  





मानव शरीर में राहु ग्रह की जगह:-राहु ग्रह की जगह मानव शरीर में मुंह या मुख होता हैं। राहु ग्रह का कोई बुनियाद नहीं होता हैं। यह ग्रह मंगलकारक ग्रहों के साथ अपनी दोस्ती रखते हैं और अमंगलकारक ग्रहों से भी दोस्ती रखते है। इसलिए राहु को मानव शरीर के स्वाद रस की जगह जिह्वा में स्थान दिया गया हैं। जिह्वा को जिस तरह अच्छा स्वाद मिलता हैं, तो शरीर में उत्साह व खुशी के भाव को उत्पन्न होते हैं और जब जिह्वा को बेस्वाद वस्तु मिलती हैं, तो शरीर में चलचल उत्पन्न होने लगती हैं। इसलिए जिह्वा पर किसी भी तरह का यकीन नहीं किया जा सकता हैं, क्योंकि जिह्वा किसी भी समय क्या बोलवा दें यह जानकारी पहले नहीं होती हैं। इसी तरह की प्रवृत्ति राहु की होती हैं, राहु का किसी भी किसी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता हैं, किस समय अपनी करवट बदल लें। दोनों हाथ विनाश, उपद्रव और तोड़ा-फोड़ी से सम्बन्ध रखता हैं।



◆जब राहु ग्रह का मेल, दृष्टी या राशि परिवर्तन भौम ग्रह के साथ होता हैं, तब मानव की जिह्वा से दिलेरी के साथ क्रोध से पूर्ण वाणी से निंदनीय शब्दों को बोलेगा।



◆जब राहु ग्रह का मेल, दृष्टी या राशि परिवर्तन सौम्य ग्रह के साथ होता हैं, तब मानव की जिह्वा से मधुरता के शब्दों की बौछार से युक्त वाणी बोलेगा।



◆जब राहु ग्रह का मेल, दृष्टी या राशि परिवर्तन भृगु ग्रह के साथ होता हैं, तब मानव की जिह्वा से काम वासना के शब्दों की बौछार से युक्त वाणी बोलेगा।



◆जब राहु ग्रह का मेल, दृष्टी या राशि परिवर्तन जीव ग्रह के साथ होता हैं, और जीव ग्रह का बल राहु के अनुगामी हो, तब मानव की जिह्वा से अच्छी सदाचार युक्त बातों की एवं तात्विक तर्क-वितर्क बातों की जानकारी देने के शब्दों की बौछार से युक्त वाणी बोलेगा।





मानव शरीर में केतु ग्रह की जगह:-मानव में जीवन का संचार करने वाले हृदय अंग की जगह से केतु ग्रह मानव शरीर में अपना स्थान की शुरुआत करते हुए वाणी में मधुरता व कठोरता के भाव को उत्पन्न करने की जगह कंठ तक होता हैं। केतु ग्रह का जुड़ाव ऐसी अदृश्य चीजों से होता हैं और अपने अन्दर भेद को भी छुपाये रखने के भावों से होता है। मानव भी कई बार अपने अंदर के कई रहस्यों को प्रकट होने से पहले कंठ तंत्र में रोक देते हैं और अपनी जिह्वा पर भी उन रहस्यों को नहीं लाते हैं। इस तरह केतु ग्रह को अदृश्य स्थान में जगह मिली हैं, क्योंकि केतु मायावी होता हैं। दोनों पैर मोक्ष कारक और ज्ञानकारक ग्रह होता हैं।